‘देहली के सेवाकेंद्र का स्थान छोटा पड रहा था, इसलिए सेवाकेंद्र के लिए नया स्थान देखा गया । नया भवन देखने पर साधकों को प्रतीत हुआ कि ईश्वर ने मानो सनातन के सेवाकेंद्र के लिए ही यह स्थान सुनियोजित किया है । १.११.२०१९ को इस भवन में गृहप्रवेश किया गया ।
यह स्थान खोजते तथा पुराने सेवाकेंद्र से नए भवन में सामान का स्थलांतरण करते समय एवं गृहप्रवेश करते समय साधकों को अनुभूति हुई कि ईश्वर सदैव उनके साथ हैं एवं ईश्वर के कारण ही सर्व सहजता से हो रहा है । साधकों की अनुभूतियां यहां दे रहे हैं ।
१. सेवाकेंद्र के लिए स्थान खोजते समय साधकों को हुई अनुभूतियां
१ अ. सेवाकेंद्र के लिए नई सदनिका (फ्लैट) खोजते समय एक व्यक्ति का ‘फार्म हाउस’ देखने हेतु सुझाना : ‘देहली के वर्तमान सेवाकेंद्र का स्थान छोटा पडने के कारण सेवाकेंद्र के लिए नया स्थान देखना निश्चित किया गया । हम विविध स्थानों पर जाकर सदनिका देख रहे थे । एक व्यक्ति ने हमसे पूछा, ‘आप सदनिका क्यों देख रहे हैं ? क्या आपको ‘फार्म हाउस’ चलेगा ?’ हमने ‘फार्म हाउस’ की कल्पना ही नहीं की थी; क्योंकि हमें लगा था कि देहली जैसे शहर में ‘फार्म हाउस’ बहुत महंगा एवं वह शहर से दूर भी होगा । हमारे ध्यान में आया कि इस व्यक्ति के माध्यम से ईश्वर ने ही सुझाया है । उस क्षेत्र में न्यूनतम २०० ‘फार्म हाउस’ होंगे; परंतु ‘फार्म हाउस’ देखने पर हमें प्रतीत हुआ कि ‘उनमें से ठीक यही घर और हमारे लिए आर्थिक दृष्टि से उचित मूल्य में मिलना’, यह केवल ईश्वरीय योजना के अनुसार ही हो रहा है । मकान मालिक ने हमें कहा कि ‘‘अनेक लोग यह घर देखने आए थे; परंतु उन्होंने यह घर उन्हें नहीं दिया । ‘आपको देखकर यह घर आपके लिए ही है’, यह हमारे ध्यान में आया । आपको ही यह घर देना है ।’’ उसके उपरांत कुछ कारणों से हमने अन्य स्थान देखे; परंतु सभी स्थान देखने पर ध्यान में आया कि ‘ईश्वर ने सनातन के सेवाकेंद्र के लिए ही यह भवन निश्चित किया है ।’
१ आ. पूर्वसूचना
१. सद़्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने बताया कि ‘देहली सेवाकेंद्र नए स्थान पर स्थानांतरित होनेवाला है’, यह बताकर नए भवन का छायाचित्र दिखाया, उस समय दो दिन पूर्व स्वप्न में दिखा हुआ सभागृह वैसा ही है, यह ध्यान में आना : ‘३०.१.२०१९ को सद़्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी मथुरा आए थे । तब उन्होंने मुझे बताया, ‘‘देहली का सेवाकेंद्र दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होनेवाला है ।’’ उन्होंने मुझे अपने चल-दूरभाष पर नए भवन का एक छायाचित्र और एक ‘वीडियो’ दिखाया । वह देखकर मुझे दो दिन पूर्व दिखे स्वप्न का स्मरण हुआ । उस स्वप्न में मुझे दिखा था, ‘एक सभागृह में बहुत सी सामग्री फैली हुई है । वहां बहुत से साधक सेवा कर रहे हैं । सद़्गुरु डॉ. पिंगळेजी साधकों को उस सामग्री के संबंध में बता रहे हैं ।’ उसके उपरांत मेरी आंख खुल गई । सद़्गुरु डॉ. पिंगळेजी द्वारा ‘वीडियो’ में दिखाए अनुसार वह सभागृह था । ‘२ दिन पहले देहली सेवाकेंद्र नए स्थान पर स्थानांतरित होनेवाला है, यह मुझे ज्ञात नहीं था । उस स्वप्न का दृश्य अर्थात ‘देहली सेवाकेंद्र के स्थानातंरण की मिली हुई पूर्वसूचना ही थी ।’ तब सद़्गुरु डॉ. पिंगळेजी के चरणों में मेरी कृतज्ञता व्यक्त हुई ।’ – विनय वर्मा, मथुरा
