परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

 ‘शारीरिक और मानसिक बल की अपेक्षा आध्‍यात्मिक बल श्रेष्‍ठ होते हुए भी हिन्‍दू साधना भूल जाने के कारण चुटकीभर धर्मांध और अंग्रेजों ने कुछ वर्षों में ही संपूर्ण भारत पर राज्‍यकिया  अब वैसा पुन: न हो; इसलिए हिन्‍दुआें को साधना करना अत्‍यंत आवश्‍यक है ।’ – (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित कार्यशाला में जिज्ञासुओं के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का मार्गदर्शन

परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी ‘स्‍पिरिच्‍युअल साइन्‍स रिसर्च फाउंडेशन’ संस्‍था के प्रेरणास्रोत हैं । पूरे विश्‍व में अध्‍यात्‍मप्रसार करने हेतु उन्‍होंने ‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ की स्‍थापना की है ।

पत्रकारिता की कोई भी शिक्षा न लेते हुए भी सनातन प्रभात के पत्रकार और संपादकों के लेखन से राष्‍ट्र और धर्म के संदर्भ में सुपरिणामकारक जागृति होना

सनातन प्रभात को ईश्‍वर और संतों के आशीर्वाद प्राप्‍त होने से वह चैतन्‍यमय हो गया है ।

परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी से संपादकीय शिक्षा लेते समय अनुभव हुई उनकी महानता !

सरकारी कार्यालय में ४ पंक्‍तियों का भी लेखन करना हो, तो उसके लिए हम ‘फुलसाइज पेपर’ का उपयोग करते थे; परंतु प.पू. गुरुदेवजी बहुत छोटे से तथा एक ओर लिखे कागद पर लिखकर वह कागद हमें देते थे ।

‘सनातन प्रभात’ के ध्‍येय वाक्‍य – ‘हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना’ को सार्थक बनाएं !

पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ की २१ वर्षों की तपस्‍या आज पूरी हुई है । संतों द्वारा दिए गए आशीर्वाद तथा ‘सनातन प्रभात’ से संबंधित साधकों द्वारा किए गए असीम त्‍याग के कारण ‘सनातन प्रभात’ हिन्‍दू समाज में निरंतर जागृति ला रहा है ।

परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्‍वी विचार

‘हमें ईश्‍वर की सहायता क्‍यों नहीं मिलती है ?’, इसका हिन्‍दू विचार करें तथा सहायता पाने के लिए साधना आरंभ करें ।’

परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्‍वी विचार

माया के विषय लोग शीघ्र भूल जाते हैं । इसलिए पहला और दूसरा विश्‍वयुद्ध ही नहीं, नोबल पुरस्‍कार प्राप्‍त करनेवाले शास्‍त्रों के नाम भी २५ से ५० वर्ष तक लोगों के स्‍मरण में नहीं रहते । इसके विपरीत, अध्‍यात्‍म का इतिहास और उसके ग्रंथ युगों-युगों तक मनुष्‍य के स्‍मरण में रहते हैं; क्‍योंकि वे मानव का मार्गदर्शन करते हैं !

दृश्‍यश्रव्‍य-चक्रिकाओं के माध्‍यम से भक्‍तों को हुए प.पू. बाबा के दर्शन !

गृहस्‍थाश्रमी होते हुए भी प.पू. बाबा योगीराज के रूप में भूतल पर अवतरित हुए !’’ इसमें परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने, प.पू. बाबा ने अपने गुरु श्री अनंतानंद साईश की सेवा कैसे की ? एक पैर पर खडे रहकर उन्‍होंने घंटों तक भजन कैसे गाए ?, इसके अनेक उदाहरण दिए हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘क्‍या एक भी समाचारपत्र समाज को त्‍याग करना सिखाता है ? केवल ‘सनातन प्रभात’ सिखाता है । इसलिए, ‘सनातन प्रभात’ के पाठकों की आध्‍यात्मिक प्रगति होती है, तो अन्‍य समाचारपत्रों के पाठक माया में फंसे रहते हैं ।’

आपातकाल में अखिल मानवजाति की प्राणरक्षा हेतु आवश्‍यक तैयारी करने के विषय में मार्गदर्शन करनेवाले एकमात्र परात्‍पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी !

आपातकालीन लेखमाला के इस भाग में हम पारिवारिक, आर्थिक और सामाजिक दायित्‍वों की तैयारी के विषय में समझने का प्रयास करेंगे । पारिवारिक स्‍तर पर विचार करते समय घर के विषय में, आर्थिक स्‍तर पर विचार करते समय संपत्ति के विषय में तथा सामाजिक दायित्‍व के अंतर्गत समाज के लिए हम क्‍या कर सकते हैं, इस विषय में जानकारी दी गई है ।