प्रेमभाव एवं गुरुदेवजी के प्रति भाव से युक्त श्रीमती सुषमा सेठी (आयु ५९ वर्ष) ने प्राप्त किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर !

श्रीमती सुषमा सेठी

     फरीदाबाद (हरियाणा) – यहां की सनातन की साधिका श्रीमती सुषमा सेठी ने ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया । सनातन के संत पू. भगवंत कुमार मेनराय ने एक ‘ऑनलाइन’ सत्संग में यह शुभ समाचार दिया । इस ‘ऑनलाइन’ सत्संग में हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी की वंदनीय उपस्थिति थी ।

     सत्संग के दूसरे दिन श्रीमती सुषमा सेठी आशीर्वाद लेने हेतु सनातन के संत पू. भगवंतकुमार मेनरायजी के निवास पर गईं । तब उन्होंने श्रीमती सुषमा सेठी को शुभकामनाएं एवं भेंटवस्तु दी ।

श्रीमती सुषमा सेठी की गुणविशेषताएं

१. प्रेमभाव

     ‘दीदी के घर में वस्तुसंग्रह रखा था । इस संग्रह का प्रतिमाह परीक्षण किया जाता है, सुषमादीदी बहुत अच्छा और भावपूर्ण पद्धति से उसका नियोजन करती हैं । उनमें साधकों के प्रति बहुत प्रेमभाव है । वह साधकों को समय-समय पर अल्पाहार अथवा भोजन के लिए आमंत्रित करती हैं और रात में दूध-फल भी देती हैं । वह  बहुत प्रेमपूर्वक साधकों का ध्यान रखती हैं ।’

२. अन्यों का विचार करना

     जब देहली में सेवा हेतु साधक आते हैं, तब वह उनके घर पर ही निवास करते हैं । साधकों को ठंड के समय गर्म ओढने को देना, उनके लिए थर्मस में गर्म पानी भरकर रखना, जैसे कृत्य वे स्मरणपूर्वक करती हैं । वे साधकों से ‘रात में आपको ठंड और मच्छरों के कारण कष्ट तो नहीं हुआ न ?’, यह भी पूछती हैं और साधकों का ध्यान रखती हैं । ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के साधकों को किसी प्रकार का कष्ट न पहुंचे और उनकी सेवा एवं साधना में किसी प्रकार की समस्या न आए’, इसका उनको सदैव ध्यान रहता है ।

– श्री. अशोक दहातोंडे

३. सेवा करना संभव न होने पर खेद प्रतीत होना

     ‘शारीरिक समस्याओं के कारण वह बाहर जाकर सेवा नहीं कर सकतीं’; परंतु उनके मन में इसके प्रति सदैव खेद रहता है ।

४. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति श्रद्धा

     उनमें परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति बहुत श्रद्धा है । जब कभी साधकों की आध्यात्मिक उन्नति के संदर्भ में दीदी से बात होती है, तब उनकी बातों से ‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी हम सभी को आगे लेकर जाने ही वाले हैं और सभी की उन्नति होनेवाली है’, यह दृढ भाव व्यक्त होता है ।

५. आसक्ति अल्प होना

     दीदी के घर में एक पुरानी चौपाई पर सामग्री रखी हुई है । किसी को उनमें से किसी सामग्री की आवश्यकता पडती है, तो सुषमादीदी अपनी आवश्यकता की चिंता न कर तुरंत ही वह सामग्री निकालकर संबंधित साधक के पास भेजने का नियोजन करती हैं ।

६. आश्रम के प्रति भाव होना

     ‘जब हम दीदी के घर सेवा के लिए जाते हैं, तब वह सेवाकेंद्र के साधकों के लिए मिठाई भेजती हैं ।’

– श्रीमती स्वानंदी जाधव

फरीदाबाद के साधकों द्वारा बताए गए सूत्र

१. अब वह पहले की अपेक्षा बहुत शांत और स्थिर हैं’, ऐसा प्रतीत होता है ।

– कु. पूनम किंगर एवं सीमा शर्मा

२. साधकों के प्रति अपनापन होना

     ‘उनमें इतना अपनापन है कि बाहर से आये साधकों के लिए हम उनके यहां रुकने अथवा उनके भोजन के प्रबंध हेतु उनसे सहजता से पूछ सकते हैं । वह प्रत्येक बार बहुत प्रसन्नता के साथ सभी बातें स्वीकार करती हैं ।’

३. साधक एवं गुरुसेवा हेतु स्वयं की गाडी का नियोजन करना 

अ. एक बार मुझे देहली सेवाकेंद्र से संग्रह लाना था और उसके लिए गाडी की आवश्यकता थी । तब उनकी पुत्री रिद्धि ने सहायता की । उस समय हमारे साथ सुषमादीदी भी देहली आई थीं । उस समय दीदी और रिद्धि आपस में यह चर्चा कर रही थीं, ‘साधकों को देहली सेवाकेंद्र आने हेतु गाडी की आवश्यकता पडती है । प्रत्येक महीने में हम एक बार गाडी लेकर देहली सेवाकेंद्र में जाने का नियोजन किया तो सभी के लिए सुविधाजनक रहेगा ।’ उनका यह संवाद सुनकर यह ध्यान में आया कि उनमें साधक और गुरुसेवा के प्रति कितना विचार है ।

आ. ‘गीता जयंती’ के उपलक्ष्य में शोभायात्रा निकालने हेतु हमें गाडी की आवश्यकता थी । पहले दिन तक आवश्यक गाडी का प्रबंध नहीं हो सका था । दीदी को दूसरे दिन कार्यालय जाने हेतु गाडी की आवश्यकता थी; परंतु जब उन्हें हमारी आवश्यकता ध्यान में आई, तब उन्होंने स्वयं ही चल-दूरभाष कर बताया, ‘‘मैं आपके लिए गाडी और चालक दोनों भेजती हूं ।’’

४. सेवा हेतु घर उपलब्ध करा देना

अ. ‘दीदी ने वस्तुएं रखने हेतु अपने घर का एक संपूर्ण कक्ष ही उपलब्ध करा दिया है । सामग्री रखने हेतु और स्थान की आवश्यकता है, जब यह उनके ध्यान में आया, तब उन्होंने सेवा के लिए एक और कक्ष उपलब्ध करा दिया ।’

– कु. पूनम किंगर

आ. ‘बहुत बार ऐसा होता है कि हमें सेवा हेतु उनके घर पर रुकना पडता है और तभी उन्हें कहीं बाहर जाना होता है । तब भी वह साधक और सेवा को ही अधिक महत्त्व देकर हमें घर की चाबी देकर अपने काम के लिए बाहर निकलती हैं ।’ – ममता अरोरा एवं श्रीमती तृप्ती जोशी

इ. ‘प्रसारसामग्री रखा हुआ कक्ष भी वे स्वयं स्वच्छ रखती हैं । कभी सामग्री को निचले कक्ष में रखने हेतु साधकों को विलंब होता है, तब वे स्वयं ही कहती हैं कि मैं कामवाली की सहायता लेकर सामग्री रख दूंगी । संगणकीय प्रणाली से जो कुछ कार्यक्रम होते हैं, उनका नियोजन उनके घर में ही होता है । उस समय वह स्वयं आवश्यक तैयारी कर साधकों की सहायता करती हैं ।’

– श्रीमती तृप्ती जोशी

५. ‘वह चल-दूरभाष पर बातें करते हुए समय व्यर्थ न गंवाकर केवल विषय से संबंधित चुनिंदा बातें ही करती है ।’

– श्रीमती सीमा शर्मा

६. खुलापन

     ‘वह खुलेपन से तथा स्वप्रतिमा की चिंता न कर बातें करती हैं । उनकी बातें सीधी और सहजतापूर्ण होती हैं ।’

७. साधना के प्रति गंभीरता होना

     अब उनमें साधना के प्रति गंभीरता बढ रही है । व्यष्टि ब्यौरे के समूह में उनका नाम नहीं था, तो उन्होंने कहा कि मुझे भी ब्यौरा देना है । वे भाववृद्धि सत्संग का भी तुरंत ब्यौरा देती हैं ।

८. उनके घर में बहुत शांति एवं शीतलता प्रतीत होती है ।

– श्रीमती तृप्ती जोशी