आज के दिशाहीन और तेजहीन युवक !

उचित आदर्श के न होने से अत्यधिक आलसी और व्यसनाधीन

आज के अधिकांश युवकों के सामने कैरियर को छोडकर अन्य कोई विशिष्ट लक्ष्य और आदर्श नहीं है । जैसे सागर में पाल रहित नौका हवा के साथ कहीं भी भटक जाती है, वैसा आज का युवक है । चरित्रहीन एवं लक्ष्यहीन लाचार व्यक्तित्व, साथ ही भ्रष्ट राजनीति में गले तक डूबकर आलस में लोट रहे राजनैतिक लोग ही आज के युवकों का आदर्श होने से आज का युवक भ्रमित हो गया है । वह ऊंचे स्वर में हिन्दी फिल्मों के गंदे और अश्‍लील गाने गाते हुए अत्यधिक व्यसनाधीन होता जा रहा है । वह मादक पदार्थों के अधीन हो चुका है । ‘अपनी’ कमाई की अपेक्षा ‘बाप’ की कमाई और बिना परिश्रम के बिना पैसा’ युवकों के लिए भूषण बन रहे हैं ।

मुंबई की एक सामाजिक संस्था द्वारा किया गया युवकों का सर्वेक्षण और उससे प्राप्त भयंकर निष्कषर्र् !

मुंबई की एक सामाजिक संस्था ने स्वास्थ्य के परिप्रेक्ष्य में सर्वेक्षण किया । उसका निष्कर्ष अति भयानक है तथा वह सरकार, विचारक एवं समाजशास्त्रियों को अंतर्मुख बनानेवाला है । यह ब्यौरा बताता है कि ९२ प्रतिशत युवक व्यसनाधीन हैं तथा उसमें ८० प्रतिशत संख्या लडकियों की है । आज के युवकों में यदि इसी प्रकार व्यसनाधीनता बढती रही, तो एक न एक दिन ऐसा आएगा, जब देश में शस्त्र तो होंगे; परंतु इन शस्त्रों को थामनेवाली कलाईयां स्वस्थ नहीं होंगी ! भारी यंत्र तो होंगे; परंतु श्रमिक नहीं मिलेंगे !

स्नातक होते हुए भी व्यावहारिक विश्‍व में बिना किसी काम का !

अत्यंत निम्न स्तर के अभिरुचिवाला साहित्य, गंदी और घिनौनी रुचि-अरुचियां, फिल्मों कलाकारों के उत्तेजक उन्मादक धारावाहिक, बढता अपराधीकरण, कालाबाजार आदि बातों के कारण आज का युवक भटक रहा है । विश्‍वविद्यालय से उपाधियों के कागज लेकर बाहर निकलनेवाला युवक नौकरी के लिए भटक रहा है । व्यापक ज्ञान अर्जित करने की अपेक्षा खोखली नींव पर उपाधि प्राप्त किया हुआ युवक इस व्यावहारिक और वास्तविकवादी विश्‍व में व्यर्थ प्रमाणित हो रहा है ।

उचित संस्कार न होने से राजनेताआें के हाथ का खिलौना बना युवक !

आज के युवकों को किसी भी प्रकार के उचित संस्कार नहीं मिले हैं । ऐसे संस्कारहीन युवक समाज के लिए ग्रसित कर्करोग है । बिना परिश्रम से पैसा मिले और आरामदायक जीवन व्यतीत करने की वृत्ति के कारण आज का युवक स्वयं के विचारों की स्वतंत्रता, साथ ही स्वयं के अस्तित्व से वंचित और राजनेताआें के हाथ की कठपुतली बना हुआ है ।

अभिभावकों के पैसों पर मौज करनेवाला और अश्‍लील फिल्मों के व्यसन से ग्रस्त !

आज का युवक माता-पिताआें के पैसों के आधार पर पल रहा है । उसे फिल्मों और खेलों के संबंध में ऊंचे स्वर में चर्चा करने में बडप्पन प्रतीत हो रहा है । साहसिक खेलों में भाग लेकर शारीरिक संपत्ति प्राप्त करने की अपेक्षा रातभर गंदी फिल्में देखने के रोग से ग्रस्त होकर वह व्यसनों का भंडार बन रहा है ।
– प्र.दि. कुलकर्णी, पंढरपुर.

प्राणांतिक प्रतियोगिता, झटपट पैसे कमाना, महंगी गाडियां, असात्त्विक वेशभूषा और केशभूषा, विविध ‘डे’ मनाना, ‘पार्टियां’, ‘वीकएंड मनाना, चल-दूरभाष का दुरुपयोग, सेल्फी, अश्‍लील जालस्थल, पाश्‍चात्य संगीत और उसके कार्यक्रम, फिल्म और फिल्मी संगीत, पब, सिगरेट, तंबाकू, मादक पदार्थ और आत्महत्या जैसे अंधकार की गहरी खाई में ढकेलनेवाले सभी बातों पर आज के युवक-युवतियां बलि चढ रहे हैं ! हम यहां इसके कुछ प्रातिनिधिक उदाहरण देखेंगे।

मादक पदार्थ

‘आईआईटी कानपुर’ के सैकडों छात्र मादक पदार्थों के अधीन ! : प्रशासन द्वारा की गई आंतरिक जांच में ‘कानपुर की ‘आईआईटी’ संस्था में शिक्षा ले रहे सैकडों छात्र मादक पदार्थों के अधीन होने की बात सामने आई है । इस संदर्भ में आईआईटी के कार्यकारी निदेशक प्रा. मणिंद्र अगरवाल ने बताया, ‘‘यह हमारे लिए खतरे की घंटी है । इस विषय में जिलाधिकारी सुरेंद्र सिंह को जानकारी दी गई है । उन्होंने इस संदर्भ में कार्यवाही का आश्‍वासन दिया है ।’’ महाविद्यालय के एक तिहाई छात्र मदिरा पान करते हैं !

मदिरा पान

‘मेडिकल एंड एप्लाइड साइंस’ के ब्यौरे में दी गई जानकारी ! : ‘गोवा के महाविद्यालयों में शिक्षा ले रहे ३४.१० प्रतिशत (एक तिहाई) महाविद्यालयीन छात्र मदिरा पान करते हैं । इसमें छात्राआें का अनुपात ३१.८ प्रतिशत, तथा छात्रों का अनुपात ३९.१८ प्रतिशत है । महाविद्यालय के आधे से भी अधिक छात्रों ने बताया कि उन्हें मदिरा पान से होनेवाले दुष्परिणामों के संदर्भ में किसी ने भी नहीं बताया है । इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘मेडिकल एंड एप्लाइड साइंस’ में प्रकाशित ब्यौरे में यह समाचार दिया गया है, यह समाचार समाचार-पत्र ‘द गोवन वार्ता’ में प्रकाशित हुआ है ।

आत्महत्याएं

३ महीने में गोवा में २२ युवकों ने की आत्महत्या : छोटा राज्य गोवा ‘देश में होनेवाली सर्वाधिक आत्महत्याआें में ५ वें स्थान पर है । यहां फरवरी से मई २०१६ की अवधि में १६ से १८ आयुवर्ग समूह के २२ युवकों ने आत्महत्या की है ।

‘आईपीएल’ की मैच देखने पर हुए मां के टोकने से फांसी लगाकर लडके ने की आत्महत्या ! : ‘‘इंडियन प्रीमियर लीग’ का टी-२० क्रिकेट मैच देखते समय मां के टोकने से मुंबई स्थित नीलेश गुप्ता (आयु १८ वर्ष) ने फांसी लगाकर आत्महत्या की । जब उसकी मां ने उसे घर के बाहर की पानी की टंकी भरी है क्या, यह देखने के लिए कहा, तब मां से झगडा होने पर उसने आत्महत्या की ।’

इंटरनेट के अति उपयोग के कारण युवकों को ‘नेटब्रेन’ बीमारी होना !

‘आज के समय में सर्वत्र इंटरनेट का उपयोग इतना बढ गया है कि उसके कारण लोगों का एक-दूसरे से मिलना भी अत्यल्प हो गया है । प्रत्यक्ष मिलने की अपेक्षा एंड्रॉइड एप्लिकेशन्स, वॉट्स एप जैसे माध्यमों का उपयोग कर वे एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं; परंतु सभी का प्रिय इंटरनेट आजकल सभी की चिंता का विषय बन गया है । इंटरनेट का अति उपयोग करने के कारण समाज में मानसिक बीमारियों की मात्रा बहुत बढ गई है । एक सर्वेक्षण के अनुसार विश्‍व के अनुमानित २० करोड लोगों को इंटरनेट के अति उपयोग की बुरी आदत लग चुकी है । इनमें सबसे अधिक संख्या युवकों की होने से वे ‘नेटब्रेन’ नामक एक नई बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं । इस व्याधि के कारण व्यक्ति का समाज से दूर जाना तथा मानसिक स्तर पर अस्थिर होना जैसी मानसिक और सामाजिक समस्याएं प्रतिदिन बढ रही हैं ।’ (संदर्भ : मासिक ‘समाज प्र्रवाह’, १५ जुलाई २०१५)

कानों में चलता-फिरता हेडफोन लगाकर गाने सुनने का व्यसन !

कानों में चल-दूरभाष (मोबाइल) से जुडा हुआ ‘हेडफोन’ लगाकर गाने सुनते हुए अपने ही खयालों में घूमनेवाले युवक-युवतियां सर्वत्र देखने को मिलते हैं । आरंभ में केवल संपर्क का साधन रहे चल-दूरभाष का रूपांतरण आज ‘स्मार्टफोन’ में हुआ है । ‘स्मार्ट’ बने इस फोन में केवल एक ‘क्लिक’ पर अनेक सुविधाएं उपलब्ध होती हैं । हेडफोन लगाकर एफएम वाहिनियों अथवा चल-दूरभाष में संरक्षित गानों को हेडफोन लगाकर सुनना, यह इन्हीं में से एक सुविधा है । खाली समय में गाने सुननेवाले युवकों को आज उठते-बैठते और चलते-फिरते हेडफोन लगाकर गाने सुनने का मानो व्यसन ही लग गया है । कानों में ‘हेडफोन’ लगाकर कर्णकर्कश स्वर में गाने सुननेवालों की मानसिक व्याधियों में वृद्धि होती है, साथ ही श्रवणक्षमता पर भी सीधा परिणाम होता है । सुविधा के लिए बनाया गया चल-दूरभाष दुर्भाग्यवश आयु अल्प करनेवाला सिद्ध हो रहा है !

हिन्दू राष्ट्र-स्थापना का उच्च ध्येय सामने रखकर युवा शक्ति को उचित दिशा दिखानेवाले द्रष्टा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !