परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

  • ईश्‍वरप्राप्ति हेतु तन-मन-धन का त्याग करना पडता है । इसलिए धनप्राप्ति के लिए जीवन व्यर्थ करने की अपेक्षा सेवा करके धन के साथ तन और मन का भी त्याग किया, तो ईश्‍वरप्राप्ति शीघ्र होती है !
  • प्रवचन, व्याख्यान व वर्तमान घटनाक्रम पर ग्रन्थ-लेखन, इसीमें जिनका जीवन जाता है, उनका नाम और कार्य उनके जीवित रहने तक रहता है । इसके विपरीत जो शोध कार्य करते हैं उनका नाम और कार्य आगे की अनेक पीढियों तक जाना जाता है ।
  • कहां स्वेच्छा से व्यवहार करने को बढावा देकर मानव की अधोगति करवानेवाले बुद्धिवादी, तो कहां मानव को स्वेच्छा का त्याग करने की शिक्षा देकर ईश्‍वरप्राप्ति करवानेवाले संत !
  • साधना के कारण सूक्ष्म का ज्ञान होने पर, यज्ञ का महत्त्व ज्ञात होता है । यह न समझने पर अतिसमझदार बुद्धिवादी बोलते हैं, यज्ञ में वस्तु जलाने की अपेक्षा निर्धनों को दें ।
  • माया के विषय शीघ्र ही विस्मरण हो जाते हैं । इस कारण पहला और दूसरा विश्‍वयुद्ध ही नहीं अपितु नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिकों के भी नाम २५ – ५० वर्षों में किसी को ज्ञात नहीं रहते !

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले