धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र स्थापना हेतु हिन्दू जनजागृति समिति
‘ऑनलाइन संवाद’ अंतर्गत ‘पुरी की रथयात्रा रोकने के पीछे क्या षड्यंत्र था ?’, विषय पर विचारगोष्ठी
फोंडा (गोवा) – ‘श्री जगन्नाथ रथयात्रा के संदर्भ में ओडिशा उच्च न्यायालय में जो याचिका प्रविष्ट की गई थी, उस पर निर्णय देते हुए न्यायालय ने रथयात्रा पर रोक लगाने की मांग को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया था तथा ९ जून को ओडिशा सरकार को ‘सरकारी नियमों का पालन करते हुए रथयात्रा किस प्रकार संपन्न की जा सकती है ?’, इसे देखने का आदेश दिया था । ऐसा होते हुए भी इस निर्णय के दूसरे दिन अर्थात १० जून को सर्वोच्च न्यायालय में कोरोना की पृष्ठभूमि पर इस वर्ष रथयात्रा रद्द करने हेतु पुन: याचिका प्रविष्ट की जाती है और इस संदर्भ में दूसरे पक्ष को ‘नोटिस’ न देकर अंतिम क्षणों में अर्थात १८ जून को सर्वोच्च न्यायालय रथयात्रा पर रोक लगा देती है । विशेष बात यह कि इसमें ओडिशा सरकार का पक्ष रखनेवाले वरिष्ठ अधिवक्ता भी रोक न लगाने का अपना पक्ष न्यायालय में नहीं रखते, यह अनाकलनीय है । हिन्दुत्वनिष्ठ एवं श्रद्धालुओं की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका प्रविष्ट करने के पश्चात उस पर निर्णय देते हुए रथयात्रा के १ दिन पहले अर्थात २२ जून को रथयात्रा को अनुमति दी जाती है, जो भगवान जगन्नाथजी की कृपा ही है । भले ऐसा हो; परंतु रथयात्रा के संदर्भ में प्रविष्ट याचिका और सरकारी नियमों का पालन करते हुए रथयात्रा संपन्न होने की दृष्टि से ओडिशा सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में यह सूत्र ठीक से न रखे जाने का अर्थ हिन्दुओं की आस्था को पैरों तले कुचलने का षड्यंत्र ही है । रथयात्रा को अनुमति मिलने हेतु सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका प्रविष्ट करनेवाले अधिवक्ता सुभाष झा एवं हितेंद्र नाथ रथ ने ऐसा प्रतिपादित किया ।
हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित ‘ऑनलाइन संवाद’ के अंतर्गत ‘पुरी की रथयात्रा रोकने के पीछे क्या षड्यंत्र था ?’ विषय पर २१ जून को विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया था । उसमें वे ऐसा बोल रहे थे । इस कार्यक्रम में हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, भारत रक्षा मंच के राष्ट्रीय महासचिव श्री. अनिल धीर एवं हिन्दू जनजागृति समिति के पूर्वोत्तर भारत धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळजी भी सहभागी थे ।
हिन्दू धर्म पर हो रहे आघात रोकने हेतु हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ही एकमात्र विकल्प ! – अधिवक्ता सुभाष झा
शबरीमला मंदिर की सैकडों वर्ष प्राचीन परंपरा को तोडने तथा कोरोना के नाम पर पुरी की रथयात्रा पर रोक लगाने हेतु सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की जाती है, जो राष्ट्र एवं धर्म विरोधियों का षड्यंत्र है । हिन्दू धर्म पर हो रहे आघात रोकने हेतु हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ही इसका उत्तर है ।
‘सेक्युलर’ व्यवस्था में धर्मगुरुओं का कोई स्थान न होना दुर्भाग्यजनक ! – पू. नीलेश सिंगबाळजी
यूरोपीयन देशों की तर्ज पर भारत ने ‘सेक्युलर’ संकल्पना लाई गई । वास्तव में यूरोप में ‘सेक्युलरिजम’ का अर्थ है, ‘राजसत्ता धार्मिक गतिविधियों में हस्तक्षेप न करे’ । वहां धर्म और राजसत्ता दोनों अलग-अलग हैं । धार्मिक विषयों पर वहां के धर्मगुरु निर्णय लेते हैं; किंतु भारत की ‘सेक्युलर’ व्यवस्था में धर्मगुरुओं का कोई स्थान नहीं है । वास्तव में रथयात्रा पर निर्णय लेते समय पुरी पीठ के शंकराचार्यजी का मार्गदर्शन लेना आवश्यक था; परंतु वैसा नहीं किया गया ! प्राचीन भारतीय व्यवस्था में राजसत्ता पर धर्मसत्ता का अंकुश होता था । तब धर्मसत्ता को अनियंत्रित राजसत्ता को दंडित करने का अधिकार प्राप्त था; परंतु आजकल की ‘सेक्युलर’ व्यवस्था में हिन्दुओं की धार्मिक आस्थाओं का सम्मान नहीं किया जाता, यह दुर्भाग्यजनक है ।
सरकारीकृत पुरी के मंदिर में चल रहे ढीले कामकाज की जांच के लिए आयोग गठन करें ! – अनिल धीर
सरकारीकृत पुरी के जगन्नाथ मंदिर की कार्यप्रणाली में बहुत ढिलाई है । मंदिर के व्यवस्थापन में अनेक त्रुटियां हैं । मंदिर का रत्नभंडार खोलने की मांग २ वर्ष पूर्व की गई थी; किंतु मंदिर के कर्मचारियों ने इस रत्नभंडार की चाबी ही खो जाने की बात बताई । पिछले एक वर्ष से पुरी को पर्यटनस्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनाई जा रही है तथा उसके लिए अनेक प्राचीन मठ और मंदिर तोडे गए हैं । अतिक्रमण कर किए गए निर्माणकार्यों पर कार्यवाही करनी ही चाहिए; परंतु सभी मठ-मंदिरों को गिराने का अर्थ ‘घर में चूहे बहुत हुए; इसके लिए पूरे घर को जला डालने’ जैसा है । इसके विरुद्ध आंदोलन और विरोध प्रदर्शन होने पर भी कोई अंतर नहीं आया है । वास्तव में इसकी जांच के लिए जांच आयोग का गठन करना चाहिए । राजनीतिक स्वार्थ हेतु मंदिरों का उपयोग किया जा रहा है । इसके कारण लोगों की आस्था का हनन होता है । अतः मंदिर व्यवस्थापन में सुधार होना आवश्यक है ।
हिन्दुओं का दबावसमूह बनना चाहिए ! – अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर
आजकल कोरोना की पृष्ठभूमि पर न्यूनतम संख्या में तथा सरकारी नियमों का पालन करते हुए रथयात्रा संपन्न कराने का नियोजन था । रथयात्रा हेतु प्रतिवर्ष की भांति लाखों लोग नहीं आनेवाले थे, अपितु केवल १ सहस्र ३०० लोगों की उपस्थिति में समारोह मनाने का नियोजन था । उसमें सम्मिलित होनेवाले लोगों का चिकित्सकीय परीक्षण करना, विलगीकरण करना आदि सर्व प्रणालियां व्यवस्थित रूप से चलाई जा रही थीं; परंतु इन तथ्यों को सर्वोच्च न्यायालय के सामने रखा ही नहीं गया और सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस संदर्भ में कोई टिप्पणी नहीं की । यह कैसा ‘सेक्युलरिजम’ ? यह तो हिन्दुओं की आस्थाओं के प्रति उनके मन में हीन भावना उत्पन्न करने का प्रयास है । याचिकाओं के माध्यम से हिन्दू धर्म को बार-बार लक्ष्य बनाना, मंदिरों का सरकारीकरण, लव जिहाद, लैंड जिहाद आदि आघात धर्म पर न हों; इसके लिए अब हिन्दुओं का दबावसमूह बनाने की आवश्यकता है ।