जितना सोचा था मिलने से पहले, उससे अधिक सरल हैं आप (टीप १)।
विचारों के होते हुए, नामजप भी हो रहा था अपनेआप ।। १ ।।
माना कि आपके सामने मन में कोई प्रश्न नहीं आया ।
पर अनुभव हो रही थी आपके जाने के बाद भी आपकी छाया ।। २ ।।
आपसे मिलने के उपरांत ही जाना कि एक दिन पहले जो मन में आई थी इच्छा ।
वह न तो स्व इच्छा थी, न पर इच्छा; परंतु थी केवल ईश्वर इच्छा ।। ३ ।।
मेरे वो आंसू भी खो गए, जो आपसे मिलने से पहले बह रहे थे ।
क्योंकि जैसे करता है एक मित्र अपने मित्र से, वैसे हम बातें कर रहे थे ।। ४ ।।
आपकी हर बात का अर्थ समझना और समझाना कठिन तो है ।
परंतु जब आपने कुछ कह दिया, उस काम को करना संभव तो है ।। ५ ।।
आपने जो कही, वो ध्यान रहेगी मुझे हर बात ।
चाहे उसके लिए करना पडे एक, मुझे दिन और रात ।। ६ ।।
यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे भी चुना आपने हिन्दू राष्ट्र के सपने के लिए ।
प्रतिज्ञा ली है, इस सपने में पूर्णतः सहभागी होने के लिए ।। ७ ।।
टीप १ – परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी
– अधिवक्त्या (सौ.) अमिता सचदेवा, देहली.
या लेखात प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या भाव तेथे देव या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |