हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी वाराणसी के अखिल भारतीय सारस्वत परिषद की ओर से सम्मानित !
धर्म के क्षेत्र में किए कार्य हेतु किया गया सम्मान !
धर्म के क्षेत्र में किए कार्य हेतु किया गया सम्मान !
अब हम ‘सनातन धर्मराज्य’ की ओर मार्गक्रमण कर रहे हैं, जिसे ‘हिन्दू राष्ट्र’ भी कह सकते हैं । इस कालावधि में ‘अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर का निर्माण होकर ‘श्रीराममूर्ति’ की प्राणप्रतिष्ठा होना’, ईश्वरीय नियोजन है ।
हिन्दुओं को आज स्वबोध नहीं, तो शत्रुबोध कैसे होगा ? हिन्दू संगठनों के माध्यम से हिन्दू समाज को यह बोध हो, इसलिए यह हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन है ।
नामजप स्थूल ध्वनि, अव्यक्त ध्वनि, साथ ही प्रकाश ऊर्जा से चित्तशुद्धि कर मनुष्य को केवल स्वास्थ्य ही नहीं, अपितु आनंदप्राप्ति का मार्ग साध्य कराता है । यह कलियुग की सर्वश्रेष्ठ साधना सिद्ध होती है ।
अंदर बैठा हुआ जीव, जीवात्मा, आत्मा, परमात्मा अर्थात चेतना है, शाश्वत है, अविनाशी है, सर्वव्यापी है, सर्वज्ञ है, सर्वशक्तिमान है । यही अंतिम सत्य, यही हमारा स्वस्वरूप तथा यही है अनादि अनंत !
‘सनातन धर्म की सीख तथा अध्यात्म एक ही है । सनातन धर्म में केवल मनुष्य के ही नहीं, अपितु प्रत्येक कण-कण के उद्धार का विचार किया गया है ।
‘जो हिन्दूहित की केवल बात नहीं, अपितु हिन्दूहित का कार्य करेगा’, इस नीति के अनुसार हिन्दू राष्ट्र तथा हिन्दूहित के सूत्रों पर कार्य करने का वचन देनेवाले राजनीतिक दल तथा प्रामाणिक जनप्रतिनिधियों को ही वर्ष २०२४ के लोकसभा चुनाव में हिन्दुओं का समर्थन मिलेगा
निरंतर मन से ज्ञात-अज्ञातवश किए नामजप के कारण चित्त में नामजप का संस्कार होता है । आत्मा के आनंदस्वरूप के साथ उसका आंतरिक सान्निध्य होता है । इसके परिणामस्वरूप नामधारक को आनंद की अनुभूति होती है । ऐसा होना ही नामधारक का पश्यंति वाणी का नाम है ।
मांधाता पर्वत पर संतों की वंदनीय उपस्थिति में आदिगुरु शंकराचार्यजी की अष्टधातु से बनी १०८ फुट ऊंची एकात्मता की मूर्ति का अनावरण मुख्यमंत्री श्री. शिवराज सिंह चौहान ने १९ सितंबर, गुरुवार को किया ।
आज भी एक ओर विश्व को ईसामय बनाने का षड्यंत्र सर्वत्र जोर-शोर से चल रहा है, तो दूसरी ओर ‘गजवा-ए-हिन्द’ आदि विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत विश्व को इस्लाममय बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं । इस वैश्विक परिस्थिति में हिन्दू विचारक, अध्येता स्वबोध एवं शत्रुबोध इन संज्ञाओं के प्रचलन के द्वारा हिन्दू समाज में जनजागरण का अभियान चला रहे हैं