सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के चरणों पर ‘ॐ ऐं क्लीं श्रीं श्रीं श्रीं सच्चिदानन्द-परब्रह्मणे नमः ।’ मंत्रजप करते हुए पुष्पार्चना करते समय ‘प्रत्येक फूल में विद्यमान प्राण जागृत हुआ है’, ऐसा प्रतीत हो रहा था । पुष्पार्चना करते समय उस प्रत्येक फूल का समर्पणभाव का अनुभव करना संभव हुआ ।
पाद्यपूजन समारोह में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की निर्गुणावस्था थी । मैंने और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने पूजा के आरंभ से समाप्ति उपरांत भी ध्यानावस्था अनुभव की; मानो ‘काल ही थम गया है’, इस प्रकार की वह अनुभूति थी । पूजनचलते समय श्री दत्ततत्त्व का प्रवाह अनुभव हो रहा था । पूजनस्थल का वातावरण इतना निर्गुण स्तर का बना था कि ‘श्री दत्तात्रेय रूप में स्थित श्री गुरुदेवजी का पाद्यपूजन दत्तलोक में ही हुआ’, ऐसा अनुभव हुआ ।
वास्तव में पाद्यपूजन समारोह आरंभ होने का समय लंबा खींच गया; परंतु तब भी वह समय में पूर्ण होने हेतु नियोजन में किसी प्रकार का समझौता नहीं किया गया था । पाद्यपूजन समारोह की विधियों का जिस प्रकार से नियोजन किया गया था, उसी प्रकार से पूजन किया गया । ऐसा होते हुए भी समारोह निर्धारित समय में पूर्ण हुआ । इससे ‘काल एवं समय पर भी श्री दत्तगुरु की ही प्रभुता थी’, इसका ही अनुभव हुआ ।
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी (२१.७.२०२२)