नई देहली – आवारा कुत्तों को पालने का अर्थ यह नहीं कि आप उनको रास्ते में छोडकर लडाई करते रहें, अथवा अन्यों के दैनंदिन जीवन पर उनका दुष्परिणाम हो, ऐसा वक्तव्य देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने आवारा कुत्तों को संभालने हेतु न्यायालयीन सुरक्षा मांगने के लिए निवेदित याचिका पर सुनवाई अस्वीकार कर दी है । ऐसे कुत्तों के संदर्भ में अन्य खंडपीठ विचार कर रहा है, इसलिए इस न्यायालय ने इस याचिका पर विचार करने को ‘न’ कहा । न्यायमूर्ति एम.आर. शाह एवं न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश के खंडपीठ ने याचिका प्रविष्ट करनेवाले के अधिवक्ता को ‘संबंधित खंडपीठ’ में याचिका प्रविष्ट करने को कहा’ । मध्य प्रदेश की समरीन बानो ने याचिका प्रविष्ट कर ‘राज्य में आवारा कुत्तों की सुरक्षा की ओर ध्यान नहीं दिया जाता’, ऐसा दावा किया था, तथा उन्होंने ६७ पालतु आवारा कुत्तों की सुरक्षा मांगी थी ।
संपादकीय भूमिकास्पष्ट है कि मूलत: आवारा कुत्तों से सभी को कष्ट होता है । देश में प्रतिदिन पालतु कुत्ते हों, अथवा आवारा, वे अनेक लोगों को काटते हैं । इसलिए इस समस्या का स्थायी समाधान ढूंढने की आवश्यकता है ! |