Non-Hindus Not Allowed : तमिलनाडु के सभी मंदिरों में अहिन्दुओं पर प्रतिबंध है !

  • मद्रास उच्चन्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय !

  • ‘मंदिर कोई भ्रमण स्थल नहीं, अपितु एक धार्मिक स्थल है’, यह भी स्पष्ट किया गया !

  • यदि अहिन्दू मंदिर में प्रवेश करना चाहते हैं, तो उन्हें शपथ पत्र देना होगा कि उन्हें देवताओं में आस्था है !

मदुरै (तमिलनाडु) – मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै खंडपीठ ने राज्य के डिंडीगुल जिले के पलानी में धनायधापानी स्वामी मंदिर सहित राज्य के सभी मंदिरों में अहिन्दुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का आदेश पारित किया है । मंदिर पर्यटन स्थल नहीं अपितु धार्मिक स्थल हैं । हिन्दुओं को अपने धर्म को मानने और उसका पालन करने का मौलिक अधिकार है । मंदिर संविधान के अनुच्छेद १५ के अंतर्गत नहीं आते हैं । इसलिए, किसी भी मंदिर में अहिन्दुओं के प्रवेश को प्रतिबंधित करना अवैध नहीं कहा जा सकता, भले ही वह ऐतिहासिक हो’, इस समय न्यायालय ने ऐसा कहा । यदि कोई गैर-हिन्दू मंदिर में प्रवेश करना चाहता है तो उसे पहले शपथ पत्र देना होगा । इस उपक्रम में, उन्हें यह बताना होगा कि वे देवताओं में विश्वास करते हैं और हिन्दू धर्म की परंपराओं का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, ”न्यायालय ने अपने निर्णय में यह कहा । इस संबंध में, न्यायालय ने तमिलनाडु के हिन्दू धार्मिक और धर्मार्थ व्यवस्थापन विभाग को राज्य के मंदिरों में पट्टिकाएं लगाने का निर्देश दिया है । इन पट्टिकाओं पर यह लिखने को कहा गया है कि ‘अहिन्दुओं को कोडिमाराम (ध्वजस्तंभ) से आगे मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है।’ कोडिमाराम मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक सान्निध्य में और गर्भगृह के सामने होता है । धनायधापानी स्वामी मंदिर में केवल हिन्दुओं को प्रवेश की अनुमति देने के लिए, डी. सेंथिल कुमार पलानी द्वारा प्रविष्ट याचिका पर यह आदेश दिया गया । सेंथिल कुमार पलानी ‘हिल टेम्पल डिवोटीज ऑर्गनाइजेशन’ के संयोजक हैं ।

१. तमिलनाडु सरकार ने अनुरोध किया कि यह आदेश केवल धनायुधापानी स्वामी मंदिर तक ही सीमित रखा जाए; किन्तु उच्च न्यायालय ने इस अनुरोध को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि चूंकि यह वृहद् प्रश्न उठाया जा रहा है, इसलिए यह आदेश राज्य के सभी मंदिरों पर लागू होगा । इन प्रतिबंधों से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के बीच धार्मिक सद्भाव उत्पन्न होगा और समाज में शांति आएगी ।

२. इस याचिका में मंदिर के बाहर दुकान चलाने वाले एक दुकानदार का अनुभव प्रस्तुत किया गया था । इसमें कहा गया कि कुछ अहिन्दुओं ने बलपूर्वक मंदिर में घुसने के प्रयत्न किया । वे यहां भ्रमणार्थ आए थे । अधिकारियों से वाद विवाद करने के उपरांत अहिन्दुओं ने कहा था कि यह एक पर्यटक स्थल है और इसमें कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि अहिन्दुओं को मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है ।

हिन्दू मंदिरों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है ! – उच्च न्यायालय

न्यायालय में सुनवाई के समय तमिलनाडु सरकार ने तर्क दिया कि ‘भगवान मुरुगन की पूजा अहिन्दू भी करते हैं । वे मंदिर के अनुष्ठानों और परंपराओं का पालन करते हैं । एक धर्मनिरपेक्ष राज्य होने के नाते, संविधान के अनुसार नागरिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करना सरकार के साथ-साथ मंदिर प्रशासन का भी कर्तव्य है । यह तर्क दिया गया कि भगवान में विश्वास करने वाले अहिन्दुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने से न केवल उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होंगी, अपितु यह उनके अधिकारों के विरुद्ध भी है ।’

न्यायालय ने इस तर्क को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि अधिकारी अहिन्दुओं की भावनाओं के संबंध में चिंतित हैं, जो हिन्दू धर्म में विश्वास नहीं करते ; किन्तु हिन्दुओं की भावनाओं का क्या ? कुछ समय पूर्व अरुलमिघू बृहदेश्वर मंदिर में अन्य धर्मों के लोगों के एक समूह ने मंदिर परिसर को पर्यटन स्थल मान कर मंदिर परिसर में मांसाहार किया । ऐसे समाचार थे कि कुछ मुसलमान मदुरै के अरुलमिघू मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर के गर्भगृह के पास कुरान ले गए थे और वहां नमाज पठन करने का अवैध प्रयास किया था । यह घटना संविधान द्वारा हिन्दुओं को दिए गए मौलिक अधिकारों में पूर्णतया हस्तक्षेप है । हिन्दुओं को भी अपने धर्म का स्वतंत्र रूप से अभ्यास और प्रचार करने का मौलिक अधिकार है । इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम हिन्दू मंदिरों की पवित्रता को उनकी परंपरा के अनुसार बनाए रखें और मंदिरों को किसी भी प्रकार की अनैतिक घटनाओं से बचाएं ।