दत्त जयंती

     मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मृग नक्षत्र पर सायंकाल दत्त का जन्‍म हुआ, इसलिए इस दिन दत्त का जन्‍मोत्‍सव सर्व दत्तक्षेत्रों में मनाया जाता है ।

इतिहास

     पूर्व काल में भूतल पर स्‍थूल और सूक्ष्म रूपों में आसुरी शक्‍तियां बहुत बढ गई थीं । उन्‍हें दैत्‍य कहा जाता था । इन आसुरी शक्‍तियों को नष्‍ट करने के देवगणों के प्रयास असफल रहे । तब ब्रह्मदेवके आदेशानुसार विभिन्‍न स्‍थानों पर विविध रूपों में भगवान दत्तात्रेय को अवतार लेना पडा । तदुपरांत दैत्‍य नष्‍ट हुए । वह दिवस दत्तजयंती के रूप में मनाया जाता है ।

महत्त्व

     दत्तजयंती पर दत्ततत्त्व पृथ्‍वी पर सदा की तुलना में १००० गुना कार्यरत रहता है । इस दिन भगवान दत्तात्रेय की भक्‍तिभाव से नामजपादि उपासना करने पर दत्त तत्त्व का अधिकाधिक लाभ मिलने में सहायता होती है ।

जन्‍मोत्‍सव मनाना

     दत्तजयंती उत्‍सव से सात दिन पूर्व गुरुचरित्र का पारायण (गुरुचरित्र सप्‍ताह) करते हैं । भजन, कीर्तन, पूजन इत्‍यादि भक्‍ति के प्रकार प्रचलित हैं । महाराष्‍ट्र में औदुंबर, नरसोबा की वाडी, गाणगापुर आदि दत्त क्षेत्रों में इसका विशेष महत्त्व है  तमिलनाडु में भी दत्तजयंती मनाने की प्रथा है ।

दत्तात्रेय से करने योग्‍य कुछ प्रार्थनाएं

१. हे भगवान दत्तात्रेय, जिस प्रकार आपने २४ गुण-गुरु कर उनसे २४ गुण सीखे, उसी प्रकार सभी से अच्‍छे गुण ग्रहण करने की प्रवृत्ति मुझ में निर्मित हो, यह आपके चरणों में प्रार्थना है ।

२. हे भगवान दत्तात्रेय, भुवर्लोक में अटके मेरे अतृप्‍त पितरों को आगे जाने के लिए गति दीजिए । अतृप्‍त पितरों की पीडा से मेरी रक्षा कीजिए ।

     (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘भगवान दत्तात्रेय’)

दत्तात्रेय की उपासना कैसे करें ?

     प्रत्‍येक देवता का विशेष उपासनाशास्‍त्र है । इसका अर्थ यह है कि प्रत्‍येक देवता की उपासना के अंतर्गत की जानेवाली प्रत्‍येक कृति का आधारभूत शास्‍त्र है  इससे उस देवता के तत्त्व का अधिकाधिक लाभ होने में सहायता होती है । दत्त की उपासना के अंतर्गत सदैव किए जानेवाले कुछ कृत्‍य कैसे करने चाहिए, इससे संबंधित जानकारी आगे की सारणी में दी गई है ।

‘श्री गुरुदेव दत्त’ जप क्‍यों करें ?

     आजकल अधिकांश लोग श्राद्ध तथा साधना भी नहीं करते, इसलिए उन्‍हें पितृदोष (पूर्वजों की अतृप्‍ति) के कारण कष्‍ट होता है । परिणामस्‍वरूप विवाह, वैवाहिक संबंध, गर्भधारण, वंशवृद्धि इ. में बाधा होना, मंदबुद्धि या विकलांग संतान होना, शारीरिक रोग, व्‍यसनादि समस्‍याएं हो सकती हैं । इन समस्‍याओं के समाधान हेतु कष्‍ट की तीव्रता के अनुसार ‘श्री गुरुदेव दत्त’ (दत्तात्रेय देवता का) जप प्रतिदिन न्‍यूनतम २ घंटे (२४ माला) एवं अधिकतम ६ घंटे (७२ माला) करें ।

     (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘भगवान दत्तात्रेय’)

अंत्‍ययात्रा में ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप ऊंचे स्‍वर में क्‍यों करें ?

     व्‍यक्‍ति की मृत्‍यु हो जाने पर लिंगदेह को गति प्राप्‍त न हो, तो भूलोक या मृत्‍युलोक में फंसने की आशंका रहती है । पूर्वजों को गति प्रदान करना, दत्ततत्त्व का कार्य है । अत: अन्‍य देवताओं की अपेक्षा दत्तात्रेय देवता के जप से मृत व्‍यक्‍ति की लिंगदेह को अल्‍पावधि में गति मिलती है । अत: अंत्‍ययात्रा में ‘श्री गुरुदेव दत्त’ ऊंचे स्‍वर में जपें । इससे अंत्‍ययात्रा में सहभागी लोगों के सर्व ओर जप का सुरक्षा-कवच बन जाता है । मृतदेह से प्रक्षेपित कष्‍टदायक स्‍पंदनों से उनकी रक्षा भी होती है ।

     (संदर्भ : सनातन का लघुग्रंथ ‘मृत्‍युपरांत के शास्‍त्रोक्‍त क्रियाकर्म’)

