भारतीय वैज्ञानिकों की मृत्यु का रहस्य और उन पर हुए भयानक और चिंताजनक आक्रमण !

न्याय क्षेत्र के समाचारों का विश्‍लेषण

१. डॉ. तपन मिश्रा, वरिष्ठ वैज्ञानिक, इस्रो

१ अ. डॉ. तपन मिश्रा को ३ बार मार डालने का प्रयत्न होना और उनके द्वारा लगाए गए आरोप उनके पद की दृष्टि से चिंताजनक और गंभीर होना : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था के (इस्रो के)वरिष्ठ परामर्शदाता और वैज्ञानिक डॉ. तपन मिश्रा सेवानिवृत्त हो रहे हैं । उन्होंने सामाजिक माध्यमों पर प्रसारित की गई एक पोस्ट में कहा है कि अभी तक मुझे ३ बार मार डालने का प्रयत्न हुआ था । एक प्रतिष्ठित संस्था के वैज्ञानिक के प्राण लेने का प्रयत्न क्यों हुआ होगा ? डॉ. मिश्रा के अनुसार इसके पीछे क्या अंतरराष्ट्रीय शक्तियां हैं ? देश के अंतर्गत ही हितशत्रु उत्तरदायी हैं कि आपसी शत्रुत्व कारणीभूत है ?, ऐसे अनेक प्रश्‍न उत्पन्न होते हैं । इतने बडे वैज्ञानिक को ३ बार जीवित मारने का प्रयत्न हुआ है, यह वैज्ञानिक ने स्वयं कहना गंभीर है । वैज्ञानिक मिश्रा हों अथवा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गोगोई हों, ये लोग सेवानिवृत्ति के कुछ दिन शेष रहने अथवा सेवानिवृत्त होने के पश्‍चात इस प्रकार के आरोप क्यों लगाते हैं ?, यह भी एक पहेली ही है ।

१ आ. भोजन में विष मिलाकर डॉ. मिश्रा को मार डालने का प्रयत्न होना : डॉ. मिश्रा ने कहा कि, मई २०१७ में मेरे भोजन में तीव्र विष मिलाकर पहले मुझे मार डालने का प्रयत्न हुआ था । उस समय उन्होंने अल्पाहार लिया था अथवा ईश्‍वर की कृपा से उनके प्राण बचे । तब भी कुछ मात्रा में विषैला द्रव्य पेट में जाने के कारण २ वर्षों तक उनके पेट में रक्तस्राव हो रहा था ।

१ इ. बमविस्फोट में गुजरात स्थित इस्रो की प्रयोगशाला नष्ट होना । : ३ मई २०१८ को कर्णावती (अहमदाबाद) स्थित इस्रो के स्पेस एप्लिकेशन सेंटर में (सेक में)बमविस्फोट हुआ था । इस विस्फोट में १०० करोड रुपयों की हानि होकर संपूर्ण प्रयोगशाला ही नष्ट हो गई थी ।

१ ई.डॉ.मिश्रा को हाइड्रोजन साइनाइड से मार डालेने का प्रयत्न असफल होना और उनके घर में विषैले सर्प मिलना : १२ जुलाई २०१९ को अर्थात चंद्रयान-२ की लांचिंग के दो दिन पूर्व डॉ.मिश्रा को हाइड्रोजन साइनाइड से मार डालने का प्रयत्न हुआ । उस समय सुरक्षा अधिकारियों की सतर्कता के कारण उनके प्राण बचे । वैज्ञानिकों को अति महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के समान सुरक्षा मिलते हुए भी सितंबर २०२० में उन पर पुनः विषबाधा करने का प्रयत्न हुआ था । उसके पश्‍चात भी उनके घर में अनेक बार विषैले सर्प मिले । उनके घर के पास ही एल आकार की सुरंग मिली । इस सुरंग से निश्‍चित रूप से उन पर आक्रमण करने का उद्देश्य होना चाहिए ।

१ उ.डॉ.मिश्रा की शिकायत की वरिष्ठों ने उपेक्षा करना : डॉ. मिश्रा ने वरिष्ठों पर अत्यंत गंभीर आरोप लगाए हैं । उन्होंने घटित सर्व घटनाएं इस्रो के भूतपूर्व अध्यक्ष किरणकुमार को बताई थीं; परंतु डॉ.कस्तुरी रंगन् और माधवन् नायर ने उनकी बात नहीं मानी । इस्रो के वैज्ञानिकों ने अल्प पैसो में टिकाऊ सिस्टम विकसित की है, यह शत्रुआें को अच्छा नहीं लगा होगा, ऐसा डॉ. मिश्रा का कहना है । इस समय उन्होंने केंद्र सरकार को प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई की रहस्यमय मृत्यु का स्मरण करवाया है ।

२. डॉ. नम्बी नारायणन्, प्रसिद्ध वैज्ञानिक

२ अ. डॉ. नम्बी नारायणन् को झूठे आरोपों में फंसाकर उनका शैक्षणिक कार्यकाल कृत्रिम रूप से समाप्त किया जाना : इस्रो के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ.नम्बी नारायणन् को जो यातनाएं भुगतनी पडी और उनकी जो मानहानि हुई है, वह देश के लिए अपमानजनक है । रशीदा मरियम नामक मालदीव के विदेशी नागरिक को केरल में बंदी बनाया गया । पूछताछ में उसने डी. शशीकुमारन् सहित डॉ. नम्बी नारायणन् का नाम भी लिया था । उसके उपरांत दोनों वैज्ञानिकों को बंदी बनाया गया तथा उन्हें ५० दिन कारागृह में रहना पडा था । उस अवधि में विभिन्न अन्वेषण तंत्रों द्वारा उनकी पूछताछ की गई तथा उन्हें प्रताडित किया गया ।

सफल वैज्ञानिकों को यह सब भोगना पडता है,इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते । जासूसी का आरोप तथा महिला द्वारा वैज्ञानिकों का उल्लेख होना,यह विषय अन्वेषण तंत्र सहजता से नहीं छोड सकता । इस प्रकरण में केरल उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय तक बहुत दौडधूप हुई । अंत में डॉ. नम्बी नारायणन् के विरुद्ध लगाए गए जासूसी के आरोप और फौजदारी अभियोग निरस्त हो गया । इसमें एक से डेढ दशक का समय व्यतीत हो गया । इस अवधि में डॉ. नारायणन् के परिवार को प्रचंड कष्ट हुआ । उन्हें अपमान का सामना करना पडा । इस प्रकार एक महान वैज्ञानिक का शैक्षणिक कार्यकाल कृत्रिम रूप से समाप्त किया गया ।

२ आ. मानहानि होने के उपरांत डॉ.नारायणन् के संदर्भ में मानवाधिकार उल्लंघन बोर्ड द्वारा ली गई भूमिका : डॉ. नारायणन् की मानहानि होने के प्रकरण में मानवाधिकार उल्लंघन बोर्ड ने सरकार को उन्हें १० लाख रुपए देने का आदेश दिया तथा सर्वोच्च न्यायालय ने डॉ. नारायणन की मानहानि के संबंध में ५० लाख रुपयों की राशि क्षतिपूर्ति के रूप में केरल सरकार को देने के लिए कहा तथा उन्हें केरल सरकार के विरोध में स्वतंत्र रूप से क्षतिपूर्ति मांगने का अधिकार भी दिया ।

२ इ. केरल सरकार की वैज्ञानिकों के प्रति द्वेषपूर्ण भूमिका ! : डॉ.नारायणन् की प्रताडना के लिए उत्तरदायी अन्वेषण अधिकारियों के विरुद्ध फौजदारी अभियोग प्रविष्ट करने का विषय सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया है । तब केरल सरकार ने उन अधिकारियों को बचाया । सर्वोच्च न्यायालय ने यह विषय गंभीरता से लिया है । सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति डी. के. जैन की अध्यक्षता में एक समिति स्थापित की गई। यह समिति सर्व बातों का विचार कर अन्वेषण तंत्र के अधिकारियों के विरुद्ध फौजदार अभियोग प्रविष्ट करने हैं अथवा नहीं, यह तय करनेवाली है ।

३. महान वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई की रहस्यमय मृत्यु

३ अ.पद्मभूषण और पद्मविभूषण प्राप्त वैज्ञानिक डॉ.साराभाई की अप्राकृतिक मृत्यु होना क्लेशदायक ! : डॉ. तपन मिश्रा और डॉ. नम्बी नारायणन्, दोनों ने ही महान वैज्ञानिक डॉ.विक्रम साराभाई की रहस्यमय मृत्यु का हवाला दिया है । विक्रम साराभाई इस्रो के वरिष्ठ वैज्ञानिक थे । खगोलशास्त्री अथवा अवकाश अनुसंधान वैज्ञानिक के रूप में उनका परिचय था । ३१ दिसंबर १९७१ को पद्मभूषण और पद्मविभूषण प्राप्त वैज्ञानिक डॉ. साराभाई की ५२ वर्ष की आयु में केरल के कोवलाम् नामक समुद्र किनारे पर स्थित एक रिसॉर्ट में अप्राकृतिक मृत्यु हो गई। यह घटना अत्यंत क्लेशदायक थी। डॉ. नम्बी नारायणन् ने उनके साथ कनिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में कार्य किया था । वे उनके जीवनचरित्र में डॉ. साराभाई का आदरपूर्वक उल्लेख करते हैं तथा आग्रहपूर्वक मांग करते हैं कि उनकी रहस्यमय मृत्यु का बिना किसी चूक और शास्त्रीय पद्धति से अन्वेषण किया जाए ।

३ आ.विक्रम साराभाई की अप्राकृतिक मृत्यु होना, मन को स्वीकार न होना ! : इस्रो में उनके साथ कार्य करनेवाले पद्मनाभ जोशी कहते हैं कि जिन विक्रम साराभाई को जीवन में सिगरेट का भी व्यसन नहीं था,उनकी अप्राकृतिक मृत्यु होना मन को स्वीकार्य नहीं है । अणुऊर्जा में देश ने जो उन्नति की है, उसमें डॉ. साराभाई का अनमोल योगदान है ।

