१. विविध चक्रों परनामजप-पट्टियां लगाना
‘नामजप-पट्टी शरीर को स्पर्श कर लगाते समय नामजप-पट्टी के अक्षरोंवाला भाग बाहर की दिशा में (निर्गुण) रखना है या भीतरी दिशा में (सगुण) रखना है ?’, यह नीचे दिया है ।
चक्र कौन-सी नामजप-पट्टी ? नामजप-पट्टी सगुण लगाएं अथवा निर्गुण ? शरीर पर ‘आगेे’ (टिप्पणी १) शरीर पर ‘पीछे’
(टिप्पणी २)
१. आज्ञा महाशून्य सगुण निर्गुण
२. स्वाधिष्ठान महाशून्य निर्गुण सगुण
टिप्पणी १ – ‘आगेे’ अर्थात शरीर के चक्र से संबंधित सामने का भाग
टिप्पणी २ – ‘पीछे’ अर्थात शरीर के चक्र से संबंधित पीछे का भाग
२. जप
वर्तमान में आपातकाल की तीव्रता बढती जा रही है । कालमहिमा अनुसार वर्तमान में साधकों को होनेवाले कष्टों में से ७० प्रतिशत कष्ट समष्टि स्तर पर और ३० प्रतिशत कष्ट व्यष्टि स्तर पर हैं ।
२ अ. उपचार के लिए बैठकर जप करनेवाले साधक : इसमें जितना समय नामजप करेंगे, उसका ७० प्रतिशत समय व्यष्टि उपचारों के लिए ‘प्राणशक्ति प्रणाली उपचार-पद्धति’ के अनुसार ढूंढकर मिला जप, बताए हुए अन्य कुछ जप अथवा मंत्रजप हों, तो वे करें और शेष ३० प्रतिशत समय ‘महाशून्य’ का जप समष्टि के लिए करें । यदि ढूंढे गए उपचारों का २ – ३ सप्ताह में लाभ न होने पर अथवा तीव्र कष्ट होने से उपचार ढूंढ न पा रहे हों, तो ६० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधकों से अथवा संतों से पूछें ।
२ आ. उपचार स्वरूप बैठकर जप न करनेवाले साधक : दिनभर में पूरे समय ‘महाशून्य’ का नामजप करें । यदि उन्हें कुछ कष्ट हो रहा है, तो वे कष्ट की तीव्रता के अनुसार (टिप्पणी) उतने समय तक उपचारों के लिए नामजप बैठकर करें और शेष समय ‘महाशून्य’ का जप करें । टिप्पणी – मंद कष्ट हो रहा है तो १ ते २ घंटे, मध्यम कष्ट हो रहा है तो ३ से ४ घंटे और तीव्र कष्ट हो रहा है तो ५ से ६ घंटे उपचार करें ।
२ इ. समष्टि के लिए नामजप करनेवाले संत और साधक : कुछ संत समष्टि के लिए कुछ घंटे नामजप करते हैं । इसके साथ ही ६० प्रतिशत से अधिक स्तर के कुछ साधक हिन्दू राष्ट्र-जागृति सभा, आंदोलन इत्यादि में अनिष्ट शक्तियों की बाधाएं दूर होने के लिए नामजप करते हैं । वे उतने समय ‘महाशून्य’ का नामजप करें ।
३. न्यास
समष्टि स्तर के कष्ट दूर करने के लिए ‘महाशून्य’ नामजप चलते-फिरते या बैठकर करते समय आगे दिए अनुसार न्यास करें । एक हथेली अनाहतचक्र पर और दूसरी हथेली मणिपुरचक्र पर आडी रखें । अपनी हथेली न्यास करने के स्थान से १ – २ सें.मी. दूर रखें । उपचारों के लिए नामजप-पट्टी लगे हुए आज्ञा और स्वाधिष्ठान चक्रों पर न्यास करने से समष्टि स्तर के आक्रमणों से संपूर्ण शरीर की रक्षा नहीं होती है । अनाहतचक्र और मणिपुरचक्र पर न्यास करने से संपूर्ण शरीर की रक्षा होती है । अत: अनाहतचक्र और मणिपुरचक्र पर न्यास करें ।’ – (पू.) डॉ. मुकुल गाडगीळ (८.११.२०१९)