संस्‍कृत सर्वाधिक वैज्ञानिक तथा अखिल मनुष्‍यजाति के लिए हितकारी भाषा

(देहली) – ‘सभी भाषाआें की जननी, संस्‍कृत सर्वाधिक वैज्ञानिक एवं शास्‍त्रीय भाषा होने के कारण ही आज अनेक देशों में संस्‍कृत की शिक्षा देना आरंभ किया गया है ।’ सद़्‍गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने संस्‍कृत दिवस के उपलक्ष्य में देववाणी संस्‍कृत के संदर्भ में ये गौरवोद़्‍गार व्‍यक्‍त किए । उन्‍होंने आगे कहा कि ‘संस्‍कृत संगणक के लिए अत्‍यंत उपयुक्‍त भाषा है और उससे अधिक समस्‍त मनुष्‍यजाति के कल्‍याण के लिए उपयुक्‍त है ।’ सद़्‍गुरु डॉ. पिंगळेजी ने संस्‍कृत के शारीरिक, मानसिक और आध्‍यात्मिक स्‍तर के महत्त्व का वर्णन किया । अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोगों की चिकित्‍सा के लिए संस्‍कृत भाषा उपयुक्‍त है तथा संस्‍कृत भाषा इतना प्रचुर साहित्‍य अन्‍य किसी भी भाषा में उपलब्‍ध न होने की बात उन्‍होंने उदाहरण देकर स्‍पष्‍ट की । दुर्भाग्‍य से आज संस्‍कृत को कनिष्‍ठ श्रेणी दी जा रही है । इसलिए उन्‍होंने संस्‍कृत तथा संस्‍कृति के संवर्धन हेतु सभी को संगठित रूप से प्रयास करने की आवश्‍यकता बताई । साथ ही आज भारत के सामने की सभी समस्‍याआें का उत्तर हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना ही होने की बात कही ।

संस्‍कृत दिवस के उपलक्ष्य में प्रसिद्ध फेसबुक पेज ‘संस्‍कृत का उदय’ पर सद़्‍गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी को उद़्‍बोधन हेतु आमंत्रित किया गया था । सामाजिक जालस्‍थल के माध्‍यम से जुडे धर्मप्रेमी श्री. धर्मेंद्र दुबे ने इस मार्गदर्शन का आयोजन किया था ।

क्षणिकाएं

१. ५.५ सहस्र से भी अधिक लोगों ने फेसबुक के माध्‍यम से यह मार्गदर्शन देखा और २४ सहस्र से भी अधिक लोगों तक यह विषय पहुंचा ।

२. कार्यक्रम के लिए श्री. दुबे की माताजी हिमाचल प्रदेश से जुडी थी । उन्‍होंने अपने पुत्र के पास सदगुरु डॉ. पिंगळेजी की शालीनता की प्रशंसा की ।

३. मार्गदर्शन के उपरांत श्री. धर्मेंद्र दुबे ने पहली बार सदगुरु डॉ. पिंगळेजी से दूरभाष पर बात की, तब वे कृतज्ञता और भावविभोर स्‍थिति में थे ।