प्रसव से संबंधित लाभ का कानून १९६१ (मैटर्निटी बेनिफिट एक्ट) तथा उसकी जानकारी

वर्ष १९६१ अर्थात स्वतंत्रता के १४ वर्ष उपरांत संसद में एक कानून पारित किया गया । उसके अनुसार ‘जो भारतीय महिला नौकरी करती है, उसे उसके प्रसव की अवधि में अनिवार्य छुट्टी मिले, साथ ही उसे आर्थिक सहायता भी मिले । शिशु एवं माता, दोनों के सामान्य होने के उपरांत उसे पुनः काम पर लिया जाए । इस संपूर्ण छुट्टी की अवधि में उसे जो मूल वेतन मिलता है, वह उसमें किसी प्रकार की कटौती किए बिना मिले’, इस प्रकार से यह प्रसव से संबंधित कानून पारित हुआ । काल के अनुसार उसमें संशोधन होकर वह कानून और सशक्त हुआ । वर्ष २०१७ में उसमें और अधिक संशोधन किए गए । इस कानून के संबंध में निम्नांकित जानकारी सभी के लिए उपयुक्त सिद्ध होगी ।


१. इसके लिए कौन योग्य है ?

संबंधित गर्भवती महिला ने किसी भी प्रतिष्ठान में पिछले १२ महिनों में (एक वर्ष में) न्यूनतम ८० दिन निरंतर काम किया हो ।

२. काम का स्थान

दुकान, होटल, चिकित्सालय, शोरूम, कारखाना, प्रतिष्ठान (कंपनी), खान, फर्म, प्रशासकीय, आंशिक प्रशासनिक, निजी नौकरी, सेना जैसे सभी स्थानों पर यह कानून लागू है; परंतु उस कारखाने में अथवा दुकान में १० से अधिक कर्मचारी काम करते हों ।

३. लाभ

अधिवक्ता शैलेश कुलकर्णी

इस कानून में किए गए प्रावधान के अनुसार प्रसव की तिथि से ८ सप्ताह पूर्व छुट्टी ली जा सकती है, साथ ही प्रसव होने की तिथि के उपरांत संपूर्ण १८ सप्ताह तक वेतन सहित छुट्टी ली जा सकेगी । संबंधित महिला जहां नौकरी करती है, उस प्रतिष्ठान को इन २६ सप्ताह का वेतन देना ही पडेगा ।

४. कानून की दृष्टि से अन्य आवश्यक घटक

अ. जिन प्रतिष्ठानों में ५० से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हों, ऐसे प्रतिष्ठानों को बालगृह अथवा बालपोषण केंद्र का प्रबंध करना पडेगा; क्योंकि २६ सप्ताह के उपरांत जब वह महिला काम पर वापस आएगी, उस समय काम के समय में वह महिला अपने शिशु से मिल सकेगी, वह अपने शिशु को खिला-पिला (फिडिंग) सकेगी, उसका ध्यान रख सकेगी तथा दिन में ४ बार शिशु से मिलने के लिए जा सकेगी ।

आ. महिला जब किसी प्रतिष्ठान में काम पर पहली बार जाती है, उसी समय प्रतिष्ठान की ओर से लिखित रूप से प्रसव के समय प्रावधित योजना की उसे जानकारी देना अनिवार्य बनाया गया है ।

इ. इस कानून में ‘मिकैरेज’, ‘एबॉर्शन’ एवं एम.टी.पी. (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नंसी) अर्थात गर्भपात भी अंतर्भूत हैं ।

ई. इस संपूर्ण २६ सप्ताह की अवधि में उस महिला को काम से निकाला नहीं जा सकता, साथ ही उसे किसी भी प्रकार का नोटिस, ‘शो कॉज’ (कारण बताओ), ‘वॉर्निंग’ भी (चेतावनी) नहीं दी जा सकेगी । उसके तथा उसके शिशु के मानसिक एवं शारिरीक स्वास्थ्य की दृष्टि से यह प्रावधान किया गया है ।

उ. प्रतिष्ठान की ओर से उसे ‘मेडिकल बोनस’ (चिकित्सकीय लाभांश) के रूप में १ सहस्र रुपए देने पडते हैं । इस कानून के नए संशोधन के अनुसार केंद्र सरकार की ओर से वर्ष २०१७ से ‘प्रधानमंत्री मातृवंदना योजना’ के अंतर्गत उस महिला को ५ सहस्र रुपए ‘प्रोत्साहन भत्ता’ (इसेंटीव) दिया जाता है, साथ ही प्रति माह की ९ वीं तिथि को ‘प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान’ के अंतर्गत माता एवं शिशु के लिए ‘प्रतिबंधात्मक स्वास्थ्य सेवा’ का भी (Preventive health care services) लाभ दिया जाता है । इस योजना में टीकाकरण, आहार का पथ्य (डाएट) जैसी सुविधाएं दी जाती हैं । जो महिलाएं गरीबी रेखा के नीचे की होती हैं, वे इसका लाभ उठा सकती हैं ।