३ इ. डॉ. साराभाई की मृत्यु के संबंध में प्रश्‍नचिन्ह उपस्थित ! : टाइम्स ऑफ इंडिया में ३०.१२.२००८ को लिखा था कि डॉ. विक्रम साराभाई की मृत्यु से पूर्व भारत न्यूक्लियर प्रोलिफरेशन अनुबंध करने के विचार में था । उसी अवधि में रशियन रॉकेट आकाश में उडा था । क्या इसमें अंतरराष्ट्रीय शक्तियों अथवा रशिया का हाथ है ?, ऐसा प्रश्‍न उनकी मृत्यु के संबंध में उपस्थित किया था ।

४.महान वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा की दुर्घटना में मृत्यु

४ अ. डॉ. भाभा की मृत्यु के पीछे अमेरिका की गुप्तचर संस्था सीआईए का हाथ होने की संभावना ! : डॉ. होमी जहांगीर भाभा भारतीय अणु कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं । उनका जन्म वर्ष १९०९ में एक धनवान पारसी अधिवक्ता के घर हुआ था । पहले विश्‍वयुद्ध के समय वे विदेश में उच्च शिक्षा सहित अनुसंधान की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे । जनवरी १९३९ में वे स्वदेश लौटे । उसके पश्‍चात जे. आर. डी. टाटा द्वारा स्थापित टाटा इन्स्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च नामक संस्था में कुछ समय तक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत थे । उन्हें वर्ष १९४२ में एडम्स पारितोषिक मिला था । वर्ष १९५१ और १९५३ से १९५६ की अवधि में उनका नाम भौतिकशास्त्र के नोबेल पारितोषिक के लिए सुझाया गया था । वर्ष १९५४ में उन्हें पद्मभूषण देकर गौरवान्वित किया गया था । जनवरी १९६६ में डॉ.भाभा बोईंग ७०७ विमान द्वारा फ्रांस से विएन्ना की ओर जा रहे थे, तब उनके विमान में विस्फोट हो गया था ।

कहते हैं कि भारत का अणु अनुसंधान कार्यक्रम असफल करने के लिए अमेरिका की गुप्तचर संस्था ने (सीआईए ने)उनकी हत्या करवाई थी । इस संबंध में भी डॉ. नम्बी नारायणन् ने ग्रेगरी डग्लस की को दी हुई पुस्तक कन्वरसेशन विथ द क्रो में रॉबर्ट क्राऊले का हवाला दिया है।

५. वर्ष २००९ से २०१३ की अवधि में ११ भारतीय अणु वैज्ञानिकों की मृत्यु

वर्ष २००९ से २०१३, इन ४ वर्षों की अवधि में ११ भारतीय अणु वैज्ञानिकों की अप्राकृतिक मृत्यु हुई है । इस प्रकरण में वर्ष २०१७ में मुंबई उच्च न्यायालय की तत्कालीन मुख्य न्यायमूर्ति मंजुला चेल्लूर ने केंद्र सरकार को सावधान किया था कि वैज्ञानिकों के प्राणों की रक्षा करें । मुख्य न्यायमूर्ति मंजुला चेल्लूर द्वारा व्यक्त की हुई चिंता निराधार नहीं थी । वर्ष २००९ में वरिष्ठ वैज्ञानिक लोकनाथन् महालिंगम् सवेरे घूमने गए थे, तब लापता हो गए तथा ५ दिन उपरांत उनका शव काली नदी में मिला । उसी अवधि में अणु अनुसंधान संस्था के एक वैज्ञानिक की उसी परिसर में मृत्यु हो गई थी ।

६. देशी अथवा विदेशी शक्तियों का सरकार कठोरता से नाश करे !

महान वैज्ञानिकों की मृत्यु अथवा उन पर हुए प्राणघातक आक्रमण निंदनीय और लज्जाजनक हैं ही; परंतु शोध कार्य में भारत ने जो नाम कमाया है उस संदर्भ में वे अत्यंत हानिकारक हैं । इसलिए भारत सरकार इस क्षेत्र की बाधाएं दूर कर उनका गहन अन्वेषण करे । केंद्र सरकार गत ६ वर्षों से प्रत्येक क्षेत्र में प्रचंड कार्यक्षमता से कार्य कर रही है । वैज्ञानिकों की अप्राकृतिक मृत्यु यह विषय उनके स्तर पर अन्वेषण का ही होगा, इसका जनता के मन में संदेह नहीं है; परंतु यदि इसके पीछे देश अथवा विदेश की शक्तियां कार्यरत होंगी, तो उनका कठोरता से नाश करना आवश्यक है ।

-(पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, संस्थापक सदस्य, हिन्दू विधिज्ञ परिषद और अधिवक्ता, मुंबई उच्च न्यायालय.(१४.१.२०२१)