आपातकाल में अखिल मानवजाति की प्राणरक्षा हेतु आवश्‍यक तैयारी करने के विषय में मार्गदर्शन करनेवाले एकमात्र परात्‍पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी !

आपातकाल से पार होने के लिए साधना सिखानेवाली सनातन संस्था !

(परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले

     आपातकालीन लेखमाला के इस भाग में हम पारिवारिक, आर्थिक और सामाजिक दायित्‍वों की तैयारी के विषय में समझने का प्रयास करेंगे । पारिवारिक स्‍तर पर विचार करते समय घर के विषय में, आर्थिक स्‍तर पर विचार करते समय संपत्ति के विषय में तथा सामाजिक दायित्‍व के अंतर्गत समाज के लिए हम क्‍या कर सकते हैं, इस विषय में जानकारी दी गई है ।

लेखांक – ११

२. आपातकाल की दृष्‍टि से पारिवारिक स्‍तर पर की जानेवाली व्‍यवस्‍था  

२ अ. पारिवारिक स्‍तर पर आवश्‍यक व्‍यवस्‍था

२ अ १. घर के संदर्भ में किए जानेवाले कृत्‍य

२ अ १ अ. यथासंभव नया घर अथवा सदनिका (फ्‍लैट) क्रय न कर जिस पुराने निजी घर में रह रहे हैं, उसी में रहें अथवा भाडे के घर में रहें !

अ. भूकंप, भूस्‍खलन आदि से घर की हानि हो सकती है । इससे नया घर लेने में लगाई गई पूंजी व्‍यर्थ हो सकती है । इसलिए यथासंभव नया घर अथवा सदनिका (फ्‍लैट) क्रय न करें । अभी निजी घर अथवा भाडे के घर में अथवा सदनिका में रहें ।

आ. कुछ अपरिहार्य कारणों से घर अथवा सदनिका क्रय करना पडे, तो उसके लिए सुरक्षित प्रदेश चुनें ।

इ. सदनिका क्रय करनी ही पडे, तब तीसरे तल से ऊपर की न लें; क्‍योंकि भूकंप समान संकट आने पर तीसरे तल के लोगों के लिए शीघ्रता से नीचे खुले मैदान में जाना सरल होता है ।

ई. अभी किसी की सदनिका तीसरे तल से ऊपर है, तो वे अन्‍यत्र उचित सदनिका प्राप्‍त करने का प्रयास करें ।

२ अ २.  वर्तमान घर जीर्ण हो गया हो अथवा उसके कुछ प्रमुख भाग सुधारने आवश्‍यक हों, तो वह कार्य अवश्‍य करा लें ! : यदि आपका घर जीर्ण हो गया हो अथवा उसका कोई ऐसा महत्त्वपूर्ण भाग गिर गया हो जिसे अभी तक सुधारा नहीं गया हो, तब भविष्‍य में आपातकाल में भयानक बाढ, चक्रवात आदि आपदाएं आने पर घर की हानि हो सकती है अथवा वह गिर सकता है । आपातकाल में गिरे हुए घर को ठीक करवाना बहुत कठिन हो सकता है । इसलिए, ऐसा घर अभी तुरंत समय देकर ठीक करवाना उचित रहेगा ।

२ अ ३. वर्तमान में घर का विस्‍तार करने अथवा सजावट करने से बचें ! : आपातकाल में घरों की हानि हो सकती है । इसलिए घर का विस्‍तार अथवा सजावट करने में लगा पैसा व्‍यर्थ हो सकता है । इसलिए यह कार्य न करें । इस विषय में आपातकाल समाप्‍त होने पर विचार किया जा सकता है ।

२ अ ४.  गांव में पैतृक घर हो, तो उसे रहनेयोग्‍य बनाकर रखें ! : आगामी काल में तृतीय विश्‍वयुद्ध, आतंकवाद आदि से गांवों की अपेक्षा नगरों की हानि अधिक होगी । ऐसी परिस्‍थिति में गांव में जाकर रहना पड सकता है । इसलिए गांव में किसी का घर हो, तो उसे अभी से रहनेयोग्‍य बनाकर रखें ।

२ अ ५.  जिन नगरवासियों (शहरवासियों) का पैतृक घर अथवा भूमि गांव में नहीं है, वे अपनी सुविधानुसार किसी गांव में निवास की दृष्‍टि से विचार आरंभ करें !

