आगामी आपातकाल में जीवित रहने के लिए पहले से की जानेवाली व्यवस्था

विश्‍वयुद्ध, भूकंप, विकराल बाढ आदि के रूप में महाभीषण आपातकाल तो अभी आना शेष है । यह महाभीषण आपातकाल निश्‍चित आएगा, यह बात अनेक नाडीभविष्यकारों और द्रष्टा साधु-संतों ने बहुत पहले ही बता दी है । उन संकटों की आहट अब सुनाई देने लगी है ।

आगामी भीषण आपातकाल में स्वास्थ्य रक्षा हेतु उपयुक्त औषधीय वनस्पतियों का रोपण अभी से करें !

संकटकाल में औषधीय वनस्पतियों का उपयोग कर, हमें स्वास्थ्यरक्षा करनी पडेगी । उचित समय पर उचित औषधीय वनस्पतियां उपलब्ध होने हेतु वे हमारे आसपास होनी चाहिए । इसके लिए अभी से ऐसी वनस्पतियों का रोपण करना समय की मांग है ।

संकटकालीन स्थिति में (कोरोना की पृष्ठभूमि पर) धर्मशास्त्र के अनुसार गुरुपूर्णिमा मनाने की पद्धति !

इस वर्ष कोरोना संकट की पृष्ठभूमि पर हमने घर पर रहकर ही भक्तिभाव से श्री गुरुदेवजी के छायाचित्र का पूजन अथवा मानसपूजन किया, तब भी हमें गुरुतत्त्व का एक सहस्र गुना लाभ मिलेगा ।

घोर आपातकाल में नई-नई आध्यात्मिक उपचार-पद्धतियों का शोध कर मानवजाति के कल्याण हेतु परिश्रम करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

सामान्य लोगों में अपने आस-पास अथवा हमारे जीवन में होनेवाली गतिविधियों के संदर्भ में जानने की जिज्ञासा होती है । आगे की साधनायात्रा में साधक के मन में मैं कहां से आया, मेरा लक्ष्य क्या है, मुझे कहां जाना है ? आदि प्रश्‍न उठते रहते हैं ।

उच्च कोटि की जिज्ञासा के कारण सूक्ष्म जगत से संबंधित अमूल्य ज्ञान का कोष मानवजाति को उपलब्ध करानेवाले ज्ञानगुरु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

प्राणशक्ति (जीवनी शक्ति) बहुत अल्प होने पर भी परात्पर गुरु डॉक्टरजी अपने आसपास होनेवाली प्रत्येक घटना का निरीक्षण करते रहते हैं और उनके विषय में तुरंत लिखकर रखते हैं । ऐसे प्रत्येक निरीक्षण के विषय में वे साधकों से बात कर उससे संबंधित छोटी-छोटी बातें समझ लेते हैं ।

सर्वज्ञ होते हुए भी जिज्ञासा से प्रत्येक कृत्य के पीछे का शास्त्र समझनेवाले गुरुदेवजी !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में ३० अप्रैल २००८ को वेद, शास्त्र आदि अध्ययन करनेवालों के लिए ‘सनातन पुरोहित पाठशाला’ स्थापित की गई । ‘प्रत्येक धार्मिक विधि शास्त्र समझकर ‘साधना’ के रूप में करनी चाहिए’, इस संबंध में परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने यहां शिक्षा ग्रहण करनेवालों का मार्गदर्शन किया है ।

विविध संतों के मार्गदर्शन अनुसार प्रत्यक्ष आचरण कर अध्यात्मशास्त्र का अध्ययन करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

डहाणू के प.पू. अण्णा करंदीकरजी आयुर्वेदिक चिकित्सालय में रोगियों को देखने के लिए प्रतिमास ३ दिन दादर आते थे । तब प.पू. डॉक्टरजी के एक मित्र ने उन्हें प.पू. अण्णा करंदीकरजी की जानकारी दी ।

सनातन पर अखंड कृपावर्षा करनेवाले कृपावत्सल प.पू. भक्तराज महाराज !

प्रत्यक्ष में १.८.१९९१ को प.पू. भक्तराज महाराजजी की कृपा से ‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’ की स्थापना हुई । तत्पश्‍चात प.पू. डॉक्टरजी द्वारा लिए अभ्यासवर्ग, गुरुपूर्णिमा महोत्सव तथा वर्ष १९९६ से वर्ष १९९८ की अवधि में ली गई सैकडों सभाओं से सहस्त्रों जिज्ञासु और साधक संस्था से जुड गए ।

मनुष्य की बर्बरता

‘हाथी मेरे साथी’ चलचित्र १९७० के दशक में बहुत चला था । परंतु, केरल में घटित हृदयद्रावक घटना के पश्‍चात ‘कौन मेरे साथी’ यह प्रश्‍न हाथियों के मन में आया होगा । केरल के मल्लपुरम् जनपद में एक भूखी गर्भवती हथिनी भोजन की खोज में वन से बाहर निकली ।

चुनौती – जम्मू और कश्मीर के छुपे युद्ध की: कश्मीर की भीषण समस्या समझने का सरल मार्ग है!

भारत को हानि पहुंचा सकनेवाले कौन-कौनसे धोके इस काल के उदर में छिपे हैं, यह जानकारी प्रत्येक समझदार नागरिक को होनी चाहिए; परंतु यह सहजता से उपलब्ध होनेवाली नहीं है ।