परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

परात्पर गुरु डॉ. आठवले

वर्तमान पीढी की कृतघ्‍नता !

     ‘धर्मशिक्षा एवं साधना के अभाववश कृतघ्‍न बनी वर्तमान पीढी को माता-पिता की संपत्ति चाहिए; परंतु वृद्ध माता-पिता की सेवा नहीं करनी ।’

     ‘शरीर का डीलडौल, स्‍वभाव के गुण-दोष, कला, बुद्धि, धन इत्‍यादि घटक ७५० करोड में से २ व्‍यक्‍तियों में भी समान नहीं होते । ऐसे में ‘साम्‍यवाद’ शब्‍द का कोई अर्थ है क्‍या ?’

‘हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना’ के विषय में उचित दृष्‍टिकोण !

    ‘हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना के कार्य में मैं सहायता करूंगा’, ऐसा दृष्‍टिकोण न रखें; अपितु यह मेरा ही कार्य है, ऐसा दृष्‍टिकोण रखें ! ऐसा दृष्‍टिकोण रखने पर कार्य अच्‍छे से होता है और स्‍वयं की भी प्रगति होती है ।’

हिन्‍दू राष्‍ट्र के विषय में परिवर्तित होता दृष्‍टिकोण !

     ‘पहले लोगों को लगता था कि ‘हिन्‍दू राष्‍ट्र’ एक सपना है । ‘हिन्‍दू राष्‍ट्र्र’ कभी भी स्‍थापित नहीं हो सकता’; परंतु अब अनेक लोगों को लगता है कि ‘हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना निश्‍चित ही होगी ।’

– (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले