परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘ कहां अगले कुछ वर्षों में क्या होगा, इसका बुद्धि का उपयोग कर अनुमान लगानेवाले पश्चिमी; और कहां युगों युगों के विषय में बतानेवाला ज्योतिषशास्त्र !’

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘जैसे प्राथमिक कक्षा में पढनेवाला बच्चा स्नातकोत्तर अथवा डॉक्टरेट कर चुके व्यक्ति से विवाद करेगा, वैसे बुद्धिप्रमाणवादी अध्यात्म के अधिकारी व्यक्ति से विवाद करते हैं !’

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

पाश्‍चात्त्यों को शोध करने के लिए यंत्रों की आवश्यकता होती है ।ऋषियों और संतों को उनकी आवश्यकता नहीं होती । उन्हें यंत्रों से अनेक गुना अधिक जानकारी प्राप्त होती है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘एक अरबपति का बेटा अपनी पूरी संपत्ती गंवा दे, उस प्रकार हिन्दुओं की पिछली पीढ़ियों ने पूरी धर्मसंपत्ती मिट्टी में मिला दी है !’

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

व्यक्तिगत जीवन हेतु अधिक पैसे मिलते हैं; इसलिए सभी आनंद से अधिक समय (ओवरटाइम) काम करते हैं; परन्तु राष्ट्र और धर्म के लिए १ घंटा सेवा करने के लिए कोई तैयार नहीं होता !’

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना के कार्य में मैं सहायता करूंगा’, ऐसा दृष्‍टिकोण न रखें; अपितु यह मेरा ही कार्य है, ऐसा दृष्‍टिकोण रखें ! ऐसा दृष्‍टिकोण रखने पर कार्य अच्‍छे से होता है और स्‍वयं की भी प्रगति होती है ।

हिन्दू राष्ट्र के विषय में परिवर्तित होता दृष्टिकोण !

‘पहले लोगों को लगता था कि, ‘हिन्दू राष्ट्र’ एक सपना है । ‘हिन्दू राष्ट्र’ कभी भी स्थापित नहीं हो सकता’; परंतु अब अनेक लोगों को लगता है कि ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना निश्‍चित ही होगी ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

हिन्‍दू राष्‍ट्र (ईश्‍वरीय राज्‍य) में नियतकालिक, दूरदर्शन वाहिनियां, जालस्‍थल इ. का उपयोग केवल धर्मशिक्षा तथा साधना हेतु किया जाएगा । इसलिए तब अपराधी नहीं होंगे तथा सभी लोग ईश्‍वर के आंतरिक सान्‍निध्‍य में रहने के कारण आनंद में होंगे ।

परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी के ओजस्वी विचार

हिन्दू (ईश्‍वरीय)राष्ट्र की शिक्षाप्रणाली कैसी होगी ?, यह प्रश्‍न कुछ लोग पूछते हैं । उसका उत्तर है, जिस प्रकार नालंदा और तक्षशिला विश्‍वविद्यालयों में १४ विद्याएं और ६४ कलाएं सिखाए जाते थे,उसी प्रकार की शिक्षा दी जाएगी; परंतु उनमें इस माध्यम से ईश्‍वरप्राप्ति कैसे करनी है ?, यह भी सिखाया जाएगा ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘अडचन के समय सहायता होने हेतु हम अधिकोष (बैंक) में पैसे रखते हैं । उसी प्रकार संकट के समय में सहायता मिलने के लिए साधना का संग्रह होना आवश्यक है । इससे संकट के समय हमें सहायता मिलती है ।’