विज्ञान की निरर्थकता !
मानव को मानवता न सिखानेवाले; उलटे विध्वंसक अस्त्र, शस्त्र देनेवाले विज्ञान का मूल्य शून्य है !
मानव को मानवता न सिखानेवाले; उलटे विध्वंसक अस्त्र, शस्त्र देनेवाले विज्ञान का मूल्य शून्य है !
अध्यात्म सम्बन्धी शोधकार्य विज्ञानयुग की वर्तमान पीढी को अध्यात्म पर विश्वास हो तथा वह अध्यात्म की ओर प्रवृत्त हो, इस हेतु करना पडता है ।
‘किसी सात्विक राजा का चरित्र पढकर कुछ समय के लिए उत्साह प्रतीत होता है; परंतु ऋषि-मुनियों का चरित्र और उनकी सीख पढकर अधिक समय तक उत्साह प्रतीत होता है और साधना के लिए दिशा प्राप्त होती है ।’
‘हिन्दुओ, अयोध्या में प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बन गया है । आओ, अब भारत में रामराज्य लाने के लिए प्रयासों की पराकाष्ठा करें !’
कोई बैठकर नामजप न कर पा रहा हो, तो वह आते-जाते अथवा यात्रा में भी यह नामजप करे ।
‘सनातन का आश्रम देखने के लिए आनेवाले कुछ लोग पूछते हैं, “आश्रम में कौन रह सकता है ?” इस प्रश्न का उत्तर है, ‘ईश्वरप्राप्ति के लिए अखंड साधना करने का इच्छुक कोई भी व्यक्ति आश्रम में रह सकता है ।’
‘साधना करने पर कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है । अभी तक के युगों में लाखों साधकों ने यह अनुभव किया है; परंतु साधना पर विश्वास न रखनेवाले बुद्धिप्रमाणवादी साधना किए बिना ही कहते हैं, ‘कुंडलिनी दिखाओ, नहीं तो वह है ही नहीं !’
‘क्या कोई भी समाचार पत्र त्याग करना सिखाता है ? केवल सनातन प्रभात सिखाता है । इसलिए सनातन प्रभात के पाठकों की आध्यात्मिक प्रगति होती है; जबकि अन्य समाचार पत्रों के पाठक माया में फंस जाते हैं ।’
‘प्रत्येक पीढी अगली पीढी से समाज, राष्ट्र एवं धर्म सम्बन्धी अपेक्षा रखती है । इसके स्थान पर प्रत्येक पीढी को यह विचार कर कार्य करना चाहिए कि ‘हम क्या कर सकते हैं ।’ इससे अगली पीढी को इस विषय में कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी । जिससे वह पूरा समय साधना को दे सकेगी !’
‘सर्वधर्मसमभाव’ कहनेवाले ‘काला और श्वेत रंग समान ही दिखते हैं’, ऐसा कहनेवाले अंधों के समान होते हैं !’