अक्षय तृतीया के पर्व पर ‘सत्पात्र दान’ देकर ‘अक्षय दान’ का फल प्राप्त करें !

     हिन्दू धर्म के साढे तीन शुभमुहूर्ताें में से वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया एक है । अक्षय तृतीया को किए गए दान एवं हवन का कभी क्षय नहीं होता । इसीलिए इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहते हैं । इस तिथि पर कोई भी समय शुभमुहूर्त ही होता है ।

  • धार्मिक कृत्यों का अधिक लाभ : इस तिथि पर ब्रह्मा एवं श्रीविष्णु की मिश्र तरंगें पृथ्वी पर आती हैं; जिससे पृथ्वी पर १० प्रतिशत सात्त्विकता बढ जाती है । इस दिन श्रीविष्णु-पूजन, जप, होम-हवन, पवित्र स्नान, दान इत्यादि अनुष्ठानों से आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।
  • देवता एवं पितरों के लिए तिलतर्पण करने से लाभ : इस तिथि पर देवता एवं पितरों के लिए किया गया कर्म अक्षय होने के कारण देवताओं और पितरों को तिलतर्पण (अर्थात जलमिश्रित तिल अर्पित) किया जाता है । हमारे पितर इस तिथि को पृथ्वी के समीप आते हैं । उन्हें अगली गति दिलाने हेतु अपिंडक श्राद्ध करें । यदि यह संभव न हो, तो तिलतर्पण करें । (तिलतर्पण विधि के विषय में पुरोहितों से पूछ सकते हैं ।)
  • मृत्तिकापूजन, मिट्टी की क्यारियां बनाना, बीजारोपण व वृक्षारोपण के लाभ : ये कृत्य अक्षय तृतीया पर करने से दैवी शक्ति बीजों में उत्पन्न होकर फसल अच्छी होती है ।

(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र’)

अक्षय तृतीया पर सत्पात्र को दान करें !

     अक्षय तृतीया पर किया दान ‘सत्पात्र’ ही होना चाहिए । केवल ‘दान’ से व्यक्ति का पुण्यसंचय बढता है, ‘सत्पात्र’ को दान देने से, आध्यात्मिक दृष्टि से भी लाभ होता है ।

  • धन का दान : सत्पात्र को दान अर्थात संत, धर्मकार्य करनेवाले व्यक्ति, संस्थाएं तथा धर्मकार्य संबंधी अभियान आदि को दान करें ।
  • तन का दान : धार्मिक उपक्रमों में सम्मिलित होना, तन का दान है । इसके अंतर्गत देवताओं का अनादर या उत्सवों में अनाचार रोकना तथा धर्मप्रसार आदि करें !
  • मन का दान : देवता को मन अर्पित करना, मन का दान है । कुलदेवता का अधिकाधिक नामजप करें और कुलदेवता से निरंतर प्रार्थना कर मन का दान करें ।