सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
![](https://static.sanatanprabhat.org/wp-content/uploads/sites/4/2021/05/18091031/ppdr_bhag3__mergd_2C.jpg)
‘किसी धार्मिक संस्था को दान में दिया जाने वाला धन यदि पाप मार्ग से अर्जित किया हुआ हो, तो वह व्यर्थ हो जाता है; अर्थात किसी सेवा के लिए उस धन का उपयोग करने पर उस सेवा की फलोत्पत्ति अच्छी नहीं होती !’
✍️ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक संपादक, ʻसनातन प्रभातʼ नियतकालिक