२ अ ६.  शिक्षा, नौकरी आदि के निमित्त विदेश में रह रहे परिजनों को यथासंभव भारत बुला लें ! : भारत देश मूलतः पुण्‍यभूमि है । आगामी आपातकाल में भारत की अपेक्षा दूसरे देशों में हानि अधिक हो सकती है; क्‍योंकि विदेश में रज-तम अधिक है । इसी प्रकार, विश्‍वयुद्ध आरंभ होने पर विदेश से भारत सुरक्षित लौटना कठिन हो जाएगा ।

२ अ ७.  निधन के पश्‍चात पैतृक संपत्ति के विषय में परिजनों और संबंधियों में विवाद न हो, इसके लिए प्रौढ और वृद्ध व्‍यक्‍ति अपना मृत्‍युपत्र (वसीयतनामा) बनवा लें !

३. आर्थिक स्‍तर पर की जानेवाली व्‍यवस्‍था

३ अ. आज की आय और अब तक की बचत का उपयोग मितव्‍ययता से करने का उद्देश्‍य

१. आपातकाल में संभावित बढी हुई महंगाई का सामना करना

२. आपातकाल में सामाजिक कर्तव्‍य  के रूप में आपदाग्रस्‍त बंधुआें की आर्थिक सहायता करना

३. आपातकाल में राष्‍ट्रीय कर्तव्‍य के रूप में राष्‍ट्र को धन अर्पित करना

     द्वितीय विश्‍वयुद्ध के समय नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आवाहन पर अनेक देशवासियों ने अपना धन, पहने हुए अलंकार आदि ‘आजाद हिन्‍द सेना’ के लिए नेताजी की झोली में डाल दिए थे । आपातकाल में राष्‍ट्र का आर्थिक बोझ बहुत बढ जाता है; उदा. बडी मात्रा में युद्ध सामग्री खरीदनी अथवा बनानी पडती है । ऐसे समय राष्‍ट्र के लिए धन देना हमारा राष्‍ट्रीय कर्तव्‍य है ।

३ अ १. आर्थिक निवेश करते समय आगे दिए सूत्रों पर विचार करें : आजकल अनेक अधिकोषों के (बैंकों के) आर्थिक घोटाले उजागर हो रहे हैं । ऐसी स्‍थिति में अपनी पूंजी सुरक्षित रखने के लिए आगे दिए विकल्‍पों का विचार करें । पूंजी का निवेश ‘You should not put all eggs in one basket (भावार्थ : अपना पूंजी-निवेश एक स्‍थान में करने की अपेक्षा सुरक्षा की दृष्‍टि से अनेक स्‍थानों में करें ।)’ इस अर्थशास्‍त्रीय सिद्धांत के अनुसार करें ।

३ अ २. अधिकोषों (बैंकों) से संबंधित व्‍यवहार

३ अ २ अ. पूंजी-निवेश अलग-अलग राष्‍ट्रीयकृत अधिकोषों में करें !

१. राष्‍ट्रीयकृत अधिकोषों पर ‘रिजर्व बैंक’ का नियंत्रण रहता है । इसलिए, वे अधिकोष दिवालिया हो जाएं, तब भी हमारे पैसे डूबने की संभावना नहीं रहती; परंतु अधिकोषों से धन निकासी पर कुछ नियंत्रण रहता है, उदा. निर्धारित मात्रा में ही धन निकाला जा सकता है । इसके विपरीत, निजी अथवा सहकारी अधिकोष दिवालिया घोषित होने पर उनका दायित्‍व ‘रिजर्व बैंक’ पर नहीं होता; इसलिए डूबा हुआ पैसा मिलने की संभावना अत्‍यल्‍प रहती है ।

२. कोई अधिकोष दिवालिया हो जाए, तब हमारा पूरा पैसा न डूबे, इसके लिए अपने परिसर के अलग-अलग राष्‍ट्रीयकृत अधिकोषों में पैसा जमा करें । राष्‍ट्रीयकृत अधिकोषों में ५ लाख तक की जमापूंजी पर बीमा सुरक्षा मिलती है । इसलिए एक राष्‍ट्रीयकृत अधिकोष में अधिकतम ५ लाख रुपया जमा करें ।

