विविध विकारों पर उपचार करनेवाले संगीत के रागों का, उस विकार से पीडित और आध्यात्मिक पीडा से ग्रस्त व्यक्तियों पर होनेवाले परिणाम का अध्ययन करने हेतु प्रयोग

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का मूलभूत आध्यात्मिक शोध

नृत्‍य और संगीत के विषय में अद्वितीय संशोधन करनेवाला महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय

     इस विश्‍व में कुछ घटक आंखों से देख सकते हैं, तो कुछ देख नहीं सकते । ‘जो घटक आंखों से दिखाई नहीं देते, उनका अस्‍तित्‍व ही नहीं’, ऐसा नहीं है, उदा. वायु आंखों से दिखाई नहीं देती, अर्थात ‘वह नहीं है’, ऐसा नहीं है । साधना के कारण जीव की सात्त्विकता में वृद्धि होती है । जैसे-जैसे साधना में वृद्धि होती है, वैसे-वैसे स्‍थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन और बुद्धि के परे ‘सूक्ष्म’ का बोध होने लगता है तथा किसी घटक के संदर्भ में अच्‍छे और कष्‍टदायक स्‍पंदनों का बोध होने लगता है । वर्तमान में समाज सात्त्विकता से दूर होता जा रहा है और रज-तमयुक्‍त प्रथाएं समाज में दृढ होने लगी हैं । नृत्‍य और संगीत का क्षेत्र भी अपवाद नहीं है  यह समाज को बताने के लिए महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय द्वारा संगीत और नृत्‍य के संशोधन युक्‍त प्रयोग किए गए । जिनका हमें सूक्ष्म से बोध हुआ, वह बात समाज को बताने के लिए और ‘उचित क्‍या होना चाहिए ?’ यह बात समझाने के लिए, वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा भी इसे सिद्ध किया गया है । इस लेख में केवल ‘अनुचित कृतियों का क्‍या परिणाम होता  है ?’, यह बात स्‍पष्‍ट करनेवाले, अर्थात सूक्ष्म से संबंधित कुछ समाचार (सूक्ष्म-वार्ता) दे रहे हैं ।

     ‘१.१०.२०१७ को संगीत के विविध रागों का व्‍यक्‍ति पर होनेवाले परिणामों का अध्‍ययन करने के लिए सनातन के रामनाथी, गोवा स्‍थित आश्रम में प्रयोग किए गए । इन प्रयोगो में विविध विकारों पर उपचार करनेवाले राग संबंधित विकार से पीडित साधक एवं तीव्र आध्‍यात्मिक कष्‍ट से पीडित साधकों को सुनाए गए । उस समय ध्‍यान में आए विशेषतापूर्ण सूत्र आगे दिए हैं ।

१. राग – मधुवंती : सोरायसिस

१ अ. ‘सोरायसिस’ त्‍वचा विकार से पीडित २ साधकों को हुई अनुभूतियां

१. दोनों साधकों को शरीर में हलकापन और शीतलता अनुभव हुई । ‘स्‍वयं के सप्‍तचक्रों की जागृति हो रही है’, ऐसा उन्‍हें लगा; परंतु विशुद्धचक्र पर कष्‍ट हुआ ।

१ आ. अनिष्‍ट शक्‍ति के तीव्र कष्‍ट से पीडित १० साधक

१ आ १. राग के स्‍पंदन अनुभव होना

१ आ १ अ. प्रयोग में सहभागी पांच साधकों को मुंह में मीठा स्‍वाद लगना : ‘शब्‍द, स्‍पर्श, रूप, रस, गंध और उनसे संबंधित शक्‍ति का सहअस्‍तित्‍व होता है’, अध्‍यात्‍म के इस सिद्धांत अनुसार मधुवंती राग के नाम में ही मधुरता अंतर्भूत है, इसलिए ‘सुनाया गया राग कौनसा है’, यह न जानते हुए भी प्रयोग में सम्‍मिलित १० में से ५ साधकों के मुंह में मीठा स्‍वाद आया ।

१ आ १ आ. दो साधिकाआें को संपूर्ण शरीर अथवा कुंडलिनीचक्रों पर अच्‍छी संवेदना होना : एक साधिका को संपूर्ण शरीर पर और दूसरी साधिका को स्‍वाधिष्‍ठानचक्र से लेकर विशुद्धचक्र तक अच्‍छी संवेदना हुई ।

१ आ १ इ. एक साधक को ‘यह राग आपतत्त्व से संबंधित है’, ऐसा बोध हुआ ।

१ आ २. कष्‍टदायक अनुभूति

१ आ २ अ. एक साधिका को अनाहतचक्र से विशुद्धचक्र तक दबाव अनुभव हुआ ।

२. राग – वृंदावनी सारंग : पित्त के विकार

२ अ. पित्त के विकार से पीडित २ साधकों को हुई अनुभूतियां

२ अ १. एक साधक को अनाहतचक्र पर संवेदना होना तथा उससे अपनेआप हाथ की मुद्रा होना : उनमें से एक साधक को अनाहतचक्र पर संवेदनाएं हुईं । उसके द्वारा हाथ के बीच की उंगली और अंगूठा जोडकर सिद्ध मुद्रा सहज हुई और कुछ समय पश्‍चात उसकी अनामिका हथेली से अपनेआप जुड गई ।

