स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया द्वारा तनाव-निर्मूलन संभव ! – डॉ. (श्रीमती) नंदिनी सामंत, मनोरोग विशेषज्ञ, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय

‘दक्षिण एशियाई वैद्यकीय विद्यार्थी संगठन’ द्वारा
‘तनावयुक्‍त संसार में मनःशांति की खोज’ विषय पर ‘ऑनलाइन’ कार्यक्रम

डॉ. (श्रीमती) नंदिनी सामंत

     गोवा – ‘‘स्‍थायी आनंद और शांति पैसों से नहीं खरीदी जा सकती, वह नियमित रूप से स्‍वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया कार्यान्‍वित करना, सात्त्विक जीवनशैली स्‍वीकारना और किसी आध्‍यात्‍मिक दृष्‍टि से उन्‍नत व्‍यक्‍ति के मार्गदर्शन में और स्‍वयं साधना करना, इन त्रिसूत्री द्वारा ही मिल सकती है । उसके लिए स्‍वयं की उन्‍नति की दृष्‍टि से आजीवन समर्पित होकर प्रयत्न करना आवश्‍यक है । प्रामाणिकता से साधना करें, तो उचित समय पर हम अपने मन से परे जा सकते हैं । हममें विद्यमान ईश्‍वरीय तत्त्व का अनुभव ले सकते हैं । इसी को ‘आनंद’ कहते हैं’’, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय की मनोरोग विशेषज्ञ (श्रीमती) नंदिनी सामंत ने किया । १ नवंबर २०२० को सायं. ६ से ८ के मध्‍य ‘दक्षिण एशियाई वैद्यकीय विद्यार्थी संगठन’ (SAMSA) द्वारा आयोजित ‘तनावयुक्‍त संसार में मनःशांति की खोज’ इस विषय के ‘वेबिनार’ में (‘ऑनलाइन’ कार्यक्रम मेें) वे बोल रही थीं । इस ‘वेबिनार’ का सूत्रसंचालन ‘दक्षिण एशियाई वैद्यकीय विद्यार्थी संगठन’ की ६१ प्रतिशत आध्‍यात्मिक स्‍तर की परामर्शदाता और खजांची डॉ. श्रिया साहा ने किया ।

डॉ. श्रिया साहा

     इस वेबिनार में डॉ. (श्रीमती) नंदिनी सामंत ने ‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ के संस्‍थापक परात्‍पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी द्वारा ‘मनःशांति की खोज’ विषय पर किया हुआ शोध प्रस्‍तुत किया तथा ‘तनाव क्‍यों आता है ?’ इस विषय पर विवेचन किया । उसके पश्‍चात उन्‍होंने स्‍वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया और व्‍यक्‍तित्‍व के दोष दूर कर उनका गुणों में रूपांतरण करने के लिए यह प्रक्रिया कैसे कार्यान्‍वित करनी चाहिए, इस संबंध में बताया । ‘अध्‍यात्‍म और सात्त्विक जीवनशैली के कारण तनाव कैसे दूर होता है’, इस संबंध में भी उन्‍होंने अवगत करवाया और ‘जीवन में सकारात्‍मक परिवर्तन लाने के लिए स्‍वभावदोष-निर्मूलन कैसे करना चाहिए’, इस विषय पर ‘ऑनलाइन’ जुडे लोगों का मार्गदर्शन किया ।

     इस ‘वेबिनार’ में १४ देश और भारत के २४ राज्‍यों में से कुल १,१६८ लोगों ने पंजीयन किया था ।  ‘जूम’ और  ‘यू-ट्यूब’ के माध्‍यम से इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया गया । प्रत्‍यक्ष कार्यक्रम के पश्‍चात यह ‘वेबिनार’ अब ‘यू ट्यूब’ पर उपलब्‍ध है तथा वह अब तक ११ सहस्र से अधिक बार देखा गया है ।

कार्यक्रम को ऐसा भी मिला प्रतिसाद !

