सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
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‘प्राचीन काल में हिन्दू धर्माचरण करते थे एवं धर्मिभिमानी भी थे, इस कारण ‘धर्माे रक्षति रक्षितः ।’ (मनुस्मृति, अध्याय ८, श्लोक १५) अर्थात ‘धर्म की रक्षा करनेवाले की रक्षा धर्म अर्थात ईश्वर करते हैं’, यह सिद्धांत उनपर लागू होता था । वर्तमान काल में हिन्दू धर्माचरण नहीं करते और उनमें धर्माभिमान भी नहीं है । इस कारण आगामी आपातकाल में आपकी तथा धर्म की रक्षा करने हेतु साधना करें’, ऐसा उन्हें बताना पड रहा है ।
✍️ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक संपादक, ‘सनातन प्रभातʼ नियतकालिके