रक्षा (राखी) बंधन

१. इतिहास

अ. ‘पाताल के बलि राजा के हाथ पर राखी बांधकर, लक्ष्मी ने उन्हें अपना भाई बनाया एवं नारायण को मुक्त करवाया । वह दिन था श्रावण पूर्णिमा ।’
आ. भविष्यपुराण में बताए अनुसार रक्षाबंधन मूलतः राजाओं के लिए था । इतिहासकाल से राखी की एक नई पद्धति आरंभ हुई ।

२. भावनिक महत्त्व

यह राखी बहन द्वारा भाई के हाथ पर बांधी जानी चाहिए एवं उसके पीछे यह भूमिका होती है कि ‘भाई का उत्कर्ष हो और भाई बहन का संरक्षण करे ।’ बहन भाई को राखी बांधे, इससे अधिक महत्त्वपूर्ण है कोई युवती / स्त्री किसी युवक / पुरुष को राखी बांधे । इस कारण उनका, विशेषतः युवकों एवं पुरुषों का युवती अथवा स्त्री की ओर देखने की उनकी दृष्टि में परिवर्तन होता है ।

३. राखी बांधना

चावल, स्वर्ण एवं श्‍वेत सरसों को छोटी पोटली में एकत्रित बांधने से रक्षा अर्थात राखी बनती है ।

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

अर्थ : महाबलि एवं दानवेंद्र बलि राजा जिससे बद्ध हुआ, उस रक्षा से मैं तुम्हें भी बांधता हूं । हे राखी, तुम अडिग रहना ।

४. प्रार्थना करना

बहन भाई के कल्याण हेतु एवं भाई बहन के रक्षण हेतु प्रार्थना करें । साथ ही वे ईश्‍वर से यह भी प्रार्थना करें कि ‘राष्ट्र एवं धर्म के रक्षण हेतु हमसे प्रयत्न होने दीजिए’ ।

५. राखी के माध्यम से होनेवाला देवताओं का अनादर रोकिए !

आजकल राखी पर ‘ॐ’ अथवा देवताओं के छायाचित्र होते हैं । राखी का उपयोग करने के उपरांत वे अस्त-व्यस्त पडे हुए मिलते हैं । यह एक प्रकार सेे देवता एवं धर्मप्रतीकों का अपमान है, जिससेे पाप लगता है । इससे बचने के लिए राखी को जल में विसर्जित कर देना चाहिए !

(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र’)