संकटकालीन स्थिति में (कोरोना की पृष्ठभूमि पर) धर्मशास्त्र के अनुसार गुरुपूर्णिमा मनाने की पद्धति !

श्री. सिद्धेश करंदीकर

‘५.७.२०२० को व्यासपूर्णिमा अर्थात गुरुपूर्णिमा है । प्रतिवर्ष अनेक लोग एकत्रित होकर अपने-अपने संप्रदाय के अनुसार गुरुपूर्णिमा महोत्सव मनाते हैं; परंतु इस वर्ष कोरोना विषाणु के प्रकोप के कारण हम एकत्रित होकर गुरुपूर्णिमा महोत्सव नहीं मना सकते हैं । धर्मशास्त्र में इस विषय में बताए गए विकल्प आगे दिए गए हैं    –

१. गुरुपूर्णिमा के दिन सभी को अपने-अपने घर भक्तिभाव के साथ
गुरुपूजन अथवा मानसपूजा करने पर भी गुरुतत्त्व का एक सहस्र गुना लाभ मिलना

गुरुपूर्णिमा के दिन अधिकांश साधक अपने श्री गुरुदेवजी के पास जाकर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं । प्रत्येक व्यक्ति की श्रद्धा के अनुसार कुछ लोग श्री गुरु, कुछ माता-पिता, कुछ विद्यागुरु (जिन्होंने हमें ज्ञान दिया, वे शिक्षक), कुछ आचार्यगुरु (हमारे यहां पारंपरिक पूजा के लिए आनेवाले गुरुजी), तो कुछ लोग मोक्षगुरु (जिन्होंने हमें साधना की दिशा प्रदान कर मोक्ष का मार्ग दिखाया, वे श्री गुरु) के पास जाकर उनके चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करते हैं  । इस वर्ष कोरोना संकट की पृष्ठभूमि पर हमने घर पर रहकर ही भक्तिभाव से श्री गुरुदेवजी के छायाचित्र का पूजन अथवा मानसपूजन किया, तब भी हमें गुरुतत्त्व का एक सहस्र गुना लाभ मिलेगा । प्रत्येक व्यक्ति की श्रद्धा के अनुसार भले ही इष्टदेवता, संत अथवा श्री गुरु अलग हों; परंतु गुरुतत्त्व एक ही होता है ।

२. सभी भक्तों ने एक ही समय पूजन किया, तो उससे संगठित शक्ति का लाभ मिलना

संप्रदाय के सभी भक्त पूजन का एक विशिष्ट समय सुनिश्‍चित कर संभवतः उसी समय अपने-अपने घरों में पूजन करें । एक ही समय पूजन करने से संगठित शक्ति का अधिक लाभ मिलता है । अतः सर्वानुमत से संभवतः एक ही समय सुनिश्‍चित कर उस समय पूजन करें ।

अ. सवेरे का समय पूजन हेतु उत्तम माना गया है । जिन्हें सवेरे पूजन करना संभव है, वे सवेरे का समय सुनिश्‍चित कर उस समय पूजन करें ।

आ. कुछ अपरिहार्य कारण से जिन्हें सवेरे पूजन करना संभव नहीं है, वे सायंकाल का एक समय सुनिश्‍चित कर उस समय; परंतु सूर्यास्त से पहले अर्थात सायंकाल ७ बजे से पहले पूजन करें ।

इ. जिन्हें निर्धारित समय में पूजन करना संभव नहीं है, वे अपनी सुविधा के अनुसार; परंतु सूर्यास्त से पहले पूजन करें ।

ई. सभी साधक घर पर ही अपने-अपने संप्रदाय के अनुसार श्री गुरु अथवा इष्टदेवता की प्रतिमा, मूर्ति अथवा पादुकाओं का पूजन करें ।

उ. चित्र, मूर्ति अथवा पादुकाओं को चंदन लगाकर पुष्प समर्पित करें । धूप, दीप एवं भोग लगाकर पंचोपचार पूजन करें और उसके पश्‍चात श्री गुरुदेवजी की आरती उतारें ।

ऊ. जिन्हें सामग्री के अभाव में प्रत्यक्ष पूजा करना संभव नहीं है, वे श्री गुरु अथवा इष्टदेवता का मानसपूजन करें ।

ए. उसके पश्‍चात श्री गुरुदेवजी द्वारा दिए गए मंत्र का जप करें । जब से हमारे जीवन में श्री गुरुदेवजी आए तब से जो अनुभूतियां हुई हैं, उनका हम स्मरण कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें ।

ऐ. इस समय, ‘पिछले वर्ष हम साधना में कहां अल्प पडे, हमने श्री गुरुदेवजी के सीख का प्रत्यक्ष रूप में कितना आचरण किया’, इसका भी अवलोकन कर उस पर चिंतन करें ।’

– श्री. सिद्धेश करंदीकर, पुरोहित पाठशाला, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१४.६.२०२०)