१. ‘वेबिनार’ के उपरांत एक जिज्ञासु श्री. आशुतोष एम. ने जालस्‍थल के पते पर अपनी स्‍वभावदोष सारणी लिखकर जांचने हेतु भेजी । सारणी में उन्‍होंने अपनी चूक, स्‍वभावदोष और सूचना लिखकर भेजी थी ।

२. स्‍वभावदोष निर्मूलन की अवधारणा पहली बार ही सुननेवाले सॅन डियागो, अमेरिका की एक जिज्ञासु श्रीमती श्रद्धा गव्‍हाणकर ने वेबिनार समाप्‍त होने के उपरांत ‘स्‍वभावदोष निर्मूलन यह विषय ‘स्‍पिरिच्‍युअल साइन्‍स रिसर्च फाउंडेशन’ के (एस.एस.आर.एफ.के) निश्‍चित किन पृष्‍ठों पर दिया है ?’, इस विषय पर जानकारी देने की विनती की । इन पृष्‍ठों का अध्‍ययन कर उन्‍होंने उस संदर्भ में शंकाएं पूछ लीं । उन्‍होंने ‘लगन न होना’ इस स्‍वभावदोष पर विजय प्राप्‍त करने के लिए उन्‍हें आनेवाली बाधाआें के संबंध में विस्‍तार से पूछा ।

     इस ‘वेबिनार’ में १४ देशों और भारत के २४ राज्‍यों में से कुल १,१६८ लोगों ने पंजीयन किया था । ‘जूम’ और  ‘यू-ट्यूब’ के माध्‍यम से इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया गया । प्रत्‍यक्ष कार्यक्रम के पश्‍चात यह ‘वेबिनार’ ‘यू ट्यूब’ पर उपलब्‍ध है तथा वह अब तक ११ सहस्र से अधिक बार देखा गया है ।

‘वेबिनार’ में पूछे गए प्रश्‍नों में से एक प्रश्‍न और उसका उत्तर

‘वेबिनार’ में अनेक जिज्ञासुआें ने उत्‍स्‍फूर्तता से अपने प्रश्‍न ‘चैट बॉक्‍स’ में पूछे । ‘वेबिनार’ में मुख्‍य विषय होने के उपरांत डॉ. (श्रीमती) नंदिनी सामंत ने जिज्ञासुआें के प्रश्‍नों के उत्तर दिए । इस समय श्री. सिंह ने प्रश्‍न पूछा ।

प्रश्‍न : क्‍या हमारे प्रारब्‍ध और स्‍वभावदोष में कोई संबंध होता है ?

उत्तर : पूर्वजन्‍म के अनुचित कर्मों के कारण यदि हमारे प्रारब्‍ध में इस जन्‍म में दुःख भोगना लिखा होगा, तब स्‍वभाव में अनेक दोष होंगे । क्‍योंकि स्‍वभावदोषों के कारण ही हमारे जीवन में दुःख आते हैं ।

‘वेबिनार’में सम्‍मिलित हुए जिज्ञासुआें द्वारा व्‍यक्‍त किए गए विशिष्‍ट अभिमत

     ‘वेबिनार’ के चलते अनेक जिज्ञासुआें ने स्‍वयंप्रेरणा से अपने अभिमत ‘चैट बॉक्‍स’ में व्‍यक्‍त किए । उनमें से कुछ विशिष्‍ट अभिमत सूत्रसंचालिका डॉ. श्रिया साहा ने ‘वेबिनार’ में पढकर सुनाए । वे निम्‍नानुसार हैं ।

१. श्री. अनिर्बान नियोगी : ‘वेबिनार’ के प्रारंभ में दिए हुए आंकडे अधिक आकर्षक थे । डॉ. नंदिनी सामंत उत्‍कृष्‍ट वक्‍ता हैं तथा उनके बोल ज्ञानवर्धक थे ।

२. डॉ. सूरज पवार : अत्‍यंत उत्‍कृष्‍ट जानकारी मिली । आभारी हूं । इससे पहले इस प्रकार से किसी ने भी उचित पद्धति से स्‍वभावदोष-निर्मूलन का विचार नहीं किया है ।

‘वेबिनार’ का वृत्त १५ नियतकालिक, वृत्त जालस्‍थल ने प्रसारित किया ।