ज्ञानवापी के प्रकरण में भारतीय पुरातत्व विभाग का ब्योरा निर्णायक प्रमाण नहीं ! – ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’

‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ का दावा

वाराणसी (उत्तर प्रदेश) – ज्ञानवापी प्रकरण में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का ब्योरा निर्णायक प्रमाण नहीं, ऐसा दावा ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ ने किया है । ‘इस प्रकार का ब्योरा प्रस्तुत कर विरोधी पक्ष ने समाज में अराजकता तथा असुरक्षा की भावना निर्माण की है’, ऐसा आरोप बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. सैय्यद कासिम रसूल इलियास ने प्रसारमाध्यमों के सामने इस विषय में बोलते हुए किया ।

डॉ. सैय्यद इलियास द्वारा रखे सूत्र !

१. ज्ञानवापी के विषय में हिन्दू जातिवादी संगठन अनेक वर्षों से जनता को दिशाभ्रमित कर रहे हैं । इसका ताजा उदाहरण है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का ब्योरा ! यह ब्योरा उनके अध्ययन के लिए तैयार करने के लिए था; लेकिन इसे प्रसारमाध्यमों में प्रकाशित कर विरोधी पक्ष ने न्यायालय का अपमान तो किया ही है, साथ ही देश की साधारण जनता को दिशाभ्रमित करने का भी प्रयास किया है ।

२. कुछ माह पूर्व न्यायालय आयुक्तों के निरीक्षण पथक ने उनके ब्योरे में जलाशय में स्थापित फव्वारे को शिवलिंग ऐसा वर्णन किया था, तब विरोधी पक्ष ने जनता को दिशाभ्रमित कर समाज में अशांति निर्माण करने का भरपूर प्रयास किया था, तब भी विशेषज्ञों की ओर से जांच नहीं हो सकी अथवा न्यायालय ने उस पर कोई भी निर्णय नहीं दिया ।

३. इसके पूर्व बाबरी प्रकरण में भी पुरातत्व विभाग ने बाबरी के नीचे भव्य मंदिर होने का दावा किया था; परंतु जब बोर्ड की ओर से देश के १० नामी पुरातत्व विशेषज्ञों ने न्यायालय में उसकी जांच की, तब वह बात गलत सिद्ध हुई। उत्खनन में मिली बातों पर बाबरी के समर्थन में युक्तिवाद किया गया, तब इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने इस ब्योरे को विचारयोग्य नहीं माना । उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि उत्खनन में मिली वस्तु बाबरी निर्माण के ४ शतक पूर्व की हैं । इस कारण वर्तमान के (ज्ञानवापी के) ब्योरे पर न्यायालय का अंतिम निर्णय क्या होगा, यह आनेवाला समय ही बताएगा । (निर्णय क्या होगा यह हिन्दुओं को ज्ञात है तथा मुसलमानों को भी, तब भी वे ‘गिरे तो भी नाक ऊपर’ इस आविर्भाव में रहने का प्रयास कर रहे हैं ! – संपादक) 

४. बाबरी प्रकरण में पुरातत्व विभाग के ब्योरे के समान ही इस ब्योरे का भी परिणाम निकलेगा, ऐसा हमें विश्वास है । हमारी महत्व की संस्था जातिवादियों के हाथ का खिलौना बनकर अपना महत्व गंवा बैठी है, इसका दु:ख होता है ।

५. बोर्ड की कानूनी समिति तथा हमारे अधिवक्ता इस ब्योरे का गंभीरता से परीक्षण करेंगे तथा ज्ञानवापी के अंजुमन प्रशासन की ओर से इसे न्यायालय में प्रस्तुत किया जाएगा ।

६. इस प्रकरण में संभव सभी प्रयास किए जाएंगे । मुसलमानों को आशा नहीं छोडनी चाहिए तथा प्रार्थना करते रहना चाहिए । सर्वशक्तिमान अल्लाह से क्षमा मांगनी चाहिए, वह सभी कारणों का निर्माता है । न्यायालय का अंतिम निर्णय आने तक इस ब्योरे पर कोई भी मत न बनाएं, ऐसा आवाहन भी हम देश की जनता से करते हैं ।

संपादकीय भूमिका

बाबरी के समय भी मुसलमान पक्ष ने ऐसा ही दावा किया था; लेकिन उच्चतम न्यायालय के पुरातत्व विभाग द्वारा वहां किए सर्वेक्षण के ब्योरे के आधार पर ही वहां पूर्व में मंदिर था, यह स्वीकार करते हुए हिन्दुओं के पक्ष में निर्णय दिया था, यह वस्तुस्थिति है !