मंदिर के पुजारी अर्ध-नग्न, फिर भक्तों के कपडों पर प्रतिबंध क्यों ?’

जिसे अध्‍यात्‍म की गंध भी नहीं मालूम, उस तृप्‍ति देसाई द्वारा अध्‍ययनहीन आलोचना !

     मुंबई (महाराष्‍ट्र) – मंदिरों में पुजारी अर्धनग्‍न होते हैं, फिर भक्‍तों के कपडों पर प्रतिबंध क्‍यों लगाया जाता है ?’ ऐसा प्रश्‍न, शिरडी के श्री साई संस्‍थान से तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता, तृप्‍ति देसाई ने पूछा है । भक्‍तों ने शिरडी के श्री साई देवस्‍थान में अल्‍प वस्‍त्रों का परिधान कर दर्शन के लिए आने की शिकायत की थी । इसीलिए, श्री साई बाबा देवस्‍थान ने, मंदिर में सभ्‍यतापूर्ण कपडे पहनकर आने की अपील की है । तृप्‍ति देसाई ने इसकी आलोचना की है । (३.१२.२०२०)

मंदिर की वस्‍त्रसंहिता नग्‍नता से नहीं; धर्मशास्‍त्र से संबंधित ! – हिन्‍दू जनजागृति समिति

     मुंबई – श्री साईबाबा संस्‍थान ने हाल ही में श्रद्धालुओं को भारतीय संस्‍कृति के अनुसार सभ्‍यतापूर्ण वस्‍त्र परिधान करने का आवाहन किया । हिन्‍दू जनजागृति समिति के महाराष्‍ट्र तथा छत्तीसगढ राज्‍य के संगठक श्री. सुनील घनवट ने प्रेस विज्ञप्‍ति में आगे कहा, मंदिर के पुजारी अर्धनग्‍न होते हैं, ऐसी अर्थहीन टिप्‍पणी करनेवाले आधुनिकतावादी, यह भी ढंग से नहीं पढते कि संस्‍थान ने क्‍या आवाहन किया है । संस्‍थान ने कहीं भी तंग कपडों का उल्लेख नहीं किया है । पुरुष-महिला ऐसा भी उल्लेख नहीं किया है । तब भी आधुनिकतावादियों ने यह ‘पब्‍लिसिटी स्‍टंट’ किया है । पुलिस का खाकी गणवेश, वकीलों का काला कोट, ये सब धर्मनिरपेक्ष शासन द्वारा बनाए गए ‘ड्रेसकोड’ स्‍वीकार हैं; परंतु मंदिर द्वारा संस्‍कृतिप्रधान वस्‍त्र पहनने का केवल आवाहन भी स्‍वीकार नहीं । यह आधुनिकतावादियों का भारतीय संस्‍कृतिद्वेष ही है ।