२. सेवाकेंद्र में जाने पर ३ दिन पूर्व स्वप्न में सेवाकेंद्र दिखा हुआ ध्यान में आना : ‘गृहप्रवेश के दिन मुझे सेवाकेंद्र में सेवा के लिए जाने का अवसर मिला । सेवाकेंद्र में जाने के उपरांत मुझे ध्यान में आया, ‘३ दिन पूर्व मुझे स्वप्न में दिखा हुआ सेवाकेंद्र ऐसा ही था ।’
उस रात स्वप्न में मुझे आगे दिया हुआ दृश्य दिखाई दिया, ‘सद़्गुरु पिंगळेजी सभी साधकों की हस्तरेखा देख रहे हैं । तब मैं पीछे रह गई थी । तत्पश्चात मैंने सद़्गुरु डॉ. पिंगळेजी से कहा, ‘आपने मेरा हाथ नहीं देखा ।’ तब सद़्गुरु डॉ. पिंगळेजी ने मुझसे कहा, ‘आपका हाथ भी देखूंगा; परंतु अभी शीघ्रातिशीघ्र यहां से बाहर निकलिए ।’ तब मुझे पता चला कि वहां जोरदार युद्ध प्रारंभ हो गया है ।’ सद़्गुरु डॉ. पिंगळेजी सभी साधकों का हाथ पकडकर उन्हें आगे ले जा रहे हैं । वे सबको बता रहे हैं, ‘शीघ्रातिशीघ्र बाहर निकलकर आगे जाइए ।’ उस दिन सेवाकेंद्र में सेवा करते समय अधिक मात्रा में मेरा नामजप, प्रार्थना और कृतज्ञता व्यक्त हुई ।
– श्रीमती राजबाला यादव, फरीदाबाद, हरियाणा.
२. भगवान श्रीविष्णु के कृपाशीर्वाद से सेवाकेंद्र के लिए मिले हुए नए भवन की विशेषताएं
२ अ. देहली का अल्प प्रदूषणवाला स्थान : ‘देहली शहर प्रदूषण के पाश में जकडा हुआ है; परंतु सेवाकेंद्र जिस स्थान पर है, वहां का परिसर अल्प प्रदूषणवाला है । देहली का प्रदूषण नियंत्रण निर्देशांक (इंडेक्स) साधारणतः ३०० अंश सेल्सियस तक रहता है । वह अतिप्रदूषित क्षेत्र में ५०० अंश सेल्सियस के आसपास रहता है । इस नए सेवाकेंद्र के परिसर की पट्टी १८० अंश सेल्सियस के आसपास है ।
२ आ. मुख्य शहर और हवाई अड्डे के निकट : ‘देहली जैसे महंगे शहर में हवाई अड्डे से केवल ३० मिनट की दूरी पर तथा मुख्य शहर से १७ कि.मी. की दूरी पर कोई ‘फार्म हाउस’ मिलना तथा वह भी सात्त्विक व्यक्ति का’, यह केवल सृष्टि के निर्माणकर्ता भगवान श्रीविष्णु के कृपाशीर्वाद से ही हो सकता है’, इसका अनुभव सभी साधकों को हो रहा है ।
२ इ. सात्त्विक परिसर : ‘फार्म हाउस’ में पार्टियों और रज-तम की अधिकता होती है; परंतु केवल यही ‘फार्म हाउस’ और उसके आस-पास का परिसर भी सात्त्विक है । इस ‘फार्म हाउस’ के पास शिवजी और हनुमानजी के मंदिर हैं तथा थोडी दूरी पर जैन मंदिर है । आस-पास मोर हैं । इस परिसर में वाहनों की आवाज सुनाई नहीं देती; अपितु पक्षियों का चहचहाना सुनाई देता है ।
ईश्वर ने साधकों की साधना के लिए सात्त्विक वातावरण दिया है । इसके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में जितनी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, अल्प ही है । वे कदम-कदम पर प्रति क्षण साधकों की साधना हो तथा वे साधना में आगे बढें, उन्हें साधना करते समय कष्ट न हो आदि की चिंता कर रहे हैं । उन्हें लगता है कि उनके बच्चों (साधकों) की आध्यात्मिक उन्नति हो ।’
