सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

हिन्दुओं की दुरवस्था और उसका एकमात्र उपाय है, साधना करना !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

‘प्राचीन काल में हिन्दू धर्माचरण करते थे एवं धर्मिभिमानी भी थे, इस कारण ‘धर्मो रक्षति रक्षितः ।’ (मनुस्मृति, अध्याय ८, श्लोक १५) अर्थात ‘धर्म की रक्षा करनेवाले की रक्षा धर्म अर्थात ईश्वर करते हैं’, यह सिद्धांत उनपर लागू होता था । वर्तमान काल में हिन्दू धर्माचरण नहीं करते और उनमें धर्माभिमान भी नहीं है । इस कारण आगामी आपातकाल में आपकी तथा धर्म की रक्षा करने के लिए साधना करें’, ऐसा उन्हें बताना पड रहा है ।


कहां आंगनवाडी के समान तथा शोध कार्य करनेवाला पश्चिम का विज्ञान; और कहां लाखों वर्ष पूर्व ही परिपूर्णता प्राप्त कर चुका हिन्दू धर्म का विज्ञान !

‘यहां दिए खगोलशास्त्र के एक उदाहरण से यह सूत्र समझ में आएगा । आकाश के ग्रहों के विषय में विज्ञान जो शोध करता है, वह केवल भौतिक दृष्टि से है । इसके विपरीत हिन्दू धर्म का विज्ञान ग्रहों की भौतिक जानकारी देने के साथ ही ‘ग्रहों का क्या परिणाम होता है ? कब होता है ? और यदि दुष्परिणाम होनेवाला हो, तो उसका क्या उपाय है ? यह सब बताता है । आधुनिक विज्ञान की सभी शाखाओं के संदर्भ में ऐसा ही है ।


मानवीय बुद्धि की सीमा !

‘सागर की ओर देखकर उसका बुद्धि से अध्ययन करने की सोचें, तो उसकी गहराई और उससे जुडी विविध बातों का ज्ञान नहीं होता । उसी प्रकार स्थूल बातों का बुद्धि से अध्ययन कर, अध्यात्म के सूक्ष्म स्तरीय विश्व का ज्ञान नहीं होता ।’


ऐसे चुनाव परिणाम का ‘हिन्दू राष्ट्र’ ही विकल्प है !

‘साधकों को चुनाव के परिणामों का कुतूहल नहीं होता; क्योंकि उन्हें निश्चिति है कि ‘ईश्‍वरीय राज्य की (हिन्दू राष्ट्र की) स्थापना होने पर ही सर्व अडचनें हल होंगी एवं आनंदप्राप्ति होगी ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले