परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

  • ‘हिन्‍दू राष्‍ट्र (ईश्‍वरीय राज्‍य) में नियतकालिक, दूरदर्शन वाहिनियां, जालस्‍थल इ. का उपयोग केवल धर्मशिक्षा तथा साधना हेतु किया जाएगा । इसलिए तब अपराधी नहीं होंगे तथा सभी लोग ईश्‍वर के आंतरिक सान्‍निध्‍य में रहने के कारण आनंद में होंगे ।’
  • ‘अडचनों के समय सहायता मिलने हेतु हम अधिकोष में (बैंक में) पैसे रखते हैं । उसी प्रकार संकट के समय सहायता मिलने हेतु साधना का संग्रह होना आवश्यक है । जिससे संकट के समय हमें सहायता मिलती है ।’
  • ‘खरा सुख केवल साधना से ही मिलता है । भ्रष्‍ट मार्ग से कमाए हुए पैसों से नहीं !’
  • ‘शरीर के कीटाणु औषधि लेने से मर जाते हैं । उसी प्रकार वातावरण का नकारात्‍मक रज-तम यज्ञ के स्‍थूल और सूक्ष्म धुएं से नष्‍ट होता है ।’
  • ‘पाश्‍चात्‍य देश माया में आगे बढना सिखाते हैं तथा भारत ईश्‍वरप्राप्ति के मार्ग मेंआगे बढना सिखाता है !’
  • ‘ईश्‍वर और साधना पर विश्‍वास न होने पर भी प्रत्‍येक व्‍यक्ति चिरंतन आनंद चाहता है। वह केवल साधना से ही मिलता है । एक बार यह ध्‍यान में आ जाए कि साधना के अतिरिक्‍त अन्‍य विकल्‍प नहीं है, तब मानव साधना की ओर मुडता है ।’
  • ‘ईश्‍वर में स्‍वभावदोष और अहं नहीं होता । उनसे एकरूप होना हो, तो हममें भी वह नहीं होना चाहिए ।’
  • ‘बुद्धिजीवियों का बुद्धि से परे के भगवान नहीं होते’, यह कहना वैसा ही है, जैसे आंगनवाडी के बालक का यह कहना कि ‘डॉक्टर, अधिवक्ता आदि नहीं होते !’’
  • ‘हिन्‍दी-चीनी भाई-भाई’, कहनेवाले कुछ लोगों की यदि आगे चीन के आक्रमण में मृत्‍यु हो जाए, तो कोई दु:ख क्‍यों हो ?’

     – (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले