परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘एक अरबपति का बेटा अपनी पूरी संपत्ती गंवा दे, उस प्रकार हिन्दुओं की पिछली पीढ़ियों ने पूरी धर्मसंपत्ती मिट्टी में मिला दी है !’
‘एक अरबपति का बेटा अपनी पूरी संपत्ती गंवा दे, उस प्रकार हिन्दुओं की पिछली पीढ़ियों ने पूरी धर्मसंपत्ती मिट्टी में मिला दी है !’
व्यक्तिगत जीवन हेतु अधिक पैसे मिलते हैं; इसलिए सभी आनंद से अधिक समय (ओवरटाइम) काम करते हैं; परन्तु राष्ट्र और धर्म के लिए १ घंटा सेवा करने के लिए कोई तैयार नहीं होता !’
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में मैं सहायता करूंगा’, ऐसा दृष्टिकोण न रखें; अपितु यह मेरा ही कार्य है, ऐसा दृष्टिकोण रखें ! ऐसा दृष्टिकोण रखने पर कार्य अच्छे से होता है और स्वयं की भी प्रगति होती है ।
‘पहले लोगों को लगता था कि, ‘हिन्दू राष्ट्र’ एक सपना है । ‘हिन्दू राष्ट्र’ कभी भी स्थापित नहीं हो सकता’; परंतु अब अनेक लोगों को लगता है कि ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना निश्चित ही होगी ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
हिन्दू राष्ट्र (ईश्वरीय राज्य) में नियतकालिक, दूरदर्शन वाहिनियां, जालस्थल इ. का उपयोग केवल धर्मशिक्षा तथा साधना हेतु किया जाएगा । इसलिए तब अपराधी नहीं होंगे तथा सभी लोग ईश्वर के आंतरिक सान्निध्य में रहने के कारण आनंद में होंगे ।
हिन्दू (ईश्वरीय)राष्ट्र की शिक्षाप्रणाली कैसी होगी ?, यह प्रश्न कुछ लोग पूछते हैं । उसका उत्तर है, जिस प्रकार नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों में १४ विद्याएं और ६४ कलाएं सिखाए जाते थे,उसी प्रकार की शिक्षा दी जाएगी; परंतु उनमें इस माध्यम से ईश्वरप्राप्ति कैसे करनी है ?, यह भी सिखाया जाएगा ।
‘अडचन के समय सहायता होने हेतु हम अधिकोष (बैंक) में पैसे रखते हैं । उसी प्रकार संकट के समय में सहायता मिलने के लिए साधना का संग्रह होना आवश्यक है । इससे संकट के समय हमें सहायता मिलती है ।’
‘शारीरिक और मानसिक बल की अपेक्षा आध्यात्मिक बल श्रेष्ठ होते हुए भी हिन्दू साधना भूल जाने के कारण चुटकीभर धर्मांध और अंग्रेजों ने कुछ वर्षों में ही संपूर्ण भारत पर राज्यकिया अब वैसा पुन: न हो; इसलिए हिन्दुआें को साधना करना अत्यंत आवश्यक है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
सनातन प्रभात के लिए समाचार संकलन, वितरण, लेखा रखना इत्यादि सेवा करने से समष्टि पुण्य मिलता है । यह सेवा करनेवाले कुछ साधकों की आध्यात्मिक उन्नति भी हुई है ।’
– परात्पर गुरु परशराम पांडे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (११.९.२०१६)
माया के विषय लोग शीघ्र भूल जाते हैं । इसलिए पहला और दूसरा विश्वयुद्ध ही नहीं, नोबल पुरस्कार प्राप्त करनेवाले शास्त्रों के नाम भी २५ से ५० वर्ष तक लोगों के स्मरण में नहीं रहते । इसके विपरीत, अध्यात्म का इतिहास और उसके ग्रंथ युगों-युगों तक मनुष्य के स्मरण में रहते हैं; क्योंकि वे मानव का मार्गदर्शन करते हैं !