‘नवम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र’ अधिवेशन के प्रथम दिवस के दूसरे सत्र में मान्यवरों के उद़्बोधक विचार !
३० जुलाई को ‘ऑनलाइन’ पद्धति से आयोजित ‘नवम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ के दूसरे सत्र में उद़्बोधन सत्र के अंतर्गत ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’ विषय पर माननीय वक्ताआें ने अपने विचार रखे । सभी मान्यवरों द्वारा प्रस्तुत विचारों का आशय था कि ‘आज की स्थिति कठिन है और ऐसे में हिन्दू-संगठन के अतिरिक्त दूसरा विकल्प नहीं है और हिन्दू-संगठन के साथ धर्माचरण करना भी आवश्यक है ।
चिरंतन सत्य पर आधारित ‘सनातन वैदिक हिन्दू धर्म’ के अनुसार आचरण
करना आवश्यक ! – पू. डॉ. शिबनारायण सेन, अध्यक्ष, शास्त्र धर्म प्रचार सभा, कोलकाता, बंगाल
पृथ्वी पर विद्यमान सभी प्राणी आहार, निद्रा, भय व मैथुन की क्रियाएं करते हैं; परंतु धर्म का आचरण केवल मनुष्य ही कर सकता है । पहले हिन्दुआें पर धर्म का प्रभाव था । इसलिए दूसरों के साथ अन्याय करने की प्रवृत्ति नहीं थी । पुरुष एकपत्नी और महिलाएं पतिव्रता थीं; परंतु आज की जनता धर्मभ्रष्ट और धर्मद्रोही हो गई है । आज पृथ्वी पर ७५ प्रतिशत पाप और २५ प्रतिशत पुण्य हो रहा है । इसलिए चिरंतन सत्य पर आधारित एकमात्र ‘सनातन वैदिक हिन्दू’ धर्म के अनुसार आचरण करना आवश्यक है, तभी जाकर समस्त विश्व का कल्याण होगा ।
आज के वामपंथी नेपाली राज्यकर्ताआें के विरुद्ध संघर्ष कर नेपाल में हिन्दू
राष्ट्र की पुनर्स्थापना करेंगे ! – डॉ. मानव भट्टराई, अध्यक्ष, राष्ट्रीय धर्मसभा काठमांडू, नेपाल
नेपाल पहले ‘हिन्दू राष्ट्र’ था; परंतु विदेशी प्रभाव एवं राजनीति के कारण उसे ‘धर्मनिरपेक्ष’ राष्ट्र घोषित किया गया । आज भी ९० प्रतिशत नेपाली जनता को लगता है कि ‘नेपाल हिन्दू राष्ट्र बनना चाहिए ।’ हिन्दू राष्ट्र पर विदेशी एवं धर्मविरोधियों की कुदृष्टि है; इसलिए वहां हिन्दू राष्ट्र के विरुद्ध धनशक्ति का भी प्रयोग किया जा रहा है । आज की राजसत्ता धर्म, संस्कृति विरोधी और लोगों का दिशाभ्रम करनेवाली है । धर्मशास्त्र का ज्ञान प्राप्त करने हेतु विश्व के लोग नेपाल आते थे । ‘वाल्मीकि रामायण’ नेपाल की पवित्र भूमि पर लिखा गया है । नेपाल यदि ‘हिन्दू राष्ट्र’ नहीं हुआ, तो प्राचीन धरोहर और गौरव पुनः प्राप्त करना संभव नहीं होगा । नेपाल में हिन्दूहित के लिए कार्य करनेवाले अनेक संगठन हैं; परंतु उनमें समन्वय एवं संगठन नहीं है । भले ही ऐसा हो; परंतु मुझे विश्वास है कि आनेवाले समय में नेपाल में मंदिर, मठ, प्राचीन धर्मशालाएं तथा गोशालाआें को पुनर्वैभव प्राप्त होगा । हम पर्यावरणपूजक हैं । यहां नदी, पर्वत और वन की पूजा की जाती है । नेपाल के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनने से हमें कदम-कदम पर समस्याआें का सामना करना पड रहा हैै; परंतु तब भी उन पर विजय प्राप्त कर हम भारत एवं नेपाल को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने हेतु अंतिम सांस तक प्रयास करते रहेंगे ।
जिस प्रकार नमक के बिना भोजन का स्वाद नहीं, उसी प्रकार
धर्म के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं ! – श्री. धर्मयेशा जी, इंडोनेशिया
