नागपंचमी

तिथि : श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी
इतिहास : सर्पयज्ञ करनेवाले जनमेजय राजा को आस्तिक नामक ऋषि ने प्रसन्न कर लिया था । जनमेजय ने जब उनसे वर मांगने के लिए कहा, तो उन्होंने सर्पयज्ञ रोकने का वर मांगा एवं जिस दिन जनमेजय ने सर्पयज्ञ रोका, उस दिन पंचमी थी ।

पूजन

नागपंचमी के दिन हलदी से अथवा रक्तचंदन से एक पीढे पर नवनागों की आकृतियां बनाते हैं एवं उनकी पूजा कर दूध एवं खीलों का नैवेद्य चढाते हैं । नवनाग पवित्रकों के नौ प्रमुख समूह हैं । पवित्रक अर्थात सूक्ष्मातिसूक्ष्म दैवी कण (चैतन्यक) ।
भावार्थ : विश्‍व के सर्व जीवजंतु विश्‍व के कार्य हेतु पूरक हैं । नागपंचमी पर नागों की पूजा द्वारा यह विशाल दृष्टिकोण सीखना होता है कि भगवान उनके द्वारा कार्य कर रहे हैं । – प.पू. परशराम पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.
निषेध : नागपंचमी के दिन कुछ न काटें, न तलें, चूल्हे पर तवा न रखें इत्यादि संकेतों का पालन बताया गया है । इस दिन भूमिखनन न करें ।
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र)