निरोगी जीवन हेतु आयुर्वेद

‘गतिमान’ भगवान वायु

१. वायु के बिना जीवन असंभव

हवा (वायु) है; इसीलिए जीवन संभव है । हमने यदि ‘हम केवल ५ मिनट वायु के बिना रहेंगे’, ऐसा कहा, तो क्या वह संभव होगा ? बिना सांस लिए कितने समय तक रहना संभव है, यह देखें ! वायु के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती । ऐसी वायु विश्व का आधार है । वह साक्षात भगवान है । पवन एक स्थान पर कभी भी स्थिर नहीं रहती । वह ‘गतिमान’ रहती है । ‘जीवन को गति प्रदान करना’, उसका मुख्य काम है ।

२. जहां-जहां ‘गति’ वहां-वहां ‘वात’

बाह्य सृष्टि में स्थित हवा अथवा वायु अर्थात ही हममें स्थित ‘वात’ भगवान ही है । इसके बिना हमारा जीवन असंभव है । श्वासोच्छ्वास, हृदय की धडकन, रक्त का बहना, अन्न का वहन (अन्न को अंदर लेने से लेकर उसके मलरूप में बाहर निकलने तक की यात्रा), हाथ-पैरों की हलचल, आंखों का खुलना-मूंदना, मन की प्रसन्नता, उत्साह… यह सूची कितनी भी लंबी खींची जा सकती है । संक्षेप में कहा जाए, तो जहां-जहां ‘गति’ वहां-वहां ‘वात’ !’

‘परिणमन’ कर्ता  (रूपांतरण करनेवाला) सूर्य

१. ऊर्जा का परिणमन

‘हमने बचपन में विद्यालय में अन्न की शृंखला सीखी है ? क्या आपको उसका स्मरण है ? क्या था उसमें ? सूर्य से पृथ्वी पर ऊर्जा मिलती है । पेडों में यह ऊर्जा अन्न-अनाज, फल आदि रूपों में रूपांतरित होती हैं । खरगोश, हिरण, बकरी, गाय जैसे शाकाहारी प्राणी पेडों से सूर्य की ऊर्जा लेते हैं । भेडिए, बाघ जैसे मांसाहारी प्राणी, अन्य प्राणियों को खाकर जीते हैं । प्राणियों के मल पर असंख्य सूक्ष्म जीव-जंतु अपनी जीविका चलाते हैं । ये जीव-जंतु पेडों के लिए पोषक होते हैं इत्यादि । संक्षेप में कहा जाए, तो अन्न की शृंखला का मूल स्रोत सूर्य है तथा इस शृंखला में सूर्य की ऊर्जा का ‘परिणमन’ अर्थात ही ‘रूपांतरण’ होता रहता है ।

२. गरमी

सूर्य है; इसी कारण गरमी है । ‘गरमी’ अथवा ‘गरमी देना’ सूर्य का ही कार्य है । पृथ्वी के उत्तर अथवा दक्षिण ध्रुवीय प्रदेश में, साथ ही हिमालय जैसे ऊंचे पर्वतों पर सूर्य की पर्याप्त गरमी नहीं पहुंचती; इसलिए ऐसे प्रदेश सदैव हिमाच्छादित रहते हैं । आप वहां विशिष्ट गरम वस्त्रों के बिना जा ही नहीं सकते ।

३. प्रकाश

सूर्य है; इस कारण प्रकाश है तथा वह है; इसीलिए हम यह विश्व देख सकते हैं । विश्व को ‘प्रकाशित’ करना (आंखों को दिखाना) सूर्य का तीसरा कार्य है ।

४. जहां-जहां ‘परिणमन’ (रूपांतरण) वहां-वहां ‘पित्त’

सूर्य का शरीर में स्थित प्रतिनिधि है ‘पित्त’ ! खाए गए अन्न का पाचन करना, शरीर की गरमी को बनाए रखना, साथ ही ‘दृष्टि’ पित्त का कार्य है । संक्षेप में कहा जाए, तो जहां-जहां ‘परिणमन’ अथवा रूपांतरण है, वहां-वहां ‘पित्त’ है !’

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (९.११.२०२३)