– श्री. अभय वर्तक (१०.११.२०१९)
३. नए भवन में सामग्री स्थलांतरित करते समय साधकों को हुई अनुभूतियां
३ अ. नए सेवाकेंद्र में जाने से पूर्व शरीर पर खुजली होना, उपचार करने पर भी लाभ न होना तथा स्थलांतरण की सेवा करते समय धूल में सेवा करने के पश्चात भी खुजली न होना : ‘नए सेवाकेंद्र में जाने से पहले मेरे संपूर्ण शरीर पर खुजली होती थी । इसलिए मुझे रात में भी नींद नहीं आती थी । औषधियां लेकर नामजप आदि उपचार करने से भी मुझे लाभ नहीं हो रहा था । सेवाकेंद्र का स्थलांतरण करते समय सामान बांधते हुए मैंने धूल में सेवा की । तब मुझे हो रही खुजली धूल के कारण बढने की अपेक्षा बिलकुल ही नहीं हुई ।’ – कु. प्रियंका सिंह
३ आ. शारीरिक सेवा करने पर भी थकान का अनुभव न होकर उत्साह और चैतन्य प्रतीत होना : ‘सामान बांधकर नए सेवाकेंद्र में ले जाना’ आदि शारीरिक सेवा करते समय अखंड सेवारत होते हुए भी मुझे थकान नहीं लग रही थी । सेवा समाप्त होने पर भी मुझे उत्साह और चैतन्य का भान हो रहा था । ‘सद़्गुरु डॉ. पिंगळेजी के माध्यम से प्रत्यक्ष गुरुदेव सभी साधकों को शक्ति प्रदान कर सबके मन मिलवाकर सेवा करवा रहे हैं, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ ।’ – श्रीमती स्वानंदी जाधव
३ ई. प्रारब्ध की शारीरिक व्याधि भोगने के लिए ईश्वर द्वारा बल देने के कारण शारीरिक पीडा होते हुए क्षमता से अनेक गुना अधिक सेवा करना
३ ई १. विगत १० वर्षों से मैं पीठ की वेदना से पीडित हूं; परंतु स्थलांतरण के समय शारीरिक सेवा करने पर भी वेदना में वृद्धि न होना एवं भूख-प्यास भूलकर सेवा करना : ‘विगत १० वर्षों से मैं पीठ की वेदना से पीडित हूं तथा ३ वर्षों से हड्डियों में वेदना तथा थकान होना आदि कष्ट होते हैं । मैं आगे झुककर कोई कृत्य नहीं कर पाती तथा डॉक्टर ने मुझे वजन उठाने से मना किया है । इसलिए सामग्री हटाते समय सेवा करने की संभावना नहीं थी । साधकों ने जब सेवा प्रारंभ की, तब मैं उनके साथ कब सेवा करने लगी ?, यह मुझे पता ही नहीं चला । सेवा प्रारंभ करने के उपरांत मुझमें अपनेआप उत्साह उत्पन्न हो गया । उस समय ये शारीरिक सेवाएं करने पर भी मेरी शारीरिक वेदना थोडी भी नहीं बढी । मेरे प्रारब्ध में जो शारीरिक पीडा अथवा व्याधि है, उसे भोगने के लिए ईश्वर ही मुझे शक्ति दे रहे हैं । इसलिए मैं अपनी क्षमता से अनेक गुना सेवा कर पाई । सेवा करते समय मुझे भूख-प्यास अथवा समय का भान नहीं रहता था । ‘ईश्वर के लिए असंभव कुछ भी नहीं है’, सद़्गुरु राजेंद्र शिंदेजी के इस वाक्य की प्रतीति ईश्वर ने मुझे ४ दिन तक अखंड दी ।
३ उ. ईश्वर शक्ति दे रहे हैं, इसका भान होकर शारीरिक सेवा उत्साहपूर्वक करना : ‘सेवाकेेंद्र की सामग्री स्थलांतरित करनी थी, इसलिए उस अवधि में हमने उत्साहपूर्वक बहुत शारीरिक सेवा की । तब प्रतीत हुआ कि ‘ईश्वर ही हमें शक्ति दे रहे हैं एवं गुरुदेवजी सद़्गुरु डॉ. पिंगळेजी के रूप में आकर हमें छोटी-छोटी बातें बता रहे हैं । ‘सामान कैसे रखना है ?’, यह सिखा रहे हैं ।’ – कु. मनीषा माहुर
३ ऊ. ईश्वरीय तत्त्व प्रत्यक्ष कार्यरत होकर साधकों से सेवा करवाने के कारण सेवा तीव्र गति से होना : ‘सेवाकेंद्र स्थलांतरित करते समय सामान बांधना, हिन्दू अधिवेशन की सेवा और साधकों का दीपावली में घर जाने का नियोजन आदि एक ही समय आया, तब भी साधकसंख्या न्यून होते हुए भी सामान बांधने की सेवा तीव्र गति से हुई । यह सेवा करते समय मुझे प्रतीत हुआ कि साधकों के मन अपनेआप मिल गए हैं । सभी साधकों ने संघभावना और आनंद से सेवा की । मुझे बार-बार प्रतीत हो रहा था कि ‘ईश्वरीय तत्त्व प्रत्यक्ष सक्रिय होकर साधकों से सामान बांधने की सेवा करवा रहे हैं ।’ – श्रीमती स्वानंदी जाधव
३ ए. वानरसेना ने रामसेतु बनाया, उसी प्रकार ‘सामान स्थलांतरित कर रहे हैं’, ऐसा प्रतीत होना और सद़्गुरु डॉ. पिंगळेजी को देखकर ‘वे श्रीराम है’, ऐसा भान होकर आनंद होना : ‘पुराने देहली सेवाकेंद्र की तीसरी मंजिल से सामान नीचे लाना था । उस समय मुझे रामसेतु निर्माण के प्रसंग का स्मरण हुआ, ‘वानरसेेना ने एक-एक पत्थर उठाकर दूसरे को दिया और रामसेतु की निर्मिति हुई ।’ उसी प्रकार ‘हम कुछ साधक शृंखला बनाकर तीसरी मंजिल से निचली मंजिल तक सामान नीचे ला रहे थे’, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ । रामसेतु निर्माण के इस प्रसंग का बार-बार स्मरण होकर मुझे आनंद हो रहा था । जब हम सामान नीचे ला रहे थे, तब वहां सद़्गुरु डॉ. पिंगळेजी उपस्थित थेे. उन्हें देखकर मुझे प्रतीत हुआ कि ‘वे श्रीराम हैं ।’ ‘श्रीराम और प.पू. गुरुदेवजी की कृपा से मुझे यह आनंद की अनुभूति हुई’, इसलिए मेैं उनके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।’ – श्री. हरिकृष्ण शर्मा, नोएडा (१०.११.२०१९)
४. गृहप्रवेश करते समय हुई अनुभूतियां
४ अ. भवन में प्रवेश करने से पूर्व सद़्गुरु डॉ. पिंगळेजी ने कहा कि ‘प.पू. गुरुदेव हमारे साथ हैं’, ऐसा भाव रखकर सेवाकेंद्र के वास्तुदेवता की परिक्रमा करें, तब सूक्ष्म से प.पू. गुरुदेवजी के अस्तित्व का भान होकर भावजागृति होना : ‘नए सेवाकेंद्र में गृहप्रवेश करते समय साधक भगवान श्रीकृष्ण, प.पू. भक्तराज महाराजजी एवं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की प्रतिमाएं और श्री गुरुपादुकाएं हाथों में लिए हुए थे । भवन में प्रवेश करने से पूर्व सद़्गुरु डॉ. पिंगळेजी ने कहा, ‘‘प.पू. गुरुदेव हमारे साथ हैं’, ऐसा भाव रखकर सेवाकेंद्र के वास्तुदेवता की परिक्रमा करते हैं ।’’ वह सुनकर ‘परात्पर गुरुदेवजी प्रत्यक्ष यहां उपस्थित हैं । वे हमारी साधना के लिए कितना कर रहे हैं’, इस कृतज्ञता से मेरा भाव जागृत हो गया ।’ – श्रीमती स्वानंदी जाधव
४ आ. ध्यानमंदिर में देवता और गुरुपादुका की स्थापना की गई । तब मेरे मन में तीव्रता से विचार आया कि ‘ध्यानमंदिर गर्भगृह है और संपूर्ण सेवाकेंद्र एक मंदिर है’, इस विचार से मेरा भाव जागृत हुआ और कृतज्ञता व्यक्त हुई । गुरुदेवजी ने हमें इस सेवाकेंद्र में रहने का अवसर दिया है, इसलिए उनके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !’ – कु. राशि खत्री
