संतों के आशीर्वाद से अग्रसर ‘सनातन प्रभात’ का द्रष्‍टापन !

विशेष संपादकीय

श्री. नागेश गाडे

    ‘सनातन प्रभात’ के इतिहास में पहली बार ही वर्षगांठ का समारोह संगणकीय प्रणाली के द्वारा हो रहा है । यह आपातकाल में मनाई जा रही वर्षगांठ है । कोरोना के कारण जीवन जीने के मापदंड ही बदल गए हैं । उसमें भी चक्रवाती तूफान, सीमा पर चल रही अस्‍थिरता जैसे संकटों की शृंखला ही चल रही है । ऐसे समय में प्रसारमाध्‍यम ही सरकार और जनता के मध्‍य बंधन बने हैं । देश के सर्वत्र नागरिकों तक सूचना पहुंचाना, उन्‍हें संकट का भान कराना और विविध स्‍थानों पर जनता की स्‍थिति और समस्‍याआें के संदर्भ में आवाज उठाना आदि कार्यों में प्रसारमाध्‍यमों ने बडी मात्रा में सहभाग लिया ।

‘सनातन प्रभात’ की विशेषता यह है कि विगत कुछ वर्षों से हम इस प्रकार के संकटों के प्रति इस पत्रिका के माध्‍यम से सभी को जागृत कर रहे हैं । ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिक के संस्‍थापक संपादक परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी और अन्‍य अनेक संतों ने भी आगे आनेवाले भीषण आपातकाल के संदर्भ में जागृति की है । उनके विचारों को महत्त्व देने के साथ ही आपातकाल का सामना कैसे करना चाहिए, इस संदर्भ में पिछले वर्ष ‘सनातन प्रभात’ में परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी के लेख प्रकाशित किए गए । इस वर्ष आरंभ हुए संकटों की शृंखला को देखते हुए परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी का द्रष्‍टापन प्रमाणित होता है । पिछले वर्ष की वर्षगांठ के दिन हमने आगामी आपातकाल के संबंध में भाष्‍य करनेवाला संपादकीय लेख प्रकाशित किया था । आज की पृष्‍ठभूमि पर देखा जाए तो, यह लेख आज की घटनाआें से १०० प्रतिशत मेल खाता है । यह परात्‍पर गुरुदेवजी की सीख का ही परिणाम है ! अब हम उस लेख में निहित अंशात्‍मक भाग और वर्तमान स्‍थिति देखेंगे !
– श्री. नागेश गाडे, समूह संपादक, ‘सनातन प्रभात’

वर्ष २०१९ में प्रकाशित संपादकीय लेख का अंशात्‍मक भाग !

आपातकाल एवं ‘सनातन प्रभात’ !

‘हिन्‍दू राष्‍ट्र-स्‍थापना का लक्ष्य साध्‍य करना केवल भगवा रंग लेकर हिन्‍दुत्‍व का शाब्‍द़िक समर्थन करने जितना सरल नहीं है । हिन्‍दू राष्‍ट्र की संकल्‍पना में सभी स्‍तरों पर राष्‍ट्र का उत्‍थान होना अपेक्षित है । उसमें पत्रकारिता भी आती है ! वर्तमान समय सामाजिक संघर्ष और अस्‍थिरता का है । वैश्‍विक स्‍तर पर हो रही घटनाआें को देखते हुए ‘तीसरा विश्‍वयुद्ध किसी भी क्षण आरंभ हो सकता है,’ ऐसी स्‍थिति है । राष्‍ट्र में जब कोई घटना होती है अथवा युद्ध आरंभ होता है, तब समाचार माध्‍यमों को कितने दायित्‍व के साथ उसका वार्तांकन करना होता है, इसके कुछ मापदंड हैं । विश्‍व स्‍तर के अनेक प्रसारमाध्‍यम अतिरंजित समाचार प्रसारित कर, ‘जनता कितनी पीडित है’, यह दिखाते हैं परंतु विश्‍व स्‍तर पर सरकारी असफलता की चर्चा कोई भी नहीं करता । विदेशों में युद्ध जैसे प्रसंग में भी ‘सनसनी’ फैलाने के नाम पर देश की सुरक्षा को संकट में डालने का काम नहीं किया जाता; परंतु भारतीय पत्रकारिता ने इन सभी नीतिमूल्‍यों को साख पर बैठा रखा है । भले ही ऐसा हो; परंतु ‘सनातन प्रभात’ किसी भी सनसनी के पीछे नहीं भागता । हमारी प्रधानता केवल सुरक्षा नहीं, अपितु समय की आहट को पहचानकर प्रतिबंधात्‍मक उपाय सुनिश्‍चित करना भी है । उस दृष्‍टि से समय-समय पर ‘सनातन प्रभात’ में संतों के मार्गदर्शन, दृष्‍टिकोण और विविध लेखकों के लेख भी प्रकाशित होते रहते हैं । समय को पहचाननेवाले परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी जैस संत जिसके संस्‍थापक हैं, उस ‘सनातन प्रभात’ ने पहले से ही केवल समाचार प्रकाशित करने की नहीं, अपितु राष्‍ट्रीय उत्‍थान की भूमिका अपनाई है । हम आपातकाल से सुरक्षित पार निकलने के उपाय बार-बार प्रकाशित कर रहे हैं । ‘न मे भक्‍तः प्रणश्‍यति’ (अर्थ : मेरे भक्‍त का कभी नाश नहीं होता), भगवान श्रीकृष्‍ण के इस वचन का स्‍मरण कर ‘सनातन प्रभात’ से समाज को साधना का मार्गदर्शन भी किया जा रहा है । अभी तक ‘सनातन प्रभात’ ने समाज में अनेक विषयों के प्रति जागृति की है । इन सभी के साथ-साथ आपातकाल के प्रति पाठकों को सचेत करना, आपातकाल के चंगुल से बचने हेतु उपाय बताना और अधिकाधिक लोगों के जीवन की रक्षा करना ही ‘सनातन प्रभात’ के कार्य की आगामी दिशा रहेगी । तीसरा विश्‍वयुद्ध और द्वार तक पहुंचे आपातकाल की अवधि में ‘सनातन प्रभात’ समूह समाजरक्षा के कार्य में बडी भूमिका निभाएगा । ऐसी घटनाआें की ओर केवल ‘टीआरपी’ बढाने के छिछले दृष्‍टिकोण से न देखकर हम पूरे विश्‍व को परिपक्‍व और क्रियाशील पत्रकारिता के दर्शन कराएंगे !’