हिन्दुओं को संगठित करनेवाली विचारधारा ही हिन्दू राष्ट्र का निर्माण कर सकती है !

‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करना, एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है !

     हिन्दू धर्म और भारतवर्ष की विशेषता है कि भविष्य की अद्वितीय घटनाओं की भविष्यवाणी उनके घटित होने के पूर्व ही हो जाती है । वाल्मीकि ऋषि ने अलौकिक दृष्टि से रामायण की रचना की । तदुपरांत प्रभु श्रीराम का अवतार होकर पृथ्वी पर ऐतिहासिक ‘रामराज्य’ अवतरित हुआ । भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से पूर्व दैवीय आकाशवाणी हुई । आकाशवाणी अनुसार जन्म लिए भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मसंस्थापना की और पृथ्वी पर ‘धर्मराज्य’ अवतरित हुआ । अध्यात्म के अधिकारी व्यक्ति परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने अपनी दूर-दृष्टि से सर्वप्रथम वर्ष १९९८ में बताया था कि ‘भारत में वर्ष २०२३ में ‘ईश्वरीय राज्य’ अर्थात ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित होगा ।’ इस विचार ने आगामी काल की आदर्श राष्ट्ररचना अर्थात धर्मसंस्थापना का बीजारोपण किया ।

     हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के संदर्भ में स्थूल से कोई भी आशादायी घटना घटित न होते हुए भी ‘हिन्दू राष्ट्र’ के संदर्भ में बताना कुछ लोगों को अतिशयोक्ति प्रतीत होगा; किंतु काल के पदचिन्ह के ज्ञाता संतों को उस उज्ज्वल भविष्य की पदचाप सुनाई दे रही है । उस दिशा में प्रयत्न करना ही हमारी साधना है ।

     परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने ‘हिन्दू राष्ट्र’ का प्रस्तुतीकरण आध्यात्मिक दृष्टिकोण से किया है । विश्वकल्याण की व्यापक आध्यात्मिक सीख देनेवाले ‘हिन्दू राष्ट्र’ की भारत ही नहीं, अपितु पृथ्वी पर सर्वत्र स्थापना करना एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है ।

धर्मनिरपेक्षता की झूठी संकल्पना का त्याग कर हिन्दुओं का संगठन करें !

     वीर सावरकर, प्रथम सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार, पू. गोळवलकर गुरुजी आदि महापुरुषों ने भी प्रखरता से हिन्दू राष्ट्र का विचार प्रस्तुत किया है । दुर्भाग्य से, स्वतंत्रता के उपरांत; स्वयंभू हिन्दू राष्ट्र भारतवर्ष धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना और ‘हिन्दू राष्ट्र’ की तेजस्वी संकल्पना उससे ढक गई । जहां ‘रामराज्य’ प्रत्यक्ष में अवतरित हुआ, उस राज्य को आज एक दंतकथा कहा जा रहा है । छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित ‘हिन्दवी स्वराज्य’ अर्थात ‘हिन्दू राष्ट्र’ को भुलाकर उसे ‘धर्मनिरपेक्ष राज्य’ के नाम पर ‘हरा रंग’ लगाने का प्रयास किया जा रहा है । इतना ही नहीं, अपितु जानबूझकर ऐसा दुष्प्रचार किया जा रहा है कि ‘हिन्दू राष्ट्र का अर्थ है धर्मांधता ।’ धर्मनिरपेक्षता के कारण देश के समक्ष असंख्य समस्याएं उत्पन्न होने पर भी धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में अंधश्रद्धा रखनेवालों को भारत ‘धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र’ ही चाहिए । उनके विचारों में दूर-दूर तक ‘हिन्दू राष्ट्र’ का विषय कहीं भी नहीं है । हिन्दुओं को संगठित करनेवाली विचारधारा ही हिन्दू राष्ट्र का निर्माण कर सकती है । हिन्दू राष्ट्र की आकांक्षा सफल होने के लिए हिन्दू समाज का हिन्दू राष्ट्र संबंधी विचार, भाषा और आचार एक समान दिखाई देना चाहिए; इसलिए हिन्दू समाज के विविध घटक, उदा. हिन्दू संगठन, संप्रदाय, संत, अधिवक्ता, विचारक इत्यादि को हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए न्यायोचित मार्ग से प्रयत्न करना चाहिए । (संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ : ‘हिन्दू राष्ट्रकी स्थापनाकी दिशा’)