४ इ. गृहप्रवेश के समय श्रीविष्णु भगवान के अस्तित्व का भान होना
१. ‘सेवाकेंद्र में प्रवेश करते समय एक साधक परात्पर गुरुदेवजी की पादुकाएं लेकर प्रवेशद्वार के बाहर खडे थे । उस समय वेदमंत्रों का पठन भी हो रहा था, तब मुझे वहां साक्षात भगवान विष्णु खडे दिखाई दिए ।
२. पादुकाएं लेकर सेवाकेंद्र की परिक्रमा करते समय मुझे दिखाई दिया कि ‘साक्षात भगवान श्रीविष्णु हमारे आगे चल रहे हैं और हम सब साधक उनके पीछे चल रहे हैं ।’
३. आरती के समय ‘साक्षात भगवान श्रीविष्णु की आरती कर रहे हैं’, ऐसा मुझे दिखाई दिया ।
– कु. पूनम किंगर, फरीदाबाद, हरियाणा
५. नए सेवाकेंद्र में साधकों को हुई अनुभूतियां
५ अ. ईश्वर से आंतरिक सान्निध्य बढना और सेवा सहजता से होना
१. ईश्वर से आंतरिक सान्निध्य बढना : ‘नए सेवाकेंद्र में आने के उपरांत मेरा ईश्वर से आंतरिक सान्निध्य बढा है । मेरे द्वारा प.पू. भक्तराज महाराजजी के भजन मनःपूर्वक सुने जाते हैं । प्रार्थना और नामजप अपनेआप होता है तथा मध्यावधि (बीच-बीच) में भाव जागृत होता है । मेरे द्वारा अनजाने में शरीरदेवता को नमस्कार होेता है ।
२. सेवा सहजता से होना : मेरे द्वारा सेवा सहजता से होती है । मेरे मन में निरंतर विचार आता है कि ‘यह सेवा मैं नहीं कर रही हूं, अपितु अन्य कोई मुझसे सेवा करवा रहा है ।’
३. कभी-कभी मुझे प्रतीत होता है कि ‘चलते समय मेरे पैर भूमि पर नहीं हैं ।’ – श्रीमती केतकी येळेगावकर
४. क्षमता न होते हुए भी गुरुदेवजी की कृपा से शारीरिक सेवा कर पाना तथा प्रतीत होना कि उस माध्यम से गुरुदेवजी ने प्रारब्ध अल्प कर दिया है : ‘मैं घर में थोडे भी शारीरिक काम करती हूं, तब मुझे थकान होती है तथा सोने की इच्छा होती है; परंतु उस दिन गुरुदेवजी ने मुझसे जिस मात्रा में शारीरिक सेवा करवाई, उतनी सेवा करने की मेरी क्षमता नहीं है । मुझे प्रतीत हुआ कि सेवा के माध्यम से उन्होंने मेरा शारीरिक प्रारब्ध अल्प कर दिया है ।’
५. सेवाकेंद्र की सीढियां पोंछते समय प्रतीत हुआ मानो सीढियां कह रही हैं कि ‘भगवान श्रीकृष्ण पहले से ही यहां विद्यमान हैं, इसलिए तुम यहां आई हो’ : ‘नए सेवाकेंद्र में मुझे सीढियां पोंछने की सेवा मिलने पर मेरा भाव जागृत हो गया । मैंने उन सीढियों से कहा, ‘यहां अब भगवान श्रीकृष्ण आनेवाले हैं’, तब सीढियां बोलीं, ‘यहां भगवान श्रीकृष्ण पहले से ही विद्यमान हैं, इसलिए तुम यहां आई हो ।’
– श्रीमती मोहिनी कुलकर्णी, नोएडा
६. निकट स्थित शिवजी के मंदिर में प्रार्थना करने के
उपरांत परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का अस्तित्व प्रतीत होना
‘नए सेवाकेंद्र के निकट स्थित शिवजी के मंदिर में प्रार्थना करने केे उपरांत मुझे वहां सूक्ष्म रूप से प.पू. गुरुदेवजी का अस्तित्व अनुभव हुआ । उन्होंने मुझसे कहो, ‘शिव और शक्ति के रूप में मैं यहां हूं ।’ मुझे यह सुनकर आनंद हुआ और कृतज्ञता व्यक्त हुई ।’
– श्री. प्रणव मणेरीकर (१०.११.२०१९)