Madras HC allows Angapradakshinam : मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा जूठी पत्तल की अंगपरिक्रमा को दी गई अनुमति !

वर्ष २०१५ में उच्च न्यायालय ने प्रतिबंध लगाया था  !

चेन्नई (तमिलनाडु) – मद्रास उच्च न्यायालय ने जूठी पत्तल की अंगपरिक्रमा करने की अनुमति दी है । इस प्रथा पर मद्रास उच्च न्यायालय ने ही वर्ष २०१५ में प्रतिबंध लगाया था ।

न्यायालय ने कहा है,

१. इस प्रथा के आध्यात्मिक परिणामकारीता के संदर्भ में याचिकाकर्ता ने व्यक्त किए विश्‍वास को न्यायालय में चुनौती देना असंभव है । यजमान द्वारा केले के पत्ते पर भोजन करने के उपरांत उन पत्तों पर अंगपरिक्रमा करना, यह भक्तों के उच्च धार्मिक पूजन का भाग है । यह अधिकार भारतीय संविधान के भाग ३ द्वारा सुरक्षित है । एकाध व्यक्ति को अंगपरिक्रमा करने का पूरा अधिकार है । संविधान के धारा १४, १९(१)(अ), १९(१)(ब), २१ एवं २५(१) के अनुसार उनका यह अधिकार सुरक्षित है ।

२. किसी व्यक्ति की जीवनशैली पर नियंत्रण रखनेवाले व्यक्ति का व्यक्तिगत चयन छुपा होता है तथा केवल व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर होने के कारण गोपनीयता गंवाई अथवा छोडी नहीं जाती । संविधान के अनुच्छेद १९(१)(ड) के अनुसार पूरे देश में स्वतंत्रता से विहार करने का अधिकार केवल चलना अथवा वाहनों की यातायात तक सीमित न होते हुए, अंगपरिक्रमा भी उसमें समाहित होगी ।

३. याचिकाकर्ता की अंगपरिक्रमा को अनुमति देने हेतु प्रार्थना करना अनावश्यक है; क्योंकि उसे पारंपरिक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करने हेतु अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है । याचिकाकर्ता अंगपरिक्रमा कर सकता है । तथा अधिकारी उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता । यदि कोई अडचन हो, तो याचिकाकर्ता को अपने मूलभूत अधिकार के प्रयोग के लिए सहायता करना एवं बाधाएं दूर करना, यह पुलिस का कर्तव्य है ।

४. इस याचिका में ब्राह्मणों के जूठे केले के पत्ते पर अन्य समाज के लोग सो जाते हैं, इस कल्पना पर संविधान की धारा १७ का अनुचित प्रयोग किया गया है । यह प्रथा जातिनिहाय सुलह एवं सामाजिक एकता की ओर निर्देश करती है ।’

क्या है अंगपरिक्रमा  ?

अंगपरिक्रमा अर्थात लुढकते हुए परिक्रमा करना । तमिलनाडु राज्य के कुछ मंदिरों में ब्राह्मणों को केले के पत्ते पर भोजन देने के उपरांत उनकी जूठी पत्तलों से व्रत का  आचरण करनेवाला व्यक्ति अंगपरिक्रमा करता है ।

क्या है प्रकरण ?

वर्ष २०१५ में मद्रास उच्च न्यायालय के एक न्यायमूर्ति ने सरकारी अधिकारियों को  निर्देश देते हुए कहा था, ‘किसी को भी अंगपरिक्रमा करने की अनुमति न दी जाए । धार्मिक प्रथा एवं रिती-रिवाजों में हस्तक्षेप करने की न्यायालय को सीमाएं होती हैं, तथापि धर्म के नाम पर किसी भी प्रथा का पालन कर किसी भी मानव का अनादर  करने की अनुमति नहीं दी जा सकती ।’

वर्तमान प्रकरण में अंगपरिक्रमा करने इच्छुक याचिकाकर्ता ने इसके लिए अनुमति मांगी थी । उनको धर्म का पालन करने हेतु, उनके मूलभूत अधिकार का प्रयोग करने हेतु अनुमति दी जाए, ऐसा युक्तिवाद करने पर सरकार ने न्यायालय के आदेश के कारण अनुमति नहीं दे सकते, ऐसा कहा था ।