‘धर्म’ की परिकल्पना केवल स्वार्थ के लिए नहीं, अपितु जीवनोपयोगी घटक के रूप में देखना आवश्यक है । ‘धर्म ही मोक्षप्राप्ति का साधन है’, यही वास्तविकता है । जिस प्रकार नमक के बिना भोजन का स्वाद नहीं, उसी प्रकार धर्म के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है । स्वयं को ‘धर्मरक्षक’ बोलने से अहंकार बढता है, जबकि ‘धर्मसेवक’ बोलने से अहंकार अल्प हो जाता है । ‘धर्मो रक्षति रक्षितः ।’ वचन के अनुसार जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म अर्थात ईश्वर रक्षा करते हैं’; इसलिए हिन्दू संगठित रूप से एक परिवार के रूप में धर्म की सेवा करें । यदि विद्यालयों में रामायण, महाभारत, पंचतंत्र, हितोपदेश आदि ग्रंथों की शिक्षा दी जाए, तो छात्र अपनेआप सुसंस्कृत होंगे ।
‘हिन्दूविरोध’ के विषाणु पर ‘हिन्दू राष्ट्र’ ही एकमात्र
औषधि ! – प्रमोद मुतालिक, संस्थापक-अध्यक्ष, श्रीराम सेना, कर्नाटक
देश में निरंतर लव जिहाद, भ्रष्टाचार और आतंकी घटनाएं हो रही हैं । हिन्दूसंगठन, साथ ही हिन्दुआें में जागृति लाना ही ईश्वरीय कार्य है । जाति, राजनैतिक दल, संगठन आदि को एक ओर रखकर केवल ‘हिन्दू’ के रूप में संगठित होना आवश्यक है । हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के कार्य में देश के प्रत्येक नागरिक को अपना योगदान देना होगा । आज विश्वभर में कोरोना विषाणु ने उत्पात मचा रखा है । इस विषाणु की भांति ही ‘हिन्दूविरोध’ के विषाणु को रोकना भी आवश्यक है और ‘हिन्दू राष्ट्र’ ही इस विषाणु की एकमात्र औषधि है ।
हिन्दू संगठनों के एकत्रीकरण का चुनौतीपूर्ण कार्य करते हुए हिन्दू जनजागृति समिति ने हिन्दूशक्ति खडी की ! – प्रमोद मुतालिक अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन हिन्दू संगठनों के एकत्रीकरण का एक मंच है । हिन्दू संगठनों के एकत्रीकरण का चुनौतीपूर्ण कार्य साहस के साथ आगे बढाने में हिन्दू जनजागृति समिति का कार्य अभिनंदनीय है । इसके द्वारा हिन्दुआें की एक शक्ति खडी हुई है । |
हिन्दू राष्ट्र में नागरिकों पर प्रांतीय अस्मिता की तुलना में राष्ट्र्रीय अस्मिता प्रबल करनेवाले संस्कार दिए जाते हैं !
नागरिकों में स्वाभिमान संजोने के लिए भाषीय और प्रांतीय अस्मिता आवश्यक है, तब भी उससे संकीर्ण वृत्ति निर्माण होने की संभावना हो सकती है । राष्ट्र को जागृत करना है, तो उस देश के नागरिकों में राष्ट्रप्रेम, राष्ट्राभिमान और राष्ट्र-अस्मिता के गुण आवश्यक होते हैं । इतिहास कहता है कि राष्ट्राभिमानशून्य राष्ट्र का पतन होता है । भारतीयों में भी राष्ट्रीय अस्मिता का लोप होने से सैकडों वर्ष विदेशी दासता की यातनाएं भुगतनी पडी थीं; इसीलिए –
१. हिन्दू राष्ट्र में नागरिकों पर पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षिक और राजकीय आदि सभी स्तरों पर राष्ट्र और धर्म हित को सर्वोच्च प्रधानता देनेवाले और राष्ट्राभिमान जागृत करनेवाले संस्कार दिए जाएंगे ।
२. हिन्दू राष्ट्र की सरकार राष्ट्रजागृति द्वारा नागरिकों में राष्ट्रप्रेम अंकुरित करेगी । प्रसंग आने पर राष्ट्रहित में कानून बनाकर राष्ट्रीय अस्मिता के लिए पोषक वातावरण तैयार किया जाएगा ।
३. सर्व प्रांतीय भाषाआें की जननी ‘संस्कृत’ को राष्ट्रभाषा का स्थान दिया जाएगा । राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दू राष्ट्र की सरकार शासकीय कार्यभार, कार्यक्रम, संभाषण और साहित्य आदि राष्ट्रभाषा में होने हेतु कटिबद्ध रहेेगी !
इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक