कश्मीरी हिन्दुआें के बिना कश्मीर अधूरा होने का मत
हिन्दुआें के विस्थापन के लिए तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ही उत्तरदायी हैं, यह निराधार आरोप
- ‘सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली …’, वृत्ति के फारुख अब्दुल्ला ! ‘कश्मीर के जिहादी आतंकवादियों के कारण ही कश्मीर घाटी से साढे चार लाख हिन्दुआें को कश्मीर छोडकर जाना पडा था’, यह इतिहास है । ऐसा होते इस प्रकार झूठ बोलना क्या अब्दुल्ला की अपनी जिहादी छवि सुधारने का प्रयास नहीं है ? क्या उनके इस विधान पर दूध पीता बच्चा भी विश्वास करेगा ?
- अब्दुल्ला ने यह पूछताछ वर्ष १९९० में ही क्यों नहीं की ? क्या उन्हें जिहादियों के कुकृत्य उजागर होने का भय सता रहा था ?
- अब्दुल्ला का यह कहना जिहादियों के कारण जीवन उद्ध्वस्त हुए कश्मीरी हिन्दुआें के जले पर नमक छिडकने के समान है !
श्रीनगर – वर्ष १९९० में कश्मीरी हिन्दुआें के कश्मीर घाटी से हुए विस्थापन की जांच सर्वोच्च न्यायालय के निवृत्त न्यायाधीश द्वारा की जाए । वैसा होने पर कश्मीरी हिन्दुआें की युवा पीढी को सत्य ज्ञात होगा कि कश्मीरी हिन्दुआें को यहां के मुसलमानों ने कभी कश्मीर से बाहर नहीं निकाला है । (वर्ष १९९० में कश्मीरी हिन्दुआें के दरवाजों पर ‘काफिरो, कश्मीर ने निकल जाओ, इस्लाम स्वीकार करो अथवा मरने के लिए तैयार हो जाओ’, ऐसे ३ वैकल्पिक फलक चिपकाए गए थे, जिहादियों ने असंख्य हिन्दुआें को मारा तथा हिन्दू स्त्रियों पर बलात्कार किए । इसलिए हिन्दुआें को कश्मीर से विस्थापित होना पडा । अब्दुल्ला यह सत्य क्यों छिपा रहे हैं ? – संपादक)
( सौजन्य: Republic World )
इसके विपरीत वर्ष १९४७ से कश्मीर के मुसलमान कश्मीरी हिन्दुआें के पक्ष में खडे हैं, (ऐसा होता, तो क्या कश्मीर में हिन्दुआें की जनसंख्या घटती जाती ? – संपादक) नेशनल कॉन्फरेंस के नेता तथा जम्मू-कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने ऐसा झूठा कथन प्रस्तुत किया है । जम्मू-कश्मीर से धारा ३७० हटे एक वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में वे ऐसा बोल रहे थे ।
अब्दुल्ला आगे बोले, ‘‘कश्मीरी हिन्दुआें को ३ महीने में पुनः कश्मीर में लौटने का आश्वासन देकर उन्हें कश्मीर से बाहर ले जानेवाले राज्य के तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ही कश्मीरी हिन्दुआें के विस्थापन के लिए उत्तरदायी हैं । कश्मीरी हिन्दुआें को पुनः कश्मीर घाटी में बसाने की किसी भी प्रक्रिया को हमारा समर्थन है । मेरे पिताजी ने कभी भी द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत मान्य नहीं किया । वे सर्व धर्मों को समान माननेवाले नेता थे ।’’