ऊ. इस कानून में किए गए प्रावधान के अनुसार उस अवधि में महिला को थोडासा हल्का काम दिया जाता है तथा आवश्यकता पडने पर उसके काम का स्वरूप यदि घर पर ही करनेयोग्य (वर्क फ्रॉम होम) हो, तो उसे प्रतिष्ठान एवं संबंधित महिला की सहमति से घर से काम करने की अनुमति दी जाए ।

ए. शिशुओं के सार्वजनिक पोषण केंद्र में (क्रेच सिस्टम) ६ माह के बच्चे से लेकर बच्चा ६ वर्ष का होने तक वहां रखा जा सकता है । यदि महिला भिन्न-भिन्न सत्रों में (‘शिफ्ट ड्यूटी’ में) काम करती हो, तो उस केंद्र को २४ घंटे खुला रखना प्रतिष्ठानों के लिए अनिवार्य होगा ।

ऐ. यदि उस महिला को ‘राज्य कामगार बीमा योजना’ से (‘ई.एस.आई.सी.’ से) उस संपूर्ण अवधि का वेतन मिलता हो, तो संबंधित प्रतिष्ठान अथवा ‘ई.एस.आई.सी.’ में से किसी एक ही विभाग से आर्थिक लाभ लिया जा सकेगा ।

५. उच्च एवं सर्वाेच्च न्यायालयों के द्वारा प्रसव से संबंधित कानून के विषय में दिए गए निर्णय

यह कानून प्रतिष्ठान में अनुबंधित पद्धति से (‘कॉन्ट्रैक्ट’ पद्धति से) काम कर रही महिला कर्मचारियों के लिए उपयुक्तहै ।

♦ ‘डॉ. मनदीप कौर विरुद्ध युनियन ऑफ इंडिया (केंद्र सरकार) (२०२०)’ अभियोग में दिए गए निर्णय में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह लिखा है कि अनुबंधित पद्धति से काम करनेवाली महिला कर्मचारियों को भी यह कानून लागू है । इसके लिए केवल यही शर्त है कि उस प्रतिष्ठान में १० से अधिक कर्मचारी काम करते हों, साथ ही अनुबंधित पद्धति से संबंधित महिला ने १ वर्ष की अवधि में निरंतर ८० दिन काम किया हो । दिहाडी पर काम करनेवाली महिलाओं को भी उक्त उल्लेखित शर्त पर इस कानून का लाभ मिल सकेगा ।

♦ ‘बि. शाह विरुद्ध प्रिसाडिंग ऑफिसर, लेबर कोर्ट, कोयंबतूर (१९७८)’ के बहुचर्चित अभियोग में मा. सर्वाेच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि ‘मैटर्निटी बेनिफिट एक्ट’ संविधान के अनुच्छेद ४२ की पुष्टि करता है तथा महिलाओं को दी जानेवाली वेतन सहित छुट्टियों में रविवार को भी (छुट्टी का दिन) हटाया नहीं जा सकेगा । उस महिला को सभी दिन का वेतन देना होगा ।’

जो महिलाएं काम पर हैं तथा वे उक्त शर्तें पूर्ण करती हों, वे इस जानकारी का लाभ उठाकर इस कानून का लाभ उठाएं ।

६. प्रसव से संबंधित लाभ के कानून में संशोधन आवश्यक !

इस कानून के जैसे लाभ हैं, वैसे त्रुटियां भी हैं; क्योंकि गर्भवती महिला कर्मचारी प्रतिष्ठानों को बोझ (बर्डन) लगती हैं । इन प्रतिष्ठानों को ७-८ महिनों तक वेतन के साथ छुट्टी देना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं होता, साथ ही अलग से काम भी बाधित होता है । उसके कारण सर्वत्र ‘महिला कर्मचारियों को काम पर ही नहीं लेना चाहिए’, यह विचार फैल गया है । इसका दंश महिला सशक्तिकरण को झेलना पडता है । छोटे दुकानदार, व्यापारी, पेट्रोल पंप प्रतिष्ठानों को यह आर्थिक दृष्टि से हानिकारक होता है । उसके कारण अनेक बार केवल इसी कारणवश महिलाओं को रोजगार के अवसर नहीं दिए जाते; परंतु इस कानून में अविवाहित महिला का प्रसव तथा ‘लिव इन रिलेशनशिप’ (विवाह के बिना एकत्रित रहना) से होनेवाली गर्भधारणा के विषय में किसी प्रकार का उल्लेख नहीं है; इसलिए इस कानून में पुनः एक बार संशोधन करना आवश्यक बन गया है ।

– अधिवक्ता शैलेश कुलकर्णी, कुर्टी, फोंडा, गोवा.