२ अ २. दूसरी साधिका को कुछ भी बोध नहीं हुआ ।

२ आ. अनिष्‍ट शक्‍ति के तीव्र कष्‍ट से पीडित ११ साधक

२ आ १. राग के स्‍पंदन अनुभव होना

२ आ १ अ. अनाहतचक्र और मणिपुरचक्र पर अथवा केवल मणिपुरचक्र पर संवेदना होना : दो साधिकाआें को प्रथम अनाहतचक्र पर संवेदना हुई और पश्‍चात मणिपुरचक्र पर संवेदना हुई । अन्‍य ३ साधकों को केवल मणिपुरचक्र पर संवेदना हुई ।

२ आ १ आ. शरीरमें शीतलता अनुभव होना : एक साधिका को शरीर के बाएं भाग में शीतलता अनुभव हुई, किन्‍तु अन्‍य ४ साधकों को संपूर्ण शरीर में शीतलता अनुभव हुई ।

२ आ २. ‘यह राग किस विकार पर उपचार करता है’, यह ज्ञात न होते हुए भी आंतरिक बोध होना अथवा वैसे उपचार होना

अ. एक साधिका का सवेरे से बढा पित्त इस राग को सुनते ही शांत हुआ ।

आ. ‘यह राग पित्त के विकारों पर उपचार करता है’, यह बात ज्ञात न होते हुए भी २ साधिकाआें ने इसके बारे में बताया ।

२ आ ३. राग सुनने से चैतन्‍य ग्रहण होने पर अनिष्‍ट शक्‍ति द्वारा कष्‍ट पहुंचाना : एक साधिका का जी मिचलाने लगा और उसकी दोनों आंखों में से आंसू निकल आए ।

३. राग – मियां मल्‍हार : दमा (अस्‍थमा)

३ अ. अस्‍थमा से पीडित २ साधकों को हुई अनुभूतियां

३ अ १. ‘मियां मल्‍हार’ राग सुनने से एक साधिका को श्‍वास लेने में होनेवाली घुटन अल्‍प होकर श्‍वास मुक्‍त होना, राग सुनते समय उसका नामजप एक लय में होना और बाद में ध्‍यान लगना : अस्‍थमा से पीडित साधिका को यह राग सुनने से पहले श्‍वास लेने में कठिनाई होती थी । राग सुनते समय उसका नामजप एक लय में हो रहा था । बाद में ध्‍यान लगने से ‘वह राग कब समाप्‍त हुआ’, यह उसे पता ही नहीं चला । राग सुनने के बाद उसका श्‍वास खुल गया ।

३ अ २. इस राग का एक अन्‍य साधक पर कुछ भी परिणाम नहीं हुआ ।

३ आ. अनिष्‍ट शक्‍ति के तीव्र कष्‍ट से पीडित ११ साधक

३ आ १. राग के स्‍पंदन अनुभव होना अथवा राग को पहचान पाना

अ. ग्‍यारह में से चार साधकों को अनाहतचक्र पर अच्‍छी संवेदना, तो एक साधिका को वेदना हुई । एक साधिका को विशुद्धचक्र पर अच्‍छी संवेदना हुई । पांच साधकों को किसी भी चक्र पर संवेदना नहीं हुई ।

आ. एक साधिका के होंठ बंद थे, फिर भी उसे अपने होंठ गीलेे लग रहे थे ।

इ. सर्व साधकों को राग सुनते समय बहुत शीतलता और आनंद का अनुभव हुआ ।

ई. एक साधक को इस राग के बारे में कुछ भी ज्ञात न होते हुए तथा उसे बिना कभी सुने वह यह पहचान सका कि यह ‘मल्‍हार राग’ है ।

३ आ २. राग के संदर्भ में हुई अनुभूतियां

३ आ २ अ. कष्‍टदायक अनुभूति

१. एक साधिका को अनाहतचक्र पर वेदना हुई ।

३ आ २ आ. अच्‍छी अनुभूतियां

१. एक साधिका को ‘प्रयोग में सहभागी अस्‍थमाग्रस्‍त तथा संगीत का अध्‍ययन की हुई एक साधिका ही गा रही है’, ऐसा दिखाई दिया ।

२. एक साधिका को ‘वह आकाश में बहुत ऊपर गई है’, ऐसे दिखाई दिया । उस समय उसका नामजप एक लय में हो रहा था ।

३ आ ३. राग सुनने से उपचार होना : यह राग सुनते समय ग्‍यारह में से तीन साधकों का श्‍वास खुल गया । उनका दीर्घ श्‍वसन चल रहा था एवं बीच-बीच में श्‍वास की ओर ध्‍यान जाता था ।

