साधना के संदर्भ में भारत का महत्त्व समझ लें !

‘ईश्वरप्राप्ति हेतु साधना करनी हो, तो भारत को छोडकर संसार के किसी भी देश में न रहें । क्योंकि भारतीयों की स्थिति भले ही बुरी हो, तब भी भारत जैसा सात्त्विक देश संसार में कहीं नहीं है । अन्य सभी देशों में रज-तम की मात्रा अत्यधिक है; तथापि ५० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त व्यक्ति संसार में कहीं भी रहकर साधना कर सकते हैं ।’

हिन्दुओ, आध्यात्मिक स्तर पर ‍विचार करें !

‘मानसिक एवं बौद्धिक स्तर पर विचार करनेवालों को चिंता होती है कि आगे हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे । इसके विपरीत आध्यात्मिक स्तर पर विचार करनेवाले जानते हैं कि कालचक्र के अनुसार आगे हिन्दू धर्म रहेगा !’

व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थकों, मानव को मानव देहधारी प्राणी मत बनाओ !

मानव को व्यक्तिगत स्वतंत्रता भुलाकर, क्रमशः परिवार, समाज राष्ट्र एवं धर्म के हित का विचार कर आचरण करना अर्थात चरण प्रति चरण स्वेच्छा के स्थान पर परेच्छा से आचरण करना अर्थात अंत में ईश्वरेच्छा से आचरण करना उससे अपेक्षित है । ऐसा करने पर ही वह वास्तव में मानव बनता है; अन्यथा वह केवल मानव देहधारी प्राणी रह जाता है !’

धर्मद्रोही बुद्धिवादियों की दोहरी नीति !

‘विज्ञान ने सिगरेट, शराब आदि के दुष्परिणाम सिद्ध किए हैं, तब भी धर्मद्रोही बुद्धिवादी उससे संबंधित अभियान नहीं चलाते । जुआ, मटका आदि के विषय में भी अभियान चलाने के स्थान पर केवल हिन्दू धर्म के विरुद्ध अभियान चलाकर स्वयं को ‘आधुनिक’ कहलवाते हैं, यह ध्यान में रखें !’

हिन्दू धर्म संसार का एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसमें क्रूरता का इतिहास नहीं है !

‘धर्म एक ही है, वह है हिन्दू धर्म । हिन्दू धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों का (पंथों का) इतिहास देखें, तो उनमें विविध काल में की गई लाखों हत्याएं, क्रूरता, बलात्कारों, जीते हुए प्रदेश के स्त्री-पुरुषों को गुलाम बनाकर बेचने की सहस्रों प्रविष्टियां हैं । हिन्दू धर्म अनादि काल से अस्तित्व में है परंतु हिन्दू धर्म के इतिहास में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है ।’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण विवाद निर्माण करनेवालों ने हिन्दुओं में भेदभाव उत्पन्न किया । इस कारण हिन्दुओं और भारत की स्थिति दयनीय हो गई है । अतः भेदभाव करनेवाले राष्ट्रद्रोही एवं धर्मद्रोही हैं !

दिशाहीन बुद्धिवादी एवं आधुनिकतावादी !

‘अंधे की बात मानकर उसके पीछे चलनेवाले जिस प्रकार गड्ढे में गिरते हैं, उसी प्रकार बुद्धिवादियों एवं आधुनिकतावादियों का है । वे दिशाहीनता के कारण स्वयं गड्ढे में गिरते हैं और उनके साथ-साथ उनके पीछे चलनेवाले भी गड्ढे में गिरते हैं ।’

संतान को साधना न सिखाने का परिणाम !

‘वृद्धावस्था में संतान ध्यान नहीं देती, ऐसा कहनेवाले वृद्धजनों, आपने संतान पर साधना के संस्कार नहीं किए, इसका यह फल है । इसलिए संतान के साथ आप भी उत्तरदायी हैं !’

व्यवहार एवं अध्यात्म में भेद !

‘व्यवहार में पैसे मिलने पर व्यक्ति अपने पास रखता है; परंतु अध्यात्म में ईश्वर का प्रेम मिलने पर संत वह प्रेम सभी में बांटते हैं !’

कृतघ्न युवक-युवतियां !

‘जिन माता पिता ने जन्म दिया और छोटे से बडा किया, उनके बुढापे में अनेक कृतघ्न युवक- युवतियां उनका ध्यान नहीं रखते । माता-पिता का ध्यान न रखनेवाले क्या कभी भगवान को प्रिय होंगे ?