भजन, मंत्र, वेद और नामजप करते हुआ होगा महिलाओं का प्रसव
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वाराणसी – भारत के प्रसिद्ध बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विज्ञान विभाग ने ‘गर्भसंस्कार चिकित्सा’ नाम से एक विशेष चिकित्सा पद्धति का आरंभ की है । माता के गर्भ में पल रहे भ्रूण को उसके जन्म से पहले ही अच्छे संस्कार मिलें, इस चिकित्सा का यही उद्देश्य है । गर्भवती महिलाओं पर वेद, ध्यानधारणा, आध्यात्मिक संगीत, साथ ही पूजापाठ की ‘थेरपी’ की (चिकित्सा का) सहायता से गर्भ में पल रहे भ्रूण का पालन-पोषण किया जाएगा ।
विश्वविद्यालय के अंतर्गत सुंदर लाल चिकित्सालय के चिकित्सकीय अधीक्षक प्रा. एसके माथुर ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि
१. गर्भसंस्कार कोई नई प्रक्रिया नहीं है । आयुर्वेद के अनुसार सहस्रों वर्षाें से इसका अनुसरण होता आया है; परंतु (आधुनिक) वैज्ञानिक स्वीकृति न होने से इस प्रक्रिया को अपेक्षित महत्त्व प्राप्त नहीं हो सका था ।
२. प्रसव विभाग के अंतर्गत हम गर्भसंस्कारों को नए उत्साह के साथ आरंभ कर रहे हैं । गर्भवती महिलाओं के लिए ये संस्कार आवश्यक होते हैं ।
३. सितंबर महीने के अंत में इस प्रक्रिया को आरंभ किया गया था । अब यह प्रक्रिया पूर्णरूप से क्रियान्वित की गई है ।
४. विज्ञान ने इसे बहुत पहले स्वीकार किया है कि गर्भ पर अच्छा संगीत और अच्छे वातावरण का सकारात्मक प्रभाव पडता है । अब इस गर्भसंस्कार के कारण गर्भ पर होनेवाले परिणाम का वैज्ञानिक स्तर पर अध्ययन किया जाएगा ।
‘गर्भसंस्कार चिकित्सा’ की प्रक्रिया में क्या होगा ?आयुर्वेद विभाग के अंतर्गत आनेवाले प्रसवतंत्र उपविभाग की प्रमुख डॉ. सुनीता सुमन ने इस चिकित्सा की जानकारी देते हुए बताया, ‘‘आयुर्वेद में कुल १६ संस्कारों का उल्लेख है । इनमें से ‘गर्भसंस्कार’ अत्यंत महत्त्वपूर्ण संस्कार माना जाता है । इस चिकित्सा के अंतर्गत महिलाओं को वेदनपठन सिखाया जाता है । चिकित्सालय में भर्ती महिलाओं को भजन सुनाए जाते हैं । उन्हें महापुरुषों से संबंधित साहित्य पढने के लिए दिया जाता है । यह पूरी प्रक्रिया गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत बडा वरदान सिद्ध होगी ।’’ |