कांची कामकोटी पीठ के जगद़्‍गुरु शंकराचार्य स्‍वामी विजयेंद्र सरस्‍वती का ‘नवम अखिल भारतीय हिन्‍दू राष्‍ट्र अधिवेशन’ को आशीर्वाद !

हिन्‍दू राष्‍ट्रवाद हमारे राष्‍ट्र का धर्म है और यह काल की आवश्‍यकता
भी है ! – कांची कामकोटी पीठ के जगद़्‍गुरु श्री शंकराचार्य स्‍वामी विजयेंद्र सरस्‍वती

१. स्‍वयं की और परिवार की अपेक्षा समाज और देश का हम
पर अधिक अधिकार है, यह प्रत्‍येक हिन्‍दू को ध्‍यान में रखना चाहिए !

हिन्‍दू राष्‍ट्रवाद हमारे लौकिक जीवन की मूलभूत धारणा और सिद्धांत है । यह राष्‍ट्रवाद हमें प्राप्‍त करना होगा । मानव के रूप में जीवन व्‍यतीत करने से पूर्व हमें एक राष्‍ट्र के रूप में जीवन जीना होगा । शक्‍ति, एकता और संपूर्णता प्राप्‍त करने के लिए हमें जीवन में राष्‍ट्रवाद स्‍वीकारना होगा । इससे मानवता के लिए एक राष्‍ट्र के रूप में जीवन जीने में सहायता होगी । सामर्थ्‍यवान और स्‍वतंत्र मनुष्‍य की भांति सामर्थ्‍यवान राष्‍ट्र भी परोपकार एवं सुसंचालन कर सकता है ।

प्रत्‍येक हिन्‍दू को यह ध्‍यान में रखना चाहिए कि स्‍वयं और परिवार की अपेक्षा समाज और देश का हम पर अधिकार अधिक है । यह हिन्‍दू राष्‍ट्रवाद अपने देश का धर्म है और वर्तमान काल की आवश्‍यकता है ! केवल राष्‍ट्रप्रेम को मर्यादा आती है; परंतु हिन्‍दू राष्‍ट्रवाद एक बडा उद्देश्‍य और महत्त्वाकांक्षा लेकर सभी को समाविष्‍ट करता है ।

२. हमारी मातृभूमि की सभी बातों में आध्‍यात्मिक चैतन्‍य !

हमें यह यह समझना चाहिए कि हम विश्‍वास का मूर्त रूप हैं । आज हमें अन्‍य किसी भी बात की अपेक्षा विश्‍वास की अधिक आवश्‍यकता है । विश्‍वास हमें स्‍वयं पर, राष्‍ट्र पर और राष्‍ट्र के भविष्‍य पर होना चाहिए । अपना भविष्‍य पूर्णत: अपने-अपने देश के भविष्‍य पर निर्भर करता है । उसके साथ ही दूसरी ओर हम ही अपने देश के भाग्‍यविधाता हैं । हमें अपनी मातृभूमि को महान, श्रेष्‍ठ, शुद्ध और आदरणीय बनाना है । हमें स्‍वयं को महान, श्रेष्‍ठ, शुद्ध और अपनी मातृभूमि का महान लक्ष्य पूर्ण करने योग्‍य और देश का नेतृत्‍व करने योग्‍य बनाना है । अपनी मातृभूमि ही विश्‍व का एकमेव ऐसा स्‍थान है जहां की मिट्टी, नदी, वृक्ष-लताएं, पशु-पक्षी और मनुष्‍य, सभी में आध्‍यात्मिक चैतन्‍य है । इसीलिए हमें अपनी मातृभूमि को संरक्षित रखना होगा और संपूर्ण विश्‍व को दिशा प्रदान करनी होगी । हिन्‍दू राष्‍ट्रवाद एक सहज और महान जीवन के लिए है ।

३. हिन्‍दू राष्‍ट्र में अध्‍यात्‍म केंद्रबिंदु होगा !

सनातन धर्म ही हमारा राष्‍ट्रवाद है । हमने सनातन धर्म में जन्‍म लिया है और इस धर्मानुसार ही हम प्रगति कर रहे हैं और विकसित हो रहे हैं । जब हम सनातन धर्मका त्‍याग करते हैं, तब हम राष्‍ट्र का भी त्‍याग करते हैं । हमारी मातृभूमि सर्वश्रेष्‍ठ और उत्‍कृष्‍ट भविष्‍यकाल की अधिकारी है और यह मानवजाति के कल्‍याण के लिए अत्‍यावश्‍यक है । भारतीय राष्‍ट्रवाद एक शाश्‍वत धर्म है, जो सर्व पंथ, विज्ञान और तत्त्वज्ञान में सामंजस्‍य प्रस्‍थापित कर मानवजाति को पुनर्जीवित करता है । प्रत्‍येक हिन्‍दू को सदैव ध्‍यान में रखना चाहिए कि वह सामान्‍य मनुष्‍य नहीं है । जितने प्राचीन अपने पर्वत और नदियां हैं, उतने प्राचीन हम हैं ।

हम प्राचीन संतों और ऋषियों के वंशज हैं । हम सनातन धर्मियों को कष्‍ट सहन करने की आदत पड गई है । हमारे अंदर विद्यमान आध्‍यात्मिक शक्‍ति, हमारी शारीरिक शक्‍ति की अपेक्षा अधिक प्रभावी और तेजस्‍वी है । अपने हिन्‍दू राष्‍ट्र में अध्‍यात्‍म केंद्रबिंदु है, जो हमारे अस्‍तित्‍व का मूल है । अध्‍यात्‍म ही हमारा जन्‍मजात स्‍वभाव है । हिन्‍दू राष्‍ट्र आध्‍यात्मिकता से जुडा है । इससे हम जिसके लिए यह सब कर रहे हैं, वह विकास साधा जाएगा । अधिवेशन निर्विघ्‍न रूप से संपन्‍न हो, ऐसी भगवान के श्रीचरणों में प्रार्थना है !

‘हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना हेतु (ऑनलाइन) ‘नवम अखिल भारतीय हिन्‍दू राष्‍ट्र अधिवेशन’ आयोजित किया जा रहा है, यह सुनकर हमें आनंद हुआ । ‘हिन्‍दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित अधिवेशन निर्विघ्‍न संपन्‍न हो और सफल हो इस हेतु सभी के भरपूर कृपाशीर्वाद मिले’, ऐसी श्री महात्रिपुरसुंदरी सहित श्री चंद्रमोलीश्‍वर स्‍वामी के श्रीचरणों में हम प्रार्थना करते हैं !’ – जगद़्‍गुरु शंकराचार्य स्‍वामी विजयेंद्र सरस्‍वती महाराज