रत के राष्ट्रीय सुरक्षा परामर्शदाता अजीत डोभाल की चीन के विदेशमंत्री से चर्चा हुई और चीनी सेना को, जो एक महीने से अधिक कालावधि तक सीमा पर संघर्ष कर रही थी; अंततः उसे २ कि.मी. पीछे हटना पडा । फिर भी, विस्तारवादी और कपटी चीन की इतनी-सी कार्यवाही से कोई संतुष्ट नहीं होगा । भारत और विश्व ने चीन को अनेक ओर से घेर लिया है ।
विस्तारवादी और विश्वासघाती चीन
जब भारत स्वतंत्र हुआ, उस समय चीन और प्राचीन काल से हिन्दू संस्कृतिवाले तिब्बत, भूटान, नेपाल ये स्वतंत्र राष्ट्र थे । परंतु, वर्ष १९५९ में चीन ने भारत के मित्र राष्ट्र तिब्बत को अपने देश का भू-भाग घोषित किया । इसी प्रकार, वर्ष १९६२ में भारत के एक अन्य भूभाग पर अधिकार कर उसे ‘अक्साई चीन’ नाम दिया । वर्ष २०१७ में डोकलाम को अपना बताकर उसपर अधिकार करने का प्रयत्न किया । इतना ही नहीं, अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र को चीन अपने नियंत्रण में लेना चाहता है । उपर्युक्त भूभाग चीन के मानचित्र में दिखाए गए
हैं । चीन ने नेपाल में फूट डालकर उसके एक गुट को अपना पूरा समर्थन दिया है । इसलिए अब नेपाल भारत से शत्रुतापूर्ण व्यवहार कर रहा है । अब उसकी कुदृष्टि भारत के लद्दाख पर है । यहां गलवान घाटी में धोखे से किए गए आक्रमण में २० भारतीय सैनिकों के बलिदान के पश्चात सीमा पर जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन को चेतावनी देते हुए कहा, ‘अब विस्तारवाद का युग समाप्त हो गया है ।’ चीन को पाठ पढाए बिना उसकी दुष्टता नहीं जाएगी । अतएव, सीमा पर सेना की वीरता दिखाकर तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुशल कूटनीति का परिचय देकर सरकार उसे कभी न भूलनेवाला पाठ पढाए ।
संपूर्ण बहिष्कार नीति पर चलना !
जब समूचा देश संगठित होता है और उसके मन में शत्रु राष्ट्र के विषय में प्रचंड विरोध उत्पन्न होता है, तब शत्रु राष्ट्र के पराजय का आरंभ अपनेआप हो जाता है । अंग्रेजों के भारत छोडने के प्रमुख कारणों में एक, भारत के सर्वसामान्य लोगों के मन में उनके प्रति उपजा रोष भी था । इस दृष्टि से चीनी वस्तुआें के बहिष्कार का स्वरूप अधिक व्यापक हुआ, तो उसका बहुत अच्छा प्रभाव
होगा । सरकार का चीनी प्रतिष्ठानों पर लगाया गया प्रतिबंध स्वागतयोग्य है । अब जनता को भी चाहिए कि वह इस कार्य के लिए सरकार को पूरा समर्थन दे । यदि ऐसा हुआ, तो धीरे-धीरे चीनी वस्तुआें का परित्याग होगा, जिससे चीन की आर्थिक घेराबंदी का अभियान १०० प्रतिशत सफल होगा । जिन्हें चीनी उत्पाद अत्यावश्यक लगते हैं, ऐसे ‘बजाज’ अथवा ‘मारुति’ जैसे उद्योगों को भी समय-समय पर फटकारने की तैयारी नागरिकों में होनी चाहिए । जिन उत्पादों के लिए हम चीन पर निर्भर हैं, उनका विकल्प भारत में बनाने के लिए सरकार को भी उचित प्रयत्न करने चाहिए । कोलकाता में चीनी प्रतिष्ठान से संबंधित एक अन्य प्रतिष्ठान ने ‘जोमाटो’ में पूंजीनिवेश किया, तो जोमाटो के कर्मचारियों ने जोमाटो के टी-शर्ट जलाए । उनका यह कार्य सामान्य जनता के लिए प्रेरणादायी है । ‘चीनी वस्तुएं कूडेदान में डालें’ यह ‘टि्वटर ट्रेंड’ भारत में प्रथम क्रमांक पर पहुंच गया है और लाखों राष्ट्रप्रेमियों ने चीनी वस्तुआें के बहिष्कार का अभियान पूरे देश में चलाया हुआ है ।
चीन समर्थित साम्यवादियों का षड्यंत्र विफल करें !
पिछले वर्ष महानगर देहली के विश्वविद्यालयों और विद्यार्थियों के माध्यम से देश में राष्ट्रविरोधी भावना भडकाने में चीन समर्थित भारत के तथाकथित साम्यवादी विचारक सफल रहे हैं । गत ४० वर्षों में इन साम्यवादी विचारकों ने एक ओर भारत के हिन्दुआें में फूट डालकर उन्हें हिन्दूद्वेषी और मुसलमानप्रेमी बनाया है, तो दूसरी ओर शहरी नक्सलवाद बढाया है । नक्सलवादियों को सीधे चीन से पैसा मिलने की बात अब किसी से छिपी नहीं है । यदि कल चीन ने भारत पर बडा आक्रमण किया, तो इन साम्यवादी विचारकों को थोडा भी बुरा नहीं लगेगा । देशविरोधी विचार फैलानेवाले और देशद्रोही गतिविधियों को प्रोत्साहन देनेवाले इन साम्यवादी विचारकों का सामाजिक प्रचार माध्यमों में वैचारिक प्रतिवाद कर, उन्हें वैधानिक मार्ग से दंड दिलाने के लिए सरकार को बाध्य करना चाहिए । सामान्य नागरिक उपर्युक्त दोनों कार्य कर, चीन से दो-दो हाथ निश्चित कर सकते हैं । इससे, सीमा पर लडनेवाले सैनिकों के प्रति कृतज्ञता और देशप्रेम का जागरण, ये दोनों कार्य साध्य होने में सहायता होगी !