परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘सत्ययुग में नियतकालिक, दूरदर्शनवाहिनियां, जालस्थल इत्यादी की आवश्यकता ही नहीं थी; क्योंकि बुरे समाचार नहीं होते थे और सभी लोग भगवान के आंतरिक सान्निध्य में रहने के कारण आनंद में थे ।’

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘नोबल पुरस्कार प्राप्त करनेवालों के नाम कुछ वर्षों में ही भुला दिए जाते हैं; इसके विपरीत धर्म ग्रंथ लिखनेवाले वाल्मीकिऋषि, महर्षि व्यास, वसिष्ठऋषि इत्यादी कि नाम युगों युगों तक चिरंतन रहते हैं ।’

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक स्तर पर राष्ट्र-धर्म हेतु कार्य करने से कुछ साध्य नहीं होता, यह विगत ७४ वर्षों में अनेक बार सिद्ध हुआ है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

अनिष्ट से संसार की रक्षा करनेवाले, तथा मानव की ऐहिक और पारलौकिक उन्नति सहित मोक्ष प्रदान करनेवाला तत्त्व है धर्म !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

अध्यात्म की श्रेष्ठता ! ‘विज्ञान पंचज्ञानेंद्रिय, मन तथा बुद्धि से समझाता है; इसलिए उसकी सीमाएं हैं । इसके विपरीत अध्यात्म पंचज्ञानेंद्रिय, मन तथा बुद्धि के पर का होने के कारण असीमित है !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘कहां किसी विषय पर कुछ वर्ष शोध कर संख्याशास्त्र के आधार पर (Statistics से) निष्कर्ष निकालनेवाले पश्चिमी शोधकर्ता, और कहां किसी भी प्रकार का शोध किए बिना मिलनेवाले ईश्‍वरीय ज्ञान के कारण किसी भी विषय का निष्कर्ष तत्काल बतानेवाले ऋषि !’

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘ कहां अगले कुछ वर्षों में क्या होगा, इसका बुद्धि का उपयोग कर अनुमान लगानेवाले पश्चिमी; और कहां युगों युगों के विषय में बतानेवाला ज्योतिषशास्त्र !’

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘जैसे प्राथमिक कक्षा में पढनेवाला बच्चा स्नातकोत्तर अथवा डॉक्टरेट कर चुके व्यक्ति से विवाद करेगा, वैसे बुद्धिप्रमाणवादी अध्यात्म के अधिकारी व्यक्ति से विवाद करते हैं !’

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

पाश्‍चात्त्यों को शोध करने के लिए यंत्रों की आवश्यकता होती है ।ऋषियों और संतों को उनकी आवश्यकता नहीं होती । उन्हें यंत्रों से अनेक गुना अधिक जानकारी प्राप्त होती है ।