४. राग – मारू बिहाग  : पीठदर्द

४ अ. पीठदर्द के कष्‍ट से पीडित २ साधिकाआें को हुई अनुभूतियां

४ अ १. राग के आरंभ में एक साधिका को अनाहतचक्र पर हो रही वेदना नष्‍ट होना और दोनों हाथों से सकारात्‍मक शक्‍ति ग्रहण होती अनुभव होना : राग सुनते समय आरंभ में एक साधिका के अनाहतचक्र पर वेदना हो रही थी ।  बाद में उसके मन की एकाग्रता बढकर उसे अनाहतचक्र पर गोलाकार संवेदना हुई और उसे हो रही वेदना नष्‍ट हुई । प्रयोग के समय उसे उसके दोनों हाथों में संवेदना हुई और ‘हाथों से सकारात्‍मक शक्‍ति ग्रहण हो रही है’, ऐसा भी लगा ।

४ अ २. राग सुनते समय एक साधिका को आरंभ में पीठदर्द होना और कुछ समय राग सुनने पर वह थमना, साथ ही मन के विचार न्‍यून होकर मन शांत होना तथा ध्‍यान लगना : राग सुनते समय दूसरी साधिका को आरंभ में तीव्र पीठदर्द हुआ; परंतु कुछ समय राग सुनने पर उसे हो रहा पीठदर्द थम गया । साथ ही उसके मन के विचार न्‍यून होकर मन शांत होने से उसका ध्‍यान लगा ।

४ आ. अनिष्‍ट शक्‍ति के तीव्र कष्‍ट से पीडित ११ साधक

४ अ १. राग के स्‍पंदन अनुभव होना

अ. ग्‍यारह में से तीन साधिकाआें को अनाहतचक्र पर तथा एक साधिका को मणिपुरचक्र पर अच्‍छी संवेदनाएं हुईं ।

आ. राग सुनते समय एक साधिका के मुंह में अधिक समय तक लार आ रही थी ।

इ. दो साधिकाआें को पूरी रीढ की हड्डी में अच्‍छी संवेदनाएं हुईं ।

४ अ २. राग सुनने के कारण नामजप आदि उपाय होने से अनिष्‍ट शक्‍ति द्वारा कष्‍ट देना : दो साधिकाआें की पीठ दुखने लगी ।

५. राग – दरबारी कानडा : अर्धशीशी

५ अ. अर्धशीशी के कष्‍ट से पीडित २ साधिकाआें को हुई अनुभूतियां

५ अ १. कष्‍ट बढना : अर्धशीशी के कष्‍ट से पीडित एक साधिका के सिर में प्रयोग आरंभ होने से पूर्व अल्‍प मात्रा में हो रही पीडा राग सुनने पर अधिक मात्रा में होने लगी और राग समाप्‍त होने तक नहीं थमी । प्रयोग समाप्‍त होने के १ घंटे उपरांत उसका सिरदर्द बंद हुआ । (रोग पर राग का उपचारात्‍मक परिणाम होने से रोग बढकर बाद में उसकी मात्र न्‍यून हो गई । – संकलनकर्ता)

५ अ २. अच्‍छा लगना : दूसरी साधिका को राग सुनते समय आज्ञाचक्र पर संवेदना अनुभव होकर अच्‍छा लगा ।

५ आ. अनिष्‍ट शक्‍ति के तीव्र कष्‍ट से पीडित ११ साधक

५ आ १. राग के स्‍पंदन अनुभव होना

अ. ग्‍यारह में से पांच साधकों को पहले आज्ञाचक्र पर और बाद में पूर्ण मस्‍तक में अच्‍छी संवेदनाएं तथा एक साधक को अनाहतचक्र पर संवेदना हुई ।

६. राग – बागेश्री : उच्‍च रक्‍तचाप

६ अ. उच्‍च रक्‍तचाप के कष्‍ट से पीडित २ साधकों को हुई अनुभूति

६ अ १. दोनों साधकों पर उपचार होकर उनका रक्‍तचाप सामान्‍य होना : यह राग सुनने के पूर्व प्रयोग में सहभागी दोनोें साधकों का रक्‍तचाप उच्‍च था । राग सुनने के बाद उनका रक्‍तचाप सामान्‍य हो गया । इनमें से एक साधक का रक्‍तचाप अनेक दिनों से अल्‍प नहीं हो रहा था । यह राग १ घंटा सुनने पर उसका रक्‍तचाप जांचने पर वह न्‍यून हुआ है, यह समझ में आया ।

– कु. तेजल पात्रीकर, महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा.

(३.१०.२०१७)

     साधकों को प्रत्‍येक राग के संदर्भ में जो अच्‍छी अनुभूतियां हुई है, वे अधिकांश उन विकारों से संबंधित कुंडलिनीचक्रों के संदर्भ की अनुभूतियां है । इससे संबंधित कुंडलिनीचक्र पर उपाय होनेसे उस विकार पर संबंधित रागका परिणाम होता है, यह ध्‍यान में आया । इसलिए कुछ रागों के संदर्भ में वास्‍तव में विकार पर उपचार हुए हो ऐसा नहीं लगा हो, तो भी उन रागों का कुंडलिनीचक्रों पर उपाय होना, अर्थात उन विकारों पर परोक्ष उपाय होने समान है ।