राष्ट्र की ओर देखने का सर्वदलीय शासकों का अपूर्ण दृष्टिकोण एवं परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी का परिपूर्ण दृष्टिकोण !

वर्तमान सर्वदलीय शासक राष्ट्र को केवल स्थूल दृष्टि से एक राष्ट्र के रूप में देखते हैं; अत:वे केवल राष्ट्र के भौतिक विकास, जनता के लिए आधुनिक सुविधाएं आदि के अनुसार ही विचार करते हैं । चराचर में स्थित प्रत्येक वस्तु के अस्तित्व के पीछे स्थूल कारण सहित सूक्ष्म कारण भी होते हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी राष्ट्र की ओर स्थूल दृष्टि के साथ-साथ सूक्ष्म दृष्टि से, अर्थात धर्म की दृष्टि से देखते हैं;क्योंकि धर्म राष्ट्र की आत्मा है ।

महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से आयोजित कार्यशाला में जिज्ञासुआें के लिए परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी का मार्गदर्शन

परात्पर गुरु डॉक्टरजी स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाउंडेशन संस्था के प्रेरणास्रोत हैं । पूरे विश्‍व में अध्यात्मप्रसार करने हेतु उन्होंने महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की स्थापना की है । इस विश्‍वविद्यालय की ओर से भारत के आध्यात्मिक शोधकेंद्र, गोवा में ५ दिनों की आध्यात्मिक कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं ।

साधको, धर्मप्रसार के कार्य में समर्पित भाव से सहभागी होकर संधिकालीन साधना का लाभ लें !

गुरुकृपा से अब मकर संक्रांति के शुभमुहूर्त पर साधकों को कोरोना के सर्व नियमों का पालन कर पुन: प्रत्यक्ष धर्मप्रसार करने का सुवर्ण अवसर मिला है। वर्तमान काल आपातकाल समान है, तब भी भावी आपातकाल की तुलना में वह आपातकाल का संपतकाल समान है ।

साधना के कारण भारतीय और पश्चिमी संगीत का आध्यात्मिक स्तर पर विश्लेषण करना संभव !

‘‘संगीत की उत्‍पत्ति मंदिर से होने के कारण अपनी संगीत कला में ही अध्‍यात्‍म है । अनेक संत संगीत का आधार लेकर ही ईश्‍वरप्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर हुए हैं । भारतीय और पश्चिमी गायन, वादन, नृत्य आदि कलाआें में अब तक महर्षि अध्यात्‍म विश्वविद़्यालय ने ४०० से भी अधिक विविध प्रयोग किए हैं ।

महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय की ओर से आयोजित कार्यशाला में जिज्ञासुओं का परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने किया मार्गदर्शन

परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी ‘स्‍पिरिचुअल साइंस रिसर्च फाउंडेशन’ संस्‍था के प्रेरणास्रोत हैं । उन्‍होंने समूचे विश्‍व में अध्‍यात्‍म का प्रचार करने के लिए ‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ की स्‍थापना की है ।

वसंत पंचमी

ऐसा कहा जाता है कि कामदेव मदन का जन्म इसी दिन हुआ । दांपत्य-जीवन सुख से बीते, इस उद्देश्य से लोग रति-मदन की पूजा एवं प्रार्थना करते हैं ।

साधना करने के कारण जीवन के कठिनतम प्रसंगों में भी व्यक्ति स्थिर रहकर उसका सामना कर सकता है ! – पू. नीलेश सिंगबाळजी, हिन्दू जनजागृति समिति

अहं खेत में उगनेवाले खरपतवार जैसा है, जिसे पूर्णतया नष्‍ट किए बिना ईश्‍वर कृपा की फसल नहीं उगती । इसलिए निरंतर इसकी कटाई करते रहना चाहिए । इसके साथ ही साथ ईश्‍वर के प्रति भाव होना भी अत्‍यंत महत्त्वपूर्ण है ।

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित कार्यशाला में जिज्ञासुओं के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का मार्गदर्शन

परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी ‘स्‍पिरिच्‍युअल साइन्‍स रिसर्च फाउंडेशन’ संस्‍था के प्रेरणास्रोत हैं । पूरे विश्‍व में अध्‍यात्‍मप्रसार करने हेतु उन्‍होंने ‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ की स्‍थापना की है ।

सनातन संस्‍था के हितचिंतक श्री. सचिन कपिल के पिताजी की मृत्‍यु के उपरांत तेरहवीं के दिन पर ‘ऑनलाइन साधना सत्‍संग’ का आयोजन !

मृत्‍यु के उपरांत पूर्वजों की अतृप्‍त आत्‍मा को सद़्‍गति मिलने के लिए हमें क्‍या प्रयास करने चाहिए, पूर्वजों से होनेवाले कष्‍ट निवारण हेतु भगवान दत्तात्रेय के नामजप का महत्त्व, साधना और कालानुसार नामजप का महत्त्व आदि विषयों पर हिन्‍दू जनजागृति समिति के प्रवक्‍ता श्री. नरेंद्र सुर्वे ने अपने विचार प्रस्‍तुत किए ।