आदि शंकराचार्यजी के काल और वर्तमान काल के धर्म विरोधियों में भेद !

‘आदि शंकराचार्यजी ने भारत में सर्वत्र घूमकर हिन्दू धर्म के विरोधियों से वाद-विवाद में जीतकर हिन्दू धर्म की पुनर्स्थापना की । उस काल के विरोधी वाद-विवाद करते थे । इसके विपरीत वर्तमान काल के धर्म विरोधी वाद-विवाद न कर केवल शारीरिक और बौद्धिक गुंडागिरी करते हैं !’

छोटे बच्चों जैसे बुद्धिवादी !

‘बुद्धिवादियों को कभी विश्वबुद्धि से ज्ञान मिलता है क्या ? ‘विश्वबुद्धि’ जैसा भी कुछ है और उस विश्वबुद्धि से ज्ञान मिलता है, यह भी वे जानते हैं क्या ? यह ज्ञात न होने के कारण ही वे छोटे बच्चों के समान बडबडाते हैं !’

भारत की स्थिति दयनीय होने का कारण !

‘ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण विवाद निर्माण करनेवालों ने हिन्दुओं में भेदभाव उत्पन्न किया । इस कारण हिन्दुओं और भारत की स्थिति दयनीय हो गई है । अतः भेदभाव करनेवाले राष्ट्रद्रोही एवं धर्मद्रोही हैं !’

आदर्श हिन्दू राष्ट्र ही रामराज्य है !

‘हिन्दू राष्ट्र में अर्थात रामराज्य में बाल्यावस्था से साधना करवाई जाएगी । इससे व्यक्ति में विद्यमान रज-तम की मात्रा घटकर व्यक्ति सात्त्विक बनता है । इस कारण ‘अपराध करने का विचार भी उसके मन में नहीं आता । साधना के कारण पूरी प्रजा सात्त्विक बन जाती है और कोई भी अपराध नहीं करता !

बुद्धिवादी एवं संतों में भेद !

‘कहां स्वेच्छा से आचरण करने हेतु प्रोत्साहित कर मानव को अधोगति की ओर ले जानेवाले बुद्धिवादी और कहां मानव को स्वेच्छा का त्याग करना सिखाकर ईश्वरप्राप्ति करवानेवाले संत !’

धर्मविरोधकों के विचारों का खंडन करना आवश्यक !

‘धर्म विरोधकों के विचारों का खंडन करना समष्टि साधना ही है । इससे ‘धर्म विरोधकों के विचार अनुचित हैं’, यह कुछ लोगों को समझ में आता है एवं वे उचित मार्ग पर बढते हैं ।’

सर्वधर्मसमभाव !

‘आंगनवाडी के बालक और  पदव्युत्तर शिक्षा प्राप्त युवक की शिक्षा समान ही है, ऐसा हम नहीं कहते । वैसी ही स्थिति अन्य तथाकथित धर्म एवं हिन्दू धर्म की होते हुए ‘सर्वधर्मसमभाव’ का घोष करने जैसा दूसरा अज्ञान नहीं है । यह बात विविध धर्मों का अध्ययन करने पर किसी के भी ध्यान में आएगी परंतु अध्ययन न होने के कारण ‘प्रकाश एवं अंधकार समान हैं’, ऐसा कहनेवाले अंधों के समान ‘सर्वधर्मसमभावी’ हो गए हैं ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘हम व्यक्तिगत जीवन में विभिन्न प्रसंगों में उचित निर्णय परिजन, संबंधी, मित्र, वैद्य, अधिवक्ता, लेखा परीक्षक आदि से पूछकर लेते हैं । उसी प्रकार राष्ट्र एवं धर्म संबंधीनिर्णय राष्ट्र एवं धर्म प्रेमी संतों से ही पूछकर लेने
चाहिए !’

विविध विषयों के विशेषज्ञ एवं संत

व्यवहारिक जीवन में आंखों के विशेषज्ञ को आंखों का रोग होता है । हृदय- विशेषज्ञ को हृदय का विकार होता है। परंतु अध्यात्म में संतों को अन्यों के आध्यात्मिक कष्ट दूर करने पर आध्यात्मिक कष्ट नहीं होते । कुछ संतों को शारीरिक कष्ट हो रहे हों, तब भी वे देह-प्रारब्ध के अनुसार होते हैं । उसका परिणाम संतों पर नहीं होता !