प्रेमभाव एवं स्थिरता से युक्त श्रीमती मालती नवनीतदास शहा हुईं संतपद पर विराजमान !
इस अवसर पर सद्गुरु स्वाती खाडयेजी ने पू. (श्रीमती) मालती शहाजी को सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का छायाचित्र, साथ ही शॉल एवं श्रीफल प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया ।
इस अवसर पर सद्गुरु स्वाती खाडयेजी ने पू. (श्रीमती) मालती शहाजी को सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का छायाचित्र, साथ ही शॉल एवं श्रीफल प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया ।
आगे आनेवाले आपातकाल में आधुनिक वैद्यों और उनकी औषधियां उपलब्ध नहीं होंगी, उस समय ‘किस बीमारी के लिए कौन सा उपाय करना है’, यह समझ में आना कठिन होगा । अतः यह समझ में आए; इसके लिए साधक यह लेख संग्रहित रखें और उसमें दिए अनुसार नामजप करें ।
‘जब (खेत में) नदी का पानी आता है, तब उसे पाट बनाकर दिशा देनी पडती है; अन्यथा वह समस्त (खेत) नष्ट कर देता है । उसीप्रकार मन में आ रहे विचारों को दिशा देनी पडती है ।
आज प्रत्येक व्यक्ति धर्माचरण करने लगा, उपासना करने लगा, तो ही वह धर्मनिष्ठ होगा । ऐसे धर्मनिष्ठ व्यक्तियों के समूह से धर्मनिष्ठ समाज की निर्मिति हो सकती है । धर्मनिष्ठ होने के लिए धर्म के अनुसार बताई उपासना अर्थात साधना करना अनिवार्य है ।
सनातन धर्मग्रंथों में राजधर्म बताया गया है । वहां धर्म की सीमा के बाहर राजनीति नहीं है । धर्म की सीमा से बाहर यदि राजनीति हो, तो उसका नाम ‘उन्माद’ है, जब तक भारत में धर्माधारित राजपद्धति अपनाई नहीं जाएगी, तबतक गायें, गंगा, सती, वेद, सत्यवादी, दानशूर आदि का संपूर्ण संरक्षण नहीं हो सकता ।
जीवन के किसी भी कठिन प्रसंग में मानसिक संतुलन खोए बिना, प्रसंग का धैर्यपूर्वक सामना कर पाने तथा सदैव आदर्श कृति होने हेतु व्यक्ति का मनोबल उत्तम एवं व्यक्तित्व आदर्श होना आवश्यक है । स्वभावदोष व्यक्ति का मन दुर्बल करते हैं, जबकि गुण आदर्श व्यक्तित्व विकसित करने में सहायक होते हैं ।
स्वभावदोषों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, पारिवारिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक दुष्परिणामों को दूर कर, सफल तथा सुखी जीवन जीने हेतु, स्वभावदोषों को दूर कर चित्त पर गुणों का संस्कार निर्माण करने की प्रक्रिया को ‘स्वभावदोष (षड्रिपु)-निर्मूलन प्रक्रिया’ कहते हैं ।
स्वभावदोषों पर उपचारी सूचना, स्वसूचना बनाते समय ध्यान रखने योग्य सूत्र, स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया अशिक्षित एवं अल्पशिक्षित व्यक्ति भी कर पाएं, इस हेतु उपयुक्त सूचना आदि के विषय में इस ग्रंथ में पढें ।
नामजप के माध्यम से श्री दत्तगुरु को पुकारने के उपरांत सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ने साधकों को श्री दत्तगुरु के रूप में दर्शन देकर कृतकृत्य किया । साधकों ने गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में प्राप्त गुरुदर्शन और उनके पाद्यपूजन को अपने मनमंदिर पर अंकित कर लिया !
शालिग्राम के शंकुरूप भाग को नीचा कर शालिग्राम को खडा कर देखने पर मुझे हनुमानजी के दर्शन हुए । शालिग्राम पर स्थित हनुमानजी का रेखाचित्र देखने पर यह मेरे ध्यान में आया । मुझे ‘वानर दिखाई देना’ शालिग्राम पर हनुमानजी के होने का सूचक था ।