बांग्लादेशी धर्मांधों का आवाहन !

     बांग्‍लादेश की स्‍वतंत्रता के स्‍वर्ण महोत्‍सव वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में बांग्‍लादेश ने प्रमुख अतिथि के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया और उसे स्वीकार करते हुए वे कार्यक्रम में उपस्थित भी रहे । भारत के कारण ही बांग्लाद़ेश की स्थापना होने से इस कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री को बुलाना अपेक्षित था । इसके साथ ही बांग्लाद़ेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ वर्तमान में भारत के संबंध अच्छे हैं । शेख हसीना के पिता और बांग्लाद़ेश के प्रथम प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान और उनके संबंधियों को वर्ष १९७१ के युद्ध के समय पाक के सैनिकों की कैद से भारतीय सेना ने ही मुक्त कराया था; उसी समय से ये संबंध दृढ हैं । तदुपरांत वहां की सेना ने उनके भवन पर टैंक से तोप दागकर मुजीबुर रहमान और उनके संबंधियों की हत्या कर दी । उस समय शेख हसीना और उनकी बहन शेख रेहाना जर्मनी गई थीं, इसलिए बच गईं । इंदिरा गांधी के साथ मुजीबुर रहमान के अच्छे संबंध थे; परंतु सेना की सत्ता पलटने पर वहां के धर्मांधों की सरकार का वर्चस्व निर्माण हो गया । शेख हसीना ने अपना पक्ष टिकाए रखकर सत्ता पाई और पुन: भारत से अच्छे संबंध निर्माण किए । तदुपरांत उनके पिता की सत्ता पलटनेवाले धर्मांधों और सेना के अधिकारियों को पकडकर उन पर अभियोग चलाया गया और अनेक लोगों को फांसी भी सुनाई गई । इसके पश्चात भी बांग्लादेश में धर्मांधों का बडा प्रभाव है । शेख हसीना के साथ भले ही अच्छे संबंध हों, तब भी भारत सरकार वहां के हिन्दुआें की रक्षा करने के लिए कुछ नहीं कर सकी । प्रधानमंत्रीजी ने बांग्लादेश के दौरे पर जाने पर वहां के ५१ शक्तिपीठों में से एक जेशोरेश्वरी कालीमाता के मंदिर तथा अन्य मंदिरों में भी जाकर पूजा की । वहां के धर्मांधों को यह अच्छा नहीं लगा । मुसलमान बहुल देश में आकर वहां के मंदिरों में जाकर पूजा करने का साहस प्रधानमंत्री ने दिखाया, तो इसका प्रतिशोध लेना ही चाहिए, इसी भावना से मोदी के भारत लौटते ही धर्मांधों ने तुरंत हिन्दुआें पर और उनके मंदिरों पर आक्रमण किया । यह आक्रमण केवल मोदी को ठेस पहुंचाने के लिए किए गए, ऐसा ही कहना पडेगा । ‘हम तुम्हारे धर्म पर आघात कर सकते हैं, यहां हमारी सत्ता है’, इस कृति से यही दिखाने का प्रयत्न किया गया है । मोदी के बांग्लादेश दौरे का भी वहां के जिहादी संगठन विरोध कर रहे थे । उनके इसके विरुद्ध की गई हिंसा में १० लोगों की मृत्यु हुई है। इस प्रकरण पर शेख हसीना कैसे नियंत्रण पाकर हिन्दुआें की रक्षा करेंगी, यही देखना है । अब तक उन्होंने हिन्दुआें की विशेष रक्षा की हो, ऐसा कहीं दिखाई नहीं देता ।

भारत में भी हिन्‍दू असुरक्षित !

     प्रधानमंत्री मोदी वर्ष २००२ में जब गुजरात के मुख्‍यमंत्री थे तब गोधरा में धर्मांधों ने साबरमती एक्‍सप्रेस को आग लगा दी । उसमें ५९ कारसेवकों की मृत्यु हुई । तदुपरांत गुजरात में दंगे हुए, जिसमें धर्मांधों को पाठ पढाया गया । इसके फलस्वरूप अगले १९ वर्षों में धर्मांधों का पुन: हिन्दुआें पर आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ । भारत में इससे पूर्व ऐसा कभी नहीं हुआ था, जो गुजरात में हुआ । इससे पूर्व और पश्चात गुजरात को छोड अन्य राज्यों में हिन्‍द़ुआें पर निरंतर आक्रमण हो रहे हैं । केंद्र में तथा अनेक राज्यों में भाजपा की सरकार होते हुए भी स्थायी रूप से ऐसी घटनाआें को रोका नहीं जा सका है । इसीलिए संपूर्ण जगत के विशेषतः इस्लामी देशों के हिन्‍द़ुआें पर आक्रमण रोकना कठिन है । उसमें ‘बांग्लादेश के धर्मांधों ने मंदिरों पर आक्रमण कर अब एक प्रकार से मोदी को ही चुनौती दी है’, ऐसा कहना गलत नहीं होगा । मोदी द्वारा अरब देशों से अच्छे संबंध विकसित करने से कुछ सीमा तक वहां नौकरी हेतु गए हिन्दुआें के साथ अच्छा बर्ताव किया जा रहा है । अबूधाबी में हिन्दुआें का भव्य मंदिर निर्माण हो रहा है । ऐसा कभी नहीं हुआ था । ‘मोदी में क्षमता होने से वे आनेवाले समय में इस चुनौती का सामना करके भी दिखाएंगे’, ऐसा किसी को लगे तो गलत नहीं होगा । बांग्लादेश के धर्मांधों ने अथवा उनकी सेना ने विरोध कर शेख हसीना को मार्ग से हटाया, तो वहां के हिन्दुआें की रक्षा की एक आशा भी नष्ट हो सकती है । इसे देखते हुए भारत को वहां के हिन्दुआें की रक्षा के लिए अति शीघ्र कदम उठाने चाहिए ।

भारत को आक्रामक होना ही होगा !

     भारत सहित पूरे विश्‍व के हिन्‍दुआें और उनके मंदिरों की रक्षा के लिए भारत को आक्रामक होना ही होगा । विश्व में कहीं भी यहूदियों पर आक्रमण हुए, अत्याचार हुए, तो इजरायल तुरंत उसका प्रतिशोध लेता है । वैसी ही नीति भारत की भी होनी चाहिए । उसके लिए सरकारी स्तर पर वैसी नीति निश्चित करनी होगी । वीर सावरकर ने धर्मांधों के विषय में कहा है, ‘जिस स्थान पर हिन्दू अल्‍पसंख्यक होते हैं, वहां उन्हें धर्‍मांधों से मार खानी ही पडती है । ऐसे में उनकी रक्षा करने के लिए जहां हिन्दू बहुसंख्यक हैं और धर्मांध अल्पसंख्यक, वहां हिन्दुआें ने अपनी धाक निर्माण की तो अल्पसंख्यक हिन्दू जहां हैं, वहां उनका बाल भी बांका नहीं होगा ।’ स्वतंत्रता के ७४ वर्षों में भारत द्वारा सावरकर नीति का अनुसरण न करने के कारण हिन्दुआें को सर्‍वत्र मार खानी पड रही है । इस स्थिति को देखते हुए भारत को सावरकर नीति का अनुसरण करने का यही योग्य समय है !