परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी

     ‘मंदिर में देवताओं के कर्मचारी दर्शनार्थियों को दर्शन कराने की अपेक्षा अन्य कुछ करते हैं क्या ? उन्होंने दर्शनार्थियों को धर्मशिक्षा दी होती, साधना सिखाई होती, तो हिन्दुओं की एवं भारत की ऐसी दयनीय स्थिति नहीं होती ।’

सनातन के आश्रम में कौन रह सकता है ?

     ‘सनातन का आश्रम देखने के लिए आनेवाले कुछ लोग पूछते हैं, ‘‘आश्रम में कौन रह सकता है ?’’ इस प्रश्न का उत्तर है, ‘ईश्वरप्राप्ति के लिए अखंड साधना करने का इच्छुक कोई भी व्यक्ति आश्रम में रह सकता है ।’

बुद्धिप्रमाणवादी एवं कुंडलिनी शक्ति !

     ‘साधना करने पर कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है । अभी तक के युगों में लाखों साधकों ने यह अनुभव किया है; परंतु साधना पर विश्वास न रखनेवाले बुद्धिप्रमाणवादी साधना किए बिना ही कहते हैं, ‘कुंडलिनी दिखाओ, नहीं तो वह है ही नहीं !’

     ‘आंखें खोलने पर दिखाई देता है; उसी प्रकार साधना से सूक्ष्म दृष्टि जागृत होने पर सूक्ष्म स्तर का दिखाई देता है और ज्ञान होता है । साधना कर सूक्ष्म दृष्टि जागृत न करने के कारण बुद्धिप्रमाणवादी अंधे समान ही होते हैं ।’’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

समाज के लिए मार्गदर्शन !

वर्तमान में मानसिक नहीं, तो केवल शारीरिक प्रेम करनेवाले पति-पत्नी !

     ‘वर्तमान काल के स्त्री-पुरुष के बीच का प्रेम अधिकतर केवल शारीरिक प्रेम होता है । इसलिए उन्हें विवाह करने की भी आवश्यकता नहीं लगती और उन्होंने विवाह किया, तो वह टूट जाता है । उनकी एक-दूसरे से नहीं बनी, तो वे मानसिक प्रेम न होने से जोडीदार बदलते रहते हैं । विवाह किया हो, तो अल्पावधि में ही उनका विवाह विच्छेद होकर वे अलग हो जाते हैं ।’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (८.२.२०२२)