     ‘दिगंबरा-दिगंबरा श्रीपाद वल्‍लभ दिगंबरा’ नामजप का भावार्थ ‘श्री’ अर्थात लक्ष्मी एवं वे जिनके चरणों में हैं, वे हैं ‘श्रीपाद’ । ‘श्रीपाद वल्‍लभ’ अर्थात लक्ष्मी, जिनके चरणों में है एवं जो लक्ष्मी के स्‍वामी हैं, वे (श्रीविष्‍णु) । ‘सभी रूपों के एकीकरण से निर्माण होनेवाले दत्त के गुणगान एवं महत्त्व का वर्णन करनेवाला, आवाहनात्‍मक मंत्र ‘दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्‍लभ दिगंबरा’ दो बार ध्‍वनित होनेवाले निर्गुण रूपी दिगंबर से ‘श्रीपाद’ तथा ‘वल्‍लभ’ ये दो रूप प्रकट कर, पुन: एकत्‍व में अर्थात दिगंबररूपी अद्वैत में समा जाता है ।’

‘एक ही गुरु पर श्रद्धा हो’, ऐसा कहा जाता है, तो भी दत्तगुरु द्वारा २४ गुरु करने का कारण

१. अनंत ज्ञान पाने के लिए निरंतर सीखते रहने का महत्त्व होना

     ‘ज्ञान को न आदि है न अंत । इसलिए प्राप्‍त ज्ञान से संतुष्‍ट रहने की अपेक्षा ज्ञानप्राप्‍ति की लगन निरंतर जागृत रखना आवश्‍यक है । ‘ज्ञान अनंत होने सेे ज्ञानार्जन के लिए निरंतर सीखते रहना आवश्‍यक है’, इसकी सीख दत्तगुरु ने २४ गुरु करके दी है ।

२. समष्‍टि और सर्वोत्तम शिष्‍य ने गुरु के रूप की अपेक्षा तत्त्व को
प्रधानता देने से उन्‍हेें गुरुपरिवर्तन से दोष न लगना, उलटे उनपर गुरुकृपा होना

     समष्‍टि शिष्‍य व्‍यष्‍टि शिष्‍य से श्रेष्‍ठ होता है, उसी प्रकार सर्वोत्तम शिष्‍य कनिष्‍ठ शिष्‍य से श्रेष्‍ठ होता है । समष्‍टि और सर्वोत्तम शिष्‍य उनके जीवन की प्रत्‍येक घटना से और उनके जीवन में आनेवाले प्रत्‍येक से कुछ न कुछ सीखने का प्रयास करते हैं ।

     समष्‍टि और सर्वोत्तम शिष्‍य के प्रत्‍येक में एक ही गुरु का रूप देखने से गुरु परिवर्तन का दोष नहीं लगता । उलटे गुरु के रूप की अपेक्षा तत्त्व को प्रधानता देने से समष्‍टि और सर्वोत्तम शिष्‍य को गुरुकृपा प्राप्‍त होती है ।

     दत्तगुरु ने २४ गुरु कर सभी के सामने आदर्श शिष्‍य का उदाहरण रखा है । इसके लिए उनके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता ।’

धारिका के संदर्भ में हुई अनुभूति

     इस धारिका का टंकण रात ‘११.२४’ को पूरा हुआ । इसमें ‘२४’ अंक महत्त्वपूर्ण लगा और उसमें दत्त ने किए २४ गुरुआें से समानता ध्‍यान में आई ।’

– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म से मिला ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२.४.२०१८, रात ११.२४)

‘एक ही गुरु पर श्रद्धा हो’, ऐसा कहा जाता है, तो भी दत्तगुरु द्वारा २४ गुरु करने का कारण

१. अनंत ज्ञान पाने के लिए निरंतर सीखते रहने का महत्त्व होना
‘ज्ञान को न आदि है न अंत । इसलिए प्राप्‍त ज्ञान से संतुष्‍ट रहने की अपेक्षा ज्ञानप्राप्‍ति की लगन निरंतर जागृत रखना आवश्‍यक है । ‘ज्ञान अनंत होने सेे ज्ञानार्जन के लिए निरंतर सीखते रहना आवश्‍यक है’, इसकी सीख दत्तगुरु ने २४ गुरु करके दी है ।
२. समष्‍टि और सर्वोत्तम शिष्‍य ने गुरु के रूप की अपेक्षा तत्त्व को प्रधानता देने से उन्‍हेें  गुरुपरिवर्तन से दोष न लगना, उलटे उनपर गुरुकृपा होना
समष्‍टि शिष्‍य व्‍यष्‍टि शिष्‍य से श्रेष्‍ठ होता है, उसी प्रकार सर्वोत्तम शिष्‍य कनिष्‍ठ शिष्‍य से श्रेष्‍ठ होता है । समष्‍टि और सर्वोत्तम शिष्‍य उनके जीवन की प्रत्‍येक घटना से और उनके जीवन में आनेवाले प्रत्‍येक से कुछ न कुछ सीखने का प्रयास करते हैं ।
समष्‍टि और सर्वोत्तम शिष्‍य के प्रत्‍येक में एक ही गुरु का रूप देखने से गुरु परिवर्तन का दोष नहीं लगता । उलटे गुरु के रूप की अपेक्षा तत्त्व को प्रधानता देने से समष्‍टि और सर्वोत्तम शिष्‍य को गुरुकृपा प्राप्‍त होती है ।
दत्तगुरु ने २४ गुरु कर सभी के सामने आदर्श शिष्‍य का उदाहरण रखा है । इसके लिए उनके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता ।’
धारिका के संदर्भ में हुई अनुभूति
इस धारिका का टंकण रात ‘११.२४’ को पूरा हुआ । इसमें ‘२४’ अंक महत्त्वपूर्ण लगा और उसमें दत्त ने किए २४ गुरुआें से समानता ध्‍यान में आई ।’
– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म से मिला ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२.४.२०१८, रात ११.२४)