३ आ. अन्‍य सूत्र

१. अपने सभी अधिकोष खातों में अपने उत्तराधिकारी का (नॉमिनी का) नाम लिखें ।

२. अधिकोष में पैसा जमा करना, पैसा निकालना आदि न्‍यूनतम कार्य परिजनोंको भी सिखाएं ।

३ आ १. सोने, चांदी आदि मूल्‍यवान वस्‍तुआें में निवेश करेेंं ! : आपातकाल में कभी-कभी अधिकोष से पैसे निकालने में समस्‍या हो सकती है; परंतु सोना, चांदी आदि मूल्‍यवान वस्‍तुएं हमारे पास ही रहती हैं । इससे लाभ यह होता है कि प्रसंगवश जब हमें धन की आवश्‍यकता होती है, तब हम उसका उपयोग कर सकते हैं ।

     किसी को निवेश के रूप में सोना अथवा चांदी खरीदना हो, तब वह अंगूठी, सिकडी जैसे अलंकार क्रय न कर, शुद्ध सोने की सिल्ली अथवा अखंड स्‍वरूप में चांदी क्रय करें । क्‍योंकि, इसमें अलंकार बनाने का पारिश्रमिक नहीं देना पडता ।

३ आ २. घर के लिए कुआं खोदना, सौरऊर्जा की व्‍यवस्‍था करना आदि व्‍यय भी एक प्रकार का निवेश है !

३ आ ३. भूमि में निवेश करना : जिन्‍हें संभव हो, वे कृषियोग्‍य भूमि खरीदें । एक व्‍यक्‍ति के लिए भूमि क्रय करना संभव न हो, तब कुछ लोग मिलकर भूमि क्रय कर सकते हैं । भूमि में निवेश का लाभ आज नहीं तो कल अवश्‍य मिलेगा ।

३ आ ४. जिन्‍होंने ‘शेयर’ में पैसे लगाए हैं, वे अभी से उपाययोजना बनाएं ! : ‘शेयर’ निजी प्रतिष्‍ठानों के होते हैं । उन्‍हें बेचने पर उस समय के बाजारभाव (मार्केट वैल्‍यू) के अनुसार पैसे मिलते हैं । ये शेयर खरीदते समय की धनराशि से अधिक धनराशि भी मिल सकती है और उससे अल्‍प भी मिल सकती है । यदि मूल धनराशि से अल्‍प धनराशि मिले, तो उतनी हानि सहनी पडती है । ‘शेयर’ में पूंजीनिवेश पर बीमासुरक्षा नहीं रहती तथा उसपर सरकार का नियंत्रण भी नहीं रहता । संक्षेप में कहें, तो ‘शेयर में निवेश की गई पूंजी पूर्णतः मिल ही जाएगी, यह निश्‍चित रूप से नहीं कहा जा सकता । इसलिए जिन्‍होंने ‘शेयर’ में पैसे लगाए हैं, वे अभी से उपाययोजना करें ।

३ इ. अन्‍य सूचना : आपातकाल में बढनेवाली महंगाई और परिजनों की संख्‍या का विचार कर, कुछ वर्ष तक हमारी आवश्‍यकताआें की पूर्ति हो, इतना धन घर में सुरक्षित रखें ।

४.  सामाजिक दायित्‍व के संदर्भ में की जानेवाली तैयारी

४ अ. चाल, गृहनिर्माण संस्‍था (हाउसिंग सोसाइटी), गांव का बाडा आदि स्‍थानों पर रहनेवालों द्वारा एकत्र तैयारी करने पर वह सभी के लिए लाभदायी होना : कुआं खोदना, सौरऊर्जा अथवा पवनऊर्जा प्रणाली लगाना, ‘बायो-गैस’ संंयंत्र लगाने जैसी तैयारियों में व्‍यक्‍तिगत स्‍तर पर अधिक व्‍यय (खर्च) होता है; परंतु यदि सब मिलकर करते हैं, तो वह अल्‍प समय और व्‍यय में हो जाता है । आपातकाल की दृष्‍टि से अनाज और अन्‍य जीवनावश्‍यक वस्‍तुएं प्रचुर मात्रा में खरीदनी होगी । सभी की आवश्‍यकताआें का विचार कर थोक में खरीदने पर उसमें अल्‍प व्‍यय होगा । इस प्रकार मिलकर तैयारी करने पर मनुष्‍यबल और समय की बचत होगी, इसके साथ ही आर्थिक दृष्‍टि से दुर्बल समाजबंधुुआें की भी सहायता होगी ।

४ आ. वस्‍तुएं खरीदते समय अभावग्रस्‍तों का भी विचार कर अतिरिक्‍त खरीदना : ‘वसुधैव कुटुम्‍बकम् । (अर्थ : पृथ्‍वी मेरा परिवार है ।)’, यह भारतीय संस्‍कृति की विशेषता है । इस अनुसार आपातकाल की दृष्‍टि से वस्‍तुएं खरीदते समय अपनी आर्थिक स्‍थिति अच्‍छी होने पर अपने साथ समाज के अभावग्रस्‍तों का भी विचार कर उनके लिए अन्‍न, वस्‍त्र इत्‍यादि अतिरिक्‍त मात्रा में खरीदें । ये वस्‍तुएं आपातकाल में फंसे तथा निर्धन लोगों को दी जा सकती हैं । भारत-पाकिस्‍तान युद्ध के समय कुछ भारतीय नागरिकों ने स्‍वयंप्रेरणा से विविध रेेलवे स्‍थानकों पर भारतीय सैनिकों के लिए चाय-पानी की व्‍यवस्‍था की थी । वर्ष २०२० में ‘कोरोना’ विषाणु के कारण उत्‍पन्‍न संकट के समय देश में एकाएक ‘संचारबंदी’ लागू हो गई । इसलिए अनेक श्रमिक, ट्रकचालक इत्‍यादि विविध प्रांतों में अटक गए । तब अनेक भारतीयों ने अपनी ओर से उन्‍हें भोजन करवाया । ‘हिन्‍दू जनजागृति समिति’ जैसे संगठनों ने अभावग्रस्‍तों में फल, शरबत इत्‍यादि का वितरण किया । अनेक दानवीर, मंडल और संस्‍थाआें ने शासन को सहायताकार्य के लिए धनराशि भी दी ।

४ इ. अभावग्रस्‍तों के लिए वस्‍तुएं खरीदने की क्षमता न हो, तो आपातकाल में अपनी आवश्‍यकताआें की पूर्ति हो, केवल इतनी ही खरीदेें : आपातकाल के पूर्व सभी को परिवार के लिए अन्‍न, वस्‍त्र, औषधि इत्‍यादि खरीदनी होगी । एक ही समय पर सभी बडी मात्रा में खरीदेंगे, तो वस्‍तुआें का अभाव निर्माण हो सकता है । ‘हमारे समान समाजबंधुआें को भी सर्व वस्‍तुएं उपलब्‍ध होनी चाहिए’, यह विचार कर आपातकाल की दृष्‍टि से इतना ही खरीदें. जिससे अपनी आवश्‍यकताआें की पूर्ति हो ।

४ ई. अपने ज्ञान का उपयोग अभावग्रस्‍तों की सहायता के लिए करना : वैद्य, कृषि, अनाज के व्‍यापारी इत्‍यादि का उनके अपने क्षेत्र के विषयों का अच्‍छा अध्‍ययन होता हैैैै । ऐसे लोग अपने ज्ञान का उपयोग अभावग्रस्‍तों की सहायता के लिए कर सकते हैं, उदा. वैद्य औषधि वनस्‍पतियोें की बागवानी के विषय में, किसान फल-सब्‍जियों के विषय में, जबकि अनाज के व्‍यापारी अनाज को उत्तम ढंग से रखने के विषय में अभावग्रस्‍तों को बता सकते हैं ।

५. आपातकाल की दृष्‍टि से आवश्‍यक तैयारी तथा सावधानी

५ अ. घर में अनावश्‍यक सामग्री हटाना आरंभ करना ! : आपातकाल की तैयारी के लिए घर में अनेक वस्‍तुआें को एकत्र करना होगा । उस समय आपदा में फंसे किसी परिजन अथवा समाजबंधु को अपने घर में आश्रय भी देना पड सकता है । इसके लिए अपने घर से अनावश्‍यक सामग्री हटाना आरंभ करें । इससे घर में खुला स्‍थान होगा । अनावश्‍यक सामग्री हटाने से वस्‍तुआें के प्रति आसक्ति घटने में भी सहायता होगी ।

५ आ. चल-दूरभाष के (मोबाइल के) संदर्भ मेें तैयारी

१. दो अलग-अलग प्रतिष्‍ठानों के ‘सिम कार्ड’ वाले चल-दूरभाष का प्रयोग करना

            इसका लाभ यह है कि कभी किसी प्रतिष्‍ठान की ‘रेंज’ न मिले, तो दूसरे प्रतिष्‍ठान की ‘रेंज’ मिलने की संभावना होती है ।

२. संभव हो तो चल-दूरभाष के २ संच (सेट) रखना : एक संच (सेट) की ‘बैटरी’ समाप्‍त होने पर दूसरे संच का उपयोग हो सकता है ।

५ इ. संबंधी, ‘फैमिली डॉक्‍टर’ आदि महत्त्वपूर्ण व्‍यक्‍ति, पुलिस स्‍थानक (स्‍टेशन), अग्‍निशमन दल इत्‍यादि के दूरभाष क्रमांक और पते चल-दूरभाष और छोटी बही में लिखकर रखना : आपातकाल में यदि हमारा चल-दूरभाष भारित (चार्ज) न हो, तो उसका उपयोग नहीं होगा । इसके लिए आवश्‍यक दूरभाष क्रमांक और पते चल-दूरभाष के साथ ही एक छोटी बही में लिखकर रखना उपयुक्‍त होगा । यह छोटी बही सदैव अपने साथ रखें । इससे अन्‍य मार्ग से, उदा. दूसरों के चल-दूरभाष से हम अन्‍यों को संपर्क कर सकते हैं । महत्त्वपूर्ण नाम और संपर्र्क क्रमांक कंठस्‍थ कर लें ।

५ ई. महत्त्वपूर्ण कागजात के विषय में आवश्‍यक सावधानी : आपातकाल की भागदौड में अपने महत्त्वपूर्ण कागजात (उदा. राशनकार्ड, आधारकार्ड, अधिकोष की ‘पासबुक’) गुम हो सकती हैं । इसलिए पूर्वतैयारी के रूप में ऐसे कागजातों की छायाप्रति (जेरॉक्‍स) निकालकर अन्‍यत्र (उदा. निकट संबंधियों के घर) रखें, इसके साथ ही कागजातों के छायाचित्र खींचकर रखें ।

५ उ. व्‍यक्‍तिगत अथवा प्रतिष्‍ठान के संगणकों की महत्त्वपूर्ण जानकारी (डेटा) अन्‍य स्‍थानों के संगणकों पर लेकर रखना : आपातकाल में अपने घर अथवा प्रतिष्‍ठान के क्षतिग्रस्‍त होने पर, संगणकों की महत्त्वपूर्ण जानकारी अन्‍यत्र रखने से वह पुन: प्राप्‍त हो सकेगी । प्रतिष्‍ठान के संगणकों की जानकारी अन्‍यत्र रखने से पूर्व, प्रतिष्‍ठान के उत्तरदायी अधिकारियों को संभावित संकट की सूचना देकर उनसे विधिवत अनुमति लें अथवा उन्‍हें ही जानकारी अन्‍यत्र रखने के विषय में सुझाएं ।

५ ऊ. आपातकाल के लिए उपयुक्‍त बातें अभी से सीखकर उनका अभ्‍यास भी करना : जिन्‍हें रसोई बनानी नहीं आती वे जितना आवश्‍यक है, उतनी रसोई बनाना तो सीख लें । (उदा. दाल-चावल, खिचडी इत्‍यादि सरल भोजन बनाना), केशकर्तन, तैराकी, सिलाईयंत्र पर कपडे सिलना इत्‍यादि सीखना लाभकारी है ।

५ ए. घर की रक्षा के लिए कुत्ता पालना : चोर, दंगाईयों इत्‍यादि से घर की रक्षा होने के लिए कुत्ता पालें । कुत्ते की देखभाल एवं उसपर औषधोपचार करना सीख लें ।                                                                                                                                                   (समाप्‍त)

संदर्भ : सनातन की आगामी ग्रंथमाला ‘आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्‍यक तैयारी’

(प्रस्‍तुत लेखमाला के सर्वाधिकार (कॉपीराइट) ‘सनातन भारतीय संस्‍कृति संस्‍था’ के पास सुरक्षित हैं ।)