परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

 ‘शारीरिक और मानसिक बल की अपेक्षा आध्‍यात्मिक बल श्रेष्‍ठ होते हुए भी हिन्‍दू साधना भूल जाने के कारण चुटकीभर धर्मांध और अंग्रेजों ने कुछ वर्षों में ही संपूर्ण भारत पर राज्‍यकिया  अब वैसा पुन: न हो; इसलिए हिन्‍दुआें को साधना करना अत्‍यंत आवश्‍यक है ।’ – (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले

सनातन प्रभात का महत्त्व !

सनातन प्रभात के लिए समाचार संकलन, वितरण, लेखा रखना इत्‍यादि सेवा करने से समष्‍टि पुण्‍य मिलता है । यह सेवा करनेवाले कुछ साधकों की आध्‍यात्मिक उन्‍नति भी हुई है ।’
– परात्‍पर गुरु परशराम पांडे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (११.९.२०१६) 

परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्‍वी विचार

माया के विषय लोग शीघ्र भूल जाते हैं । इसलिए पहला और दूसरा विश्‍वयुद्ध ही नहीं, नोबल पुरस्‍कार प्राप्‍त करनेवाले शास्‍त्रों के नाम भी २५ से ५० वर्ष तक लोगों के स्‍मरण में नहीं रहते । इसके विपरीत, अध्‍यात्‍म का इतिहास और उसके ग्रंथ युगों-युगों तक मनुष्‍य के स्‍मरण में रहते हैं; क्‍योंकि वे मानव का मार्गदर्शन करते हैं !

अमोल चीज जो दी गुरु ने । न दे सके भगवान भी ॥

प.पू. भक्‍तराज महाराजजी की सीख – १. एक ही संकल्‍प करें कि विकल्‍प मन में न लाएं ! २. देह, मन और बुद्धि के द्वारा प्रारब्‍ध भोगते समय नामस्‍मरण और साधना करें । ३. अध्‍यात्‍म में दूसरों के भले का विचार कीजिए ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘क्‍या एक भी समाचारपत्र समाज को त्‍याग करना सिखाता है ? केवल ‘सनातन प्रभात’ सिखाता है । इसलिए, ‘सनातन प्रभात’ के पाठकों की आध्‍यात्मिक प्रगति होती है, तो अन्‍य समाचारपत्रों के पाठक माया में फंसे रहते हैं ।’

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘पहले के समय में प्रजा सात्त्विक थी । अतः ऋषियों को समष्‍टि प्रसारकार्य नहीं करना पडता था । वर्तमान में कलियुग के अधिकतर लोग साधना नहीं करते, इसलिए संतों को समष्‍टि प्रसारकार्य करना पडता है !’ – (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले 

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

विज्ञान के पास बहुत अल्‍प और अधूरी जानकारी होती है । इसीलिए कोई सिद्धांत निश्‍चित करने के लिए उसे बार-बार शोध करना पडता है । इसके विपरीत, अध्‍यात्‍म में सब ज्ञात रहता है; इसलिए ऐसा नहीं करना पडता ।

परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्‍वी विचार

‘पैसा कमाने की तुलना में उसका त्‍याग करना अधिक सुलभ है, तब भी मनुष्‍य वह नहीं करता, यह आश्‍चर्य है !’
– (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले 

परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्‍वी विचार

‘अभिव्‍यक्‍ति स्‍वतंत्रता के कारण मनुष्‍य दिशाहीन हो जाता है; क्‍योंकि उसमें सात्त्विकता नहीं है । ऐसा न हो, इसलिए उसे धर्मबंधन अनिवार्य है !’
– (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘गरीबी होना अथवा न होना, इसके पीछे ‘प्रारब्ध’ ऐसा कुछ कारण है’, यह न जाननेवाले साम्यवाद की डींगे हांकते हैं और जो गरीब हैं अथवा नहीं है, उनमें समानता लाने का प